Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 4
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 402
________________ सल्लेखना ३९५ ५. भक्तप्रत्याख्यानमें निर्यापकका स्थान मयालीस आचार्यों द्वारा, जिसका नाम उत्तमार्थ प्रतिक्रमण है वह . ८. आहार दिखाकर बैराग्य उत्पन्न कराना दिया जानेके कारण देहत्याग व्यवहारसे धर्म है। भ, आ./मू./६८१-६६५ दवपयासमकिच्चा जइ कीरह तस्स तिबिह६. सब निर्यापकोंमें कर्तव्य विभाग वोसरणं । कम्हिवि भत्तबिसेसं मि उस्सुगो होज्ज सो खबओ।६८। तम्हा तिविहं बोसरिहिदित्ति उक्कस्सयाणि दठबाणि । सोसित्ता भ. आ./मू./६४६-६७० का भावार्थ [१. चार परिचारक सावधानी संविरलिय चरिमाहारं पायासेज्ज ।६०। पासित्तु कोइ तादी तीर पूर्वक क्षपकके हाथ पाँव दबाना, चलने-फिरनेमें सहारा देना, पत्तस्सिमेहिं कि मेत्ति । वेरगमणुप्पत्तो संवेगपरायणो होदि ६६१॥ मुलाना, मैठाना, खड़ा करना. करवट दिलाना, पाँव पसारमा व 148 देसं भोच्चा हा हा तीर...६६३। सव्वं भोच्चा धिद्धी सिकोड़ना आदि उपकार करते हैं।६४-६५०। २. चार मुनि विक तीरं...६६४ कोई तमादयित्ता मणुण्णरसवेदणाए संविद्धो। तं चेवथाओंका त्यागकर क्षफ्कको असन्दिग्ध, मधुर, हृदयस्पर्शी. मुखकर. णुबंधेज्ज हु सव्वं देस'च गिद्धोए।६-क्षपकको आहार न दिखातथा हितप्रद धमोपदेश देते हैं । ६५१-६५३॥ ३, भिक्षा लब्धि युक्त कर ही यदि तीन प्रकारके आहारोंका त्याग कराया जायेगा तो वह चार मुनि याचनाके प्रति ग्लानिका त्याग करके क्षपकके लिए उसकी क्षपक किसी आहार विशेषमें उत्सुक होगा 1६८१। इसलिए अच्छेरुचि व प्रकृतिके अनुसार उद्गमादि दोषों रहित आहार मांगकर अच्छे आहारके पदार्थ बरतनोंमें पृथक् परोसकर उस क्षपकके समीप लाते हैं।६। (दे. अपवाद/३/३) ४ चार मुनि उसके लिए लाकर उसे दिखाना चाहिए।१६०। ऐसे उत्कृष्ट आहारको देखकर पीने योग्य पदार्थ माँगकर लाते है ।६६३। ( दे. अपवाद। कोई क्षपक 'मैं तो अब इस भवके दूसरे किनारेको प्राप्त हुआ हूँ, इन ३/३)। १. चार मुनि उस मांगकर लाये हुए आहार व पानके आहारोंकी अब मुझको कोई आवश्यकता नहीं है ऐसा मनमें समझपदार्थोकी चूहों आदिसे रक्षा करते हैं।६६४। (दे. अपवाद/३/३)। कर भोगसे विरक्त व संसारसे भययुक्त होकर आहारका त्याग कर ६. चार मुनि क्षपकको मलमूत्र करानेका तथा उसकी वसतिका देता है।६४ कोई उसमें से थोड़ा सा खाकर ६६३. और कोई सम्पूर्णसंस्तर व उपकरणोंको शोधनेका कार्य करते हैं।६६१७. चार मुनि का भक्षण करके उपरोक्त प्रकार ही विचारता हुआ उसका त्याग क्षपककी वसतिकाके द्वारका रक्षण करते हैं ताकि असंयतजन वहाँ कर देता है।६६४। परन्तु कोई क्षपक दिखाया हुआ भक्षण कर उसके प्रवेश न कर सके14441८. तथा चार मुनि धर्मोपदेश देनेके मंडपके स्वादिष्ट रसमें लुब्ध होकर उस सम्पूर्ण आहारको बारम्बार भक्षण द्वारकी रक्षा करते हैं।६६६६ १. चार मुनि क्षपकके पास रातको करनेकी इच्छा रखता है अथवा उसमें किसी एक पदार्थको बारम्बार जागरण करते हैं।६६७४ १०. और चार मुनि उस नगर या देशकी खानेकी अभिलाषा रखता है। [ ऐसा क्षपक कदाचित निर्याशुभाशुभ वार्ताका निरीक्षण करते हैं ।६६७। ११. चार मुनि आग पकका उपदेश सुनकर उससे विरक्त होता है (दे. शीर्षक सं०११) न्तुक श्रोताओं को सभामण्डपमें आक्षेपणी आदि कथाओंका तथा स्व और इसपर भी विरक्त न हो तो धीरे-धीरे क्रमपूर्वक उसका प्ररयाव पर मतका सावधानी पूर्वक उपदेश देते है, ताकि क्षपक उसे न ख्यान कराया जाता है। (वे. सल्लेखना/४/११)] सुन सके ।