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मात शिक्षा
मन्दालसा की इस शिक्षा का प्रभाव पुन पर ऐसा पड़ा कि उसका पुत्र बारह वर्ष की आयु में ही घर को छोड़कर बैरागी बन गया और उसके पिता का उसको क्षत्रिय बनाने का संकल्प धरा ही रह गया।
इसके पश्चात् मन्दालसा के पति ने फिर दूसरे पुत्र पर अपना प्रयोग करना प्रारम्भ किया। किन्तु जीत इस बार भी मन्दालसा की ही हुई और उसका यह पुत्र भी बारह वर्ष की श्रायु में सन्यासी बन गया। इस प्रकार उसने अपने छै पुत्रों को उच्चकोटि का त्यागी तथा ज्ञानी बना दिया। ___जब मन्दालसा को सातवां गर्भ रहा तो उसके पति पर
शत्रुओं ने चढ़ाई की, जिससे उसको राज्यवंचित होकर देशनिर्वासित जीवन व्यतीत करना पड़ा। अब उसने पत्नी से हार मानकर उससे कहा
"भद्र! तुम जीतीं और मैं हारा । अबकी बार तुम इस सन्तान को इतना अधिक वीर बनादो कि वह बड़ा होकर हमारे खोए हुए राज्य को शत्रुओं से फिर छीन सके।"
मन्दालसा ने अपने पति की बात स्वीकार करली और अव उसने क्षात्रधर्म तथा वीरतासम्बन्धी पुस्तकें पढ़ना तथा कार्य करना प्रारम्भ किया। पुत्र के जन्म लेने के उपरान्त भी वह उसको क्षात्रधर्म तथा वीरता के ही विचार देती रही। इसका परिणाम यह हुआ कि उसके उस पुत्र ने बड़ा होकर शत्रुओं से युद्ध करके अपने राज्य को वापिस छीन लिया और अपने माता पिता के संकट को दूर कर दिया। इसी प्रकार जैन रामायण में भी एक कथा आती है कि पाताल लंका के राजा चन्द्रोदय की गभिणी विधवा महारानी अनुराधा ने किसी अन्य की सहायता