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श्रात्मतत्व-विचार
कुछ तो वजन कम होना चाहिए न ? पर ऐसा नहीं देखा गया; इसलिए 'जीव' और 'शरीर' एक ही हैं, मैं ऐसा मानता हूँ । '
आचार्य - "हे राजन् ! तूने पहले कभी चमडे की मशक में हवा भरी हैं ? या भरवाई है ? चमड़े की खाली मगक के वजन में और हवा भरी हुई मशक के वजन में कुछ फर्क पड़ता है ?" राजा--"नहीं मते ! कुछ फर्क नहीं पडता । "
आचार्य - "हे राजन् । वजन या गुरुत्व पुद्गल का, जड का धर्म है और उसके व्यक्तीकरण के लिए स्पर्श अपेक्षित है; यानी किसी वस्तु का जब तक स्पर्श न हो या उसे किसी तरह पकड़ न सके, तब तक उसका वजन नहीं हो सकता । तो फिर जो पदार्थ पुद्गल से सर्वथा भिन्न है और जिसका स्पर्श ही नहीं हो सकना, जिसे किसी प्रकार पकड़ ही नहीं सकते, उसका वजन किस तरह हो सकता है ?"
राजा - "हे भते ! एक बार मैने देहातदड - प्राप्त चोर के शरीर के छोटे-छोटे टुकड़े कराकर देखना चाहा कि उसने आत्मा कहाँ है ? पर, मुझे उसके किसी टुकड़े में आत्मा नहीं दिखी। इसलिए, 'जीव' और 'शरीर' अलग नहीं हैं, मेरी यह धारणा पुष्ट हुई । "
आचार्य - "हे राजन् । अरणी को लकड़ी में
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अग्नि मौजूद है, यह बात जगप्रसिद्ध है। पर, उसे देखने के लिए उसके छोटे-छोटे टुकडे किये जाये और फिर देखा जाये कि अग्नि कहाँ है, तो क्या वह दिखायी देगी ? उम समय अग्नि न ढीखे तो क्या यह कहा जा सकता है कि, उसमें अग्नि नहीं है ? जो ऐसा कहे तो अविश्वसनीय ही गिना जायेगा । उसी तरह शरीर के टुकडो में आत्मा न दिखी, इसलिए वह नहीं है, ऐसा मानना हो गलत कहा जायेगा ।"
राजा - "हे मते । 'जीव' और 'शरीर' एक ही है, यह मैं अकेला ही नहीं मानता, बल्कि मेरे दादा और मेरे पिता भी ऐसा ही समझते आये