६५८। १२. चार वादी मुनि धर्मकथा करने वाले उपरोक्त मुनियोकी रक्षार्थ सभामें इधर-उधर घूमते हैं ।६६।। ९. कदाचित् क्षपकको उग्र वेदनाका उद्रेक ७. क्षपककी वैयावृत्ति करते हैं भ. आ./पू./१५०१-१५१० अहवा तण्हादिपरसिहेहिं खवओ हविज्ज भ. आ./मू./गा. तो पाणएण परिभाविदस्स उदरमलसोधणिच्छाए । अभिभूदो। उवसग्गेहिंव खवओ अचेदणो होज्ज अभिभूयो ।१५०१। मधुरं पज्जेदव्यो मंडं व विरेयणं खवयो।७०२। आणाहवत्तियादीहि तो वेदणावसठ्ठी वालिदो वा परीसहादीहिं । खवओ अणप्पवसिओ वा वि कादवमुदरसोधणयं । वेदणमुप्पादेज्ज हु करिसं अस्थतयं सो विप्पलवेज्ज जं कि पि ।१५०२। उन्भासेज्ज व गुणसेढीदो उदउदरे ७०३ वेज्जावच्चस्स गुणा जे पुव्वं विच्छरेण अक्खादा। तेसिं रणबुद्धिओ ववओ। छठें दोच्चं पढ़मं वसिया कुटिलिदपदमिफिडिओ सो होइ जो उवेक्खेज्ज त खवयं ।१४६६। तो तस्स च्छतो ।१५०३। चेयंतोपि य कम्मोदएण कोह पर सहपरखो। तिगिछा जाणएण खवयस्स सव्वसत्तीए । विज्जादेसैण बसे पडिकम्म उन्भासेज्ज वउक्कावेज्ज व भिदेज्ज व पदिण्णं ।१५१०-भूख-प्यास होइ कायव्यं ।१४६)-पानक पदार्थ का सेवन करनेवाले क्षपकको इत्यादि परिषहोंसे पीड़ित हो कर क्षपक निश्चेत होगा अथवा भ्रान्त पेटके मलकी शुद्धि करनेके लिए मॉडके समान मधुर रेचक औषध होगा, अथवा मूच्छित होगा ।१५०१॥ वेदनाकी असह्यतासे दुःखी देना चाहिए ।७०२। उसके पेटको सेंकना चाहिए तथा सेंधा नमक होकर, परिषह और उपसर्गसे व्याकुल होकर क्षपक आपेमें नहीं आदि पदार्थोकी बत्तो बनाकर उसकी गुदामें प्रवेश कराना चाहिए। रहेगा. जिससे वह बड़-बड़ करेगा ।१५०२॥ अयोग्य भाषण मोलेगा, ऐसा करनेसे उसके उदरका मल निकल जाता है ।७०३। वैयावृत्त्यके संयमसे गिरनेको बुद्धि करेगा। रात्रिको भोजन-पान करनेका अथवा गुणोंका विस्तारसे पूर्व में वर्णन किया गया है (दे. वैयावृत्त्य ) । दिनमें प्रथम भोजन करनेका विचार उसके मनमें उत्पन्न होगा जो निर्यापक क्षपककी उपेक्षा करता है वह उन गुणोंसे भ्रष्ट होता ११५०३। कोई क्षपक सावध होकर कर्मोदयसे परिषहोंसे व्याकुल होकर है।१४६६। रोगका निदान जानने वाले मुनिको वैद्यके उपदेशानुसार जो कुछ भी उचित-अनुचित भाषण करेगा। अथवा ली हुई प्रतिअपनी सर्व शक्तिसे क्षपकके रोगका परिहार करना चाहिए।१४६७। ज्ञाओंका भंग करेगा ।१५१०। दे. सल्लेखना/५/६ [क्षपकके हाथ-पाँव दमाना, उसे उठाना, बैठाना, चलाना, सुलाना, करवट दिलाना, मल-मूत्र कराना, उसके लिए आहारादि मांग कर लाना इत्यादि कार्य निर्यापक व परिचारक १०. उपरोक्त दशामें भी उसका त्याग नहीं करते नित्य करते हैं।] दे. अपवाद/३/४-५ [ जीभ और कानोंकी सामर्थ्य के लिए क्षपकको कई म.आ./मू./१११ण हु सो कडुवं फरस व भाणिदव्यो ण खोसिदब्बो मार तेल व कषायले पदार्थोके कुलले कराने चाहिए। उदरमें मलका य। ण य वित्तासेदव्यो ण य वट्टदि हीलणं कादु' ।१५१११ प्रतिज्ञा शोधन करने के लिए निमा करना, सर्दी में उष्णोपचार और गरमी- भंग करने पर भी निर्यापकाचार्य उसे कड़वे और कठोर शब्द न बोले, में शीतोपचार करना तथा अंग मर्दन आदि रूपसे उसकी सेवा उसकी भर्सना न करे, उसको भय न दिखावे अथवा उसका अपकरते हैं। मान न करे।९५९१३ जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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