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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी आचारहीन नहीं होती और न आचारहीन माता पिता की संतान उत्तम संस्कारों वाली होती है। जिस प्रकार धन की प्राप्ति धनवानों से होती है, विद्या की प्राप्ति विद्वानों से होती है, अथवा अन्तःकरण के दाह को शान्त करने वाला जल निर्मल जल से सरे हुए सरोवर, कूप, तालाव अथवा पहाड़ी भरने आदि से ही प्राप्त होता है उसी प्रकार महापुरुपों का जन्म भी श्रेष्ठ सदाचार वाले उत्तम कुल मे ही होता है, अपूण पुण्य वाले परिवार में नहीं होता। इसका एक उत्तम उदाहरण देवानन्दा ब्राहाणी है। उसका पुण्य पूर्ण न होने के कारण ही भगवान महावीर स्वामी उसके उदर में आकर भी वहां से स्थानान्तरित किए गए । उनका वहां से अपहरण किया गया, जिससे वह देवानन्दा पुत्र न कहलाकर त्रिशलानन्दन सिद्धार्थकुलदीपक, त्रिशलाकुगार तथा ज्ञातपुत्र आदि नामों से ही जगत् में विख्यात हुए। इसी प्रकार देवकी के गर्भ से उत्पन्न हुए छै पुत्र देवकीपुत्र न कहला कर सुलसा सुत कहलाए । इस प्रकार यह निश्चय है कि महापुरुषों का जन्म ऐसे ही महानुभावों के घर होता है, जिनका पुण्य परिपूर्ण होता है। उत्तराध्ययन सूत्र में भी इसी बात को बतलाया गया है
खेत्तं वत्थु हिरणणं च, पसवो दासपोरुसं ! चत्तारि. कायखंधाणि - तत्थ से उववज्जई ।
उत्तराध्ययन ३ - १७ मित्तवं जाययं होइ, उच्चागोए व वएणवं । अपायके महापम्ने अभिजाए जसोवले ॥
. . उत्तराध्ययन ३ . १८ महान्, पुण्याला जीवों के उत्पन्न होने के स्थान - में दस