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जन्म
- यह कह कर शाह मथुरादास जी ने धायको पांच अशर्फियां दे दी । धाय अशर्फियां लेकर बच्चे को सैकड़ों आशीर्वाद देती हुई चली गई। धाय के जाने के बाद शाह मथुरादास जी अपने मन में सोचने लगे।
"जो बालक जन्म से पूर्व ही शुभ स्वप्न तथा शुभ दोहला देकर रोग को शान्त कर सकता है तो वह जन्म के बाद तो कितना अधिक भाग्यशाली सिद्ध होगा। इसका प्रमाण उसके जन्म के साथ ही धन का प्रकट होना है। इस प्रकार तो भविष्य में न जाने यह बालक क्या क्या कार्य करेगा ? वास्तव में यह सब इस बालक के पुण्य का ही प्रभाव है। अतएव इस सारे के सारे धन को बालक के जन्म महोत्सव में लगा देना चाहिये।"
__ ऐसा निश्चय करके उन्होंने बालक के जन्म का उत्सव इतने अधिक समारोह के साथ मनाया कि उसमें उन्होंने उस समस्त धन को लगा दिया। शाह मथुरादास जी ने पंडित गौरीशंकर जी से ही बालक की. जन्म पत्री बनवाई। जन्मपत्री बन जाने पर शाहजी ने उनको भारी पारितोषिक देकर विशेष रूप से सम्मानित किया। इस प्रकार ज्योतिषीजी की भविष्यवाणी पूर्णतया सत्य प्रमाणित हुई। ।
जब बच्चों ग्यारह दिन का हुआ तो अत्यन्त समारोहपूर्वक उसका नाम करण संस्कार कराके उसका नाम 'सोहनलाल' रखा गया। अब बालक सोहनलाल द्वितीया के चन्द्रमा के समान दैनिक उत्तरोत्तर बढ़ने लगा। पंडित गौरीशंकर द्वारा बनाई हुई उक्त जन्म पत्री की नकल अगले पृष्ट पर दी जाती है।