________________
प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी का सौभाग्य सिन्दूर विशेष रूप से चमक रहा था। उस समय विक्रम संवत् १९०६ अथवा ईस्वी सन् १८४६ के मार्गशीष मास में मेरठ निवासी सुप्रसिद्ध दैवज्ञरत्न पण्डितप्रवर गौरीशंकर जी अपनी ज्योतिष विद्या का जनता को पञ्जाब में स्थान स्थान पर चमत्कार दिखला रहे थे। वह अपने चमत्कारों से यश और कीर्ति का सम्पादन करते हुए तथा विपुल स्वागत, सन्मान एवं धन रत्न आदि प्राप्त करते हुए सम्बडियाल भी आए। उनकी कीर्ति तो उनके आगे सम्बडियाल पहुंच ही चुकी थी, अतएव यहां की जनता ने उनका खूब सत्कार किया। शाह मथुरादोस जी ने उनका अभूतपूर्व स्वागत करके उनको अपने ही प्रासाद में ठहराया। पंडित जी सम्बडियाल पौष सास की पूर्णिमा को आए थे। शाह मथुरादास जी के स्वागत से प्रसन्न होकर वह रात को बड़े आनन्द से सोए, किन्तु दूसरे दिन प्रातःकाल उठते ही पंडित गौरीशंकरजी ने शाह मथुरादास जी से कहा
___ "शाह जी, रात्रि के समय मैंने एक अत्यन्त ही विचित्र स्वप्न देखा है। मैं उस स्वप्न के प्रभाव से यह कह सकता हूँ कि आपको तीन दिन के अन्दर २ एक ऐसे अमूल्य रत्न की प्राप्ति होगी, जिसके निमित्त से मुझे भी आपसे विशेष आर्थिक लाभ होगा।"
वास्तव में पंडित गौरीशंकर जी आज कल के पंडितों के समान न होकर अपने कार्य में अत्यन्त चतुर थे। वह एक सफल भविष्यवक्ता थे। उनके इस वचन को सुनकर शाह मथुरादास जी को भी भारी प्रसन्नता हुई। वह मन में सोचने लगे कि