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शान
२. दृष्टिबाद अंग पद संख्या निर्देश
( ह. पु. /१०/६३-७१, १२४); (ध. १ / १,१.२/१०६-११३); (घ, १/४१,४५/ २०६-२१०) : (गो, जी./मू./३६३-३६४/७७५) ।
पद संख्या
क्र.
९ परिकर्म
नाम
५ व्याख्या
२ सूत्र ३ प्रथमानुयोग
क्र.
१ चन्द्र प्रज्ञप्ति २ सूर्य | ३ जम्बू द्वीप
४ द्वीप समुद्र
७
"
11
५ ज्ञान प्रवाद ६सत्यप्रवाद
नाम
१ उत्पाद पूर्व २ अायणीवपूर्व ३भीर्यानुवाद पूर्व ४ अस्तिनास्ति प्रवाद
आत्म प्रवाद
कर्म प्रवाद
प्रत्याख्यानप्रबाद
१०
विद्यानुवाद ११ कल्याण नामधेय
२. चौदह पूर्व पदादि संख्या निर्देश पूर्वोमें
१२ प्राणावाय
१३ क्रिया विशाल १४ लोक बिन्दुसार
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३२५०००
५२३६०००
४ पूर्वगल
३६०५००० ५ चुलिका
३०३०००
१' जलगता
२ स्थलगता
३ आकाशगता.
४ रूपगता
८४३६०००
८८०००००
(इ.पू./१०/०५-१२०) (४. २/१.१.२/१९४-११२) (४. १/४.१.४१/२१२२२४.२२६) (क. १. १/१-१/१२०/२६/१०) (गो.जी./३६२288/0001
क्र.
नाम
५००० ६ | कुल जोड़
५ मायागता
१८
१२
१२
१६
वस्तुगत प्राभृत
दि० श्वे
१०
१४
८
२००
२८०
१०८
३५०
२४०
४०
३२०
४००
२०
३० २० ६००
१५
३००
पदसंख्या
१०.
२००
१०
२००
१० २०० १०२० २००
देखो अंगलाई शीर्षक
२०६७६२०५
| १०४८६६०२५
पद संख्या
१०००००००
६६०००००
७००००००
६००००००
७०
*888888
१००००००६
२६०००००००
१८००००००
८४०००००
११००००००
२६०००००००
१३०००००००
६०००००००
१२५००००००
४. अंग बाह्य के चीदह भेदोंमें पद संख्या निर्देश
1
.पू./१०/१२०-१२० सहस्राणि पञ्चसरयेकविदातिः कोटी प पदसंख्येयं वर्णाः सप्तैव वर्णिताः | १२७५ पञ्चविंशतिलक्षाश्च त्रयस्त्रिशच्छतानि च। अशीतिः श्लोकसंख्येयं वर्णाः पञ्चदशात्र
१२८|पुतज्ञानके समस्त अक्षरोंका संग्रह आठ करोड़ एक लाख आठ हजार एक सौ पचहत्तर प्रमाण है (८०१०८१७५) | १२७| और इसके समस्त श्लोकोंकी संख्या पच्चीस लाख तीन हजार तीन सौ अस्सी तथा शेष पन्द्रह अक्षर प्रमाण है । १२८ । (२५०३३०० + १५ अक्षर)।
५. यहाँपर मध्यम पदसे प्रयोजन है।
घ. १३/५,५,४८/२६६/७ एदेसु केण पदेण पयदं । मज्झिमपदेण । स च-तिहिं पदमुट्ठि पमाणपदमत्थमज्झिमपदं च । मज्झिमवृता गपदविभागो ११ प्रश्न- इन पदों (अर्थपर प्रमाणपद, मध्यमपद) मेंसे प्रकृत में किस पदसे प्रयोजन है। उत्तरमध्यम पदसे प्रयोजन है, कहा भी है--पद तीन प्रकारका कहा गया है अर्थपद, प्रमाणपद और मध्यमपद। इनमें से मध्यम पदके द्वारा पूर्व और अंगों का पद विभाग कहा गया है | १६ |
६. इन ज्ञानोंका अनुयोग आदि शानों में अन्तर्भाव
