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श्रद्धाञ्जलि
पूज्य वर्णी जी महाराजके दर्शन करनेका सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ । उनकी शान्तमुद्राका अवलोकन कर अलौकिक शान्तिका लाभ होता है। श्रद्धेय वर्णाजी महाराजकी मधुर वाणीसे भगवान् कुन्दकुदाचार्य के अध्यात्मप्रधान समयसारके सार गर्भित धाराका प्रवाह श्रोताको मन्त्रमुग्ध कर देने वाला अन्तस्तलस्पर्शी विवेचन सुन कर तो आनन्दकी सीमा ही नहीं रहती । मैं तो उन्हें विक्रमकी इक्कीसवीं शतीका सर्वोपरि जैन तत्ववेत्ता विद्वान और अध्यात्मवादका अनुपम रसिक और परम सम्यग्दृष्टि मानता हूं । वे समाजकी अनुपम निधी हैं, उन्होंने समाजके कल्याणार्थं अपने अतुल अमूल्य जीवनका बहु भाग विताया है जो कृतज्ञ समाजसे अविदित नहीं है । उन जैसा निरीह, मृदुल परिणामी, मधुरभाषी, मन्दकषायी, उदारहृदय, स्वानुभूति निरत, निश्छल व्यवहारी, परहित व्रती, परमज्ञानी उत्कृष्टत्यागी, वर्तमान त्यागीवर्गमें उपलब्ध होना कठिन ही नहीं प्रत्युत दुर्लभ है। ऐसे महापुरुष के चरणों में श्रद्धाअर्पण करते हुए मैं अपना परम सौभाग्य मानता हूं और भगवान् वीर के चरणों को ध्याता हुआ उनकी चिरायुष्यता की कामना करता हूं ।
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श्री वर्णीजीका व्यक्तित्व महान् है । महान्का शब्दों में वर्णन करना उसे सीमित बनाना तथा
( सर सेठ ) हुकुमचन्द स्वरूपचन्द
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महान्की महत्ताको ठेस पहुंचाना है ।
श्री वर्णोजीका जीवन जैनसमाज रूपी संसार के लिए सचमुच ही एक सूर्य है । आपने अपने बढ़े हुए विद्या और तपोबल से जैनसमाजका जो मार्ग प्रदर्शन किया है वह जैनसमानके इतिहासकी एक अमर कहानी होगी। वर्णाजी ज्ञानबल में जितने बढ़े हुए हैं चारित्रबल में उससे भी कहीं आगे हैं । यही आपके जीवनकी अनुपम विशेषता है। ज्ञान और चरित्रका जो सुन्दर समन्वय यहां है वह अन्यत्र बहुत कम मिल सकेगा। आपके विद्याप्रेमका यह ज्वलन्त उदाहरण है कि जैनसमाजकी अनेक शिक्षण संस्थाएं साक्षात् एवं श्रसाक्षात रूपसे आपसे पोषण प्राप्त कर रही हैं। श्री जी जैसे व्यक्तिका नायकत्व जैनसमाजके लिए एक गौरव और शोभाकी वस्तु है । मेरी हार्दिक अभिलाषा है कि यह ज्ञान ज्योति सतत जागती रहे और जैन समाज तथा देशके कल्याण के लिए एक चिरस्मरणीय वस्तु बन जावे ।
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वर्तमान समाजका प्रत्येक व्यक्ति है। उनकी सरल प्रकृति, गम्भीर मुद्रा, ठोस
( बा. ) राजेन्द्र कुमार जैन
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श्री १०५ न्यायाचार्य पं० गणेशप्रसादजी वर्णी से परिचित धार्मिक ज्ञान, अटल श्रद्धानादि गुणोंके द्वारा लोग सहज तैंतीस