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भावीसूचक स्वप्न वास्तव में उसकी केशराजी अथवा केसर छटा बहुत सुन्दर दिखलाई दे रही थी। उसकी पूछ बहुत लम्बी थी, जिसको उसने प्रथम पृथ्वी पर फटकार कर फिर ऊपर को करके मुका लिया था। वह क्रीड़ा करते समय जंभाई लेता जाता था और
आकाश से नीचे को उतरता जाता था। नीचे आकर वह सिंह मेरे मुख में घुस कर मेरे पेट में चला गया । उसके पेट में आते ही मेरी आंखें एक दम खुल गई । हे नाथ ! अब आप कृपाकर यह बतलावें कि मुझे इस स्वप्न का क्या फल मिलेगा ?"
अपनी धर्मपत्नी के इस महान कल्याणकारी स्वप्न को सुन कर मथुरादास जी को बड़ी भारी प्रसन्नता हुई। उनका एक एक रोम खिल उठा । उनके हृदय में हर्ष का ऐसा उद्रेक हुआ कि कुछ देर तक तो उनके मुख से वचन तक भी नहीं निकला । कुछ समय के उपरान्त स्वस्थ होने पर वह अपनी पत्नी से बोले
"हे देवी! तुमने महान स्वप्न देखा है। मैंने गुरुओं से सुना है कि स्वप्न असंख्य होते हैं, किन्तु जिस प्रकार दूध में से मक्खन निकाल लिया जाता है उसी प्रकार विद्वानों ने उन असंख्य स्वप्नों में से बयालीस सर्व श्रेष्ठ स्वप्न छांट लिये हैं, जिनको अत्यन्त उत्तम माना जाता है। उनमें से चौदह स्वप्न तीर्थकर भगवान अथवा चक्रवर्ती की माता देखती है। उनमें से सात स्वप्न नौ नारायणों की माताएं देखती हैं। चार स्वप्न बलभद्रनारायण की माता देखती है, तथा एक स्पप्न मांडलिक राजा अथवा स्वपरकल्याण करने वाले अपने समय के सर्वश्रेष्ठ मोक्षमार्ग के साधक को माता देखती है। इसलिये हे देवि ! इस उत्तम स्वप्न के प्रभाव से तुमको ऐसे श्रेष्ठ तथा गुणी पुत्ररत्न की प्राप्ति होगी, जिससे घर में सुख, सौभाग्य, भोगोपभोग के साधनों, यश, कीर्ति, धन, धान्य तथा आभूषणों आदि की वृद्धि