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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी होगी। यह पुत्र भविष्य में हमारे कुल को अत्यधिक प्रसिद्ध तथा उज्वल करेगा। वह हमारे कुल मे मुकुटमणि के समान चमकेगा। तुम्हारा यह पुत्र संसार में ऐसे कार्य करेगा, जिनके कारण ससार उसको सैकड़ों वर्ष तक स्मरण रखेगा। यह पुत्र चतुर्विध संघ का परस हितैपी होगा। वह चतुर्विध संघ के कल्याणार्थ अनेक ऐसे कार्य करेगा, जिनसे उनका अभ्युदय हो
और उसकी कीर्ति अजर अमर रहेगी। यह पुत्र सिंह के समान निर्भीक होगा। जिस प्रकार सिंह मृगेन्द्र कहलाता है उसी प्रकार तेरा यह पुत्र भी अपने सत्कर्मों तथा पराक्रम से मनुप्येन्द्र कहलायेगा। इस प्रकार हे देवी! तुमने अत्यन्त कल्याणकारी एवं मंगलकारक स्वप्न देखा है।"
अपने पति से इस प्रकार स्वप्न का उत्तम फल सुनकर लक्ष्मी देवी को ऐसा अधिक आनन्द हुआ, जैसा किसी रंक को असीम लक्ष्मी मिल जाने से होता है। उसका मुख विकसित कमल पुरप के समान खिल उठा। फिर वह प्रफुल्लित तथा अनिमेष दृष्टि से अपने पति की ओर देखती हुई अपने दोनों हाथ जोड़ कर उनसे कहने लगी
"हे नाथ! आपने जो कुछ भी इस स्वप्न का फल बतलाया है ऐसा ही होने में हमारा कल्याण है और मैं भी ऐसे ही फल की कामना करती हूँ। मेरे मन में बारबार इसी प्रकार की इच्छा उत्पन्न हो रही है।"
लक्ष्मी देवी यह कहकर तथा अपने पति को बार बार प्रेमपूर्वक नमस्कार करके अपने कमरे में वापिस आगई।