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भावीसूचक स्वप्न स्त्रीणां शतानि शतशो जनयन्ति पुत्रान् नान्या सुतं त्वदुपमं जननी प्रसूता । सो दिशो दधति भानि सहस्ररश्मि प्राच्येव दिग्जनयति स्फुरदंशुजालम् ।।
भक्तामर २२ सैकड़ों स्त्रियां सैकड़ों पुत्रों को जन्म दिया करती हैं, किन्तु तुम्हारे जैसे पुत्र को अन्य किसी स्त्री ने जन्म नहीं दिया। चमकदार तारों को सभी दिशाएँ धारण करती हैं, किन्तु प्रकाशित किरणों वाले सहसरश्मि को केवल पूर्व दिशा ही जन्म देती है।
रात्रि का अन्तिम प्रहर व्यतीत होरहा है। धर्मात्मा पुरुष आलस्य निद्रा त्याग कर भगवद्भजन तथा आत्म चिन्तवन में लगे हुए हैं। चोर जार श्रादि अपने २ कार्य को समाप्त कर घरों में जाग हो जाने के भय से अपने २ घर में जाकर दुराचार की भावना को त्यागकर विश्राम कर रहे हैं। निशापति चन्द्रदेव ने अपनी अद्भ त शान्त तथा श्वेत चांदनी को समस्त पृथ्वी पर फैला कर उसको रजतमय बना रक्खा है। उसके सामने अनेक कोटि तारागण का प्रकाश फोका हो रहा है। उसको देख कर ऐसा