१३/५०२.४८/२०६१ अंगमाहरोह समययामा आयारादिका रसंगाई परियम्म- सुचण्डमाणियोगचूतिया क गच्छति। अभियोगहारे रास्स समासे या तस्सा बतादो। ण पाहुडपाहुडे तस्समासे वा, तस्स पुब्वगयअवयव तादो। परियम्मत-पाणियोग-पुलियाओ एवारस अंगाई मा पुव्वगयावयवा । तदो ण ते करंथ वि लयं गच्छति। ण एस दोसो, कोर-समासा च तम्माबादो न च अभियोगहारतस्समासेहि पाहुडपाडावयमिदि नियमो थि निष्पाभावाद अथना, पडिवति समासे एसियाम दत्तपावीर पुन विवक्खियार समा गच्छति त्ति बत्तवं प्रश्न- अंगमाह्य, चौदह प्रकीर्णकाध्याय, आचार आदि ११ अग, परिकर्म सूत्र, प्रथमानुयोग और चूलिका, इनका किस श्रुतज्ञानमें अन्तर्भाव होता है। प्रथमानुयोग या अनुयोगद्वारसमासमें तो इनका अन्तर्भाव हो नहीं सकता, क्योकि ये दोनों प्राभृतप्राभृतश्रुतज्ञानसे प्रतिबद्ध हैं। प्राभृतप्राभृत या प्राभृतप्राभृतसमास में भी इनका अन्तर्भाव नहीं हो सकता, क्योंकि ये पूर्वगढ़के अध्यक्ष है परन्तु परिकर्म सूत्र प्रथमानुयोग, भूतिका और ११ बंग पूर्वगत अवयन नहीं है इसलिए इनका किसी भी सज्ञानके भेद अन्तर्भाव नहीं होता है। उत्तर- यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, अनुयोगद्वार और अनुयोगद्वारसमासमें इनका अन्त होता है। अनुयोगद्वार और अनुयोगद्वारसमास प्राभृतप्राभृतके अवयव होने चाहिए, ऐसा कोई नियम नहीं है, क्योंकि इसका कोई निषेध नहीं किया है। अथवा प्रतिपत्तिसमास श्रुतज्ञान में इनका अन्तर्भाव कहना चाहिए। परन्तु पश्चादानुपूर्वीकी विवक्षा करनेपर इनका पूर्वसमास होता है, यह कहना
चाहिए ।
श्रुतज्ञान व्रत
क
श्रुतज्ञान व्रत - इस व्रत की विधि दो प्रकारसे वर्णन की गयी हैलघु व बृहद् ।
९.१२
1
1
मा पर्यन्त सोमा तीन सीज ४ चौथी घटके, मी, मी नवमी १० दशमी, १९ एकादशीके, १२ द्वादशी, १३ त्रयोदशी, १४ चतुर्दशी के पन्द्रह पूर्णिमाओं के और १२ अमावस्याओंके, इस प्रकार कुल १४८ उपवास करे। प्रत्येक उपवास के साथ १ पारणा आवश्यक है। कुल उपवास १४८ करे तथा 'ओं ह्रीं द्वादशांगश्रुतज्ञानाय नमः' इस मन्त्रका त्रिकाल जाप करे। (किशन कृत क्रियाकोष) (विधान सं. पू. १७९)।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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२. बृहद् विधि - ६ वर्ष ७ माह पर्यन्त निम्न प्रकार उपवास करें। मतिज्ञानके २८ डिमाके २८ उपवास २८ पारणा; ग्यारह अंगों के ११ एकादशियोंके ११ उपवास ११ पारणाः परिकर्मके २ दोजके २ उपवास २ पारणा; सूत्रके अष्टमियों के उपवास पारणाः प्रथमानुष्योगका १ नवमीका १ उपमास १ पारणा; १४ पूर्वके १४ चतुर्दशियों के १४ उपवास १४ पारणा: पाँच चूलिकाके ५
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