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भारत की दशा तरह परिचित हो जायें। किसी महापुरुष को उसके समय से अलग करके देखिये, तो उसका जीवन बहुत कुछ अर्थ-रहित मालूम पड़ेगा और उसके काम निरर्थक प्रतीत होंगे। इसलिये यदि हम भगवान बुद्ध के जीवन को ठीक ठीक समझना चाहते हों, तो यह आवश्यक है कि हम अच्छी तरह से यह जान लें कि उनके समय में भारत की क्या दशा थी। इसी उद्देश्य से यहाँ बुद्ध के जन्म-समय की भारत की राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक दशा का कुछ दिग्दर्शन कराया जाता है ।
राजनीतिक दशा
उस समय भारतवर्ष तीन बड़े बड़े भागों में बँटा हुआ था। इनमें से बीचवाला भाग “मज्झिम देश" (मध्य देश) कहलाता था । जातकों में अनेक स्थानों में “मज्मिम देश" का उल्लेख आया है; पर इन उल्लेखों से यह पता नहीं लगता कि मध्य देश कहाँ से कहाँ तक था । हाँ, मनुस्मृति अध्याय २, श्लो० २१ में निश्चित रूप से मध्य देश की सीमा लिखी हुई है। उसमें लिखा है"हिमालय और विंध्याचल के बीच तथा सरस्वती नदी के पूर्व
और प्रयाग के पश्चिम में जो देश है, उसे मध्य देश कहते हैं। इस मध्य देश के उत्तर का भाग उत्तरापथ तथा दक्षिण का भाग दक्षिणापथ कहलाता था। इस प्रकार कुल देश तीन बड़े बड़े प्रदेशों में बँटा हुआ था । अब आइये, देखें कि उस समय की राजनीतिक दशा कैसी थी।
उस समय देश में सोलह राज्य (षोडश महाजनपद) थे,
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