Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 4
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 549
________________ हेमराज (पांडे) ५४२ ह्रीमंत प्रेक्षा), विषष्टि पुरुष चरित । समय-ई, १०८८-११७३ । (सि. वि./ ४२. महेन्द्र) (प.प्र./प्र७४,११७, A.N. Up.) (का.अ./प्र.१७ A. N.UP.)। हेमराज (पांड)-यह पण्डित रूपचन्दके शिष्य थे। कृतिप्रवचनसार टीका, पञ्चास्तिकाय टीका, भाष्य भक्तामर, गोम्मटसार वचनिका, नयचक्र बच निका, सितपट चौरासी बोल (श्वेताम्बरियोंपर आक्षेप) समय--वि. श. १७-१८ (पं.का. प्र/३. पन्नालाल ); (हि. जै. सा. इ./१३१ कामता )। हैमवत-१. पहले भारतवर्षका ही दूसरा नाम रहा है। यथाइमं हैमवतं वर्ष भारतं नाम विश्रुतम् । (मत्स्य/११२/२८) - आगे चलकर वह स्वतन्त्र एक वर्ष मान लिया गया है। यथा--इदं तु भारतं वर्ष ततो हैमवतं परम् । (भारत भीष्म/६/७ ); (ज. प./प्र./ १४२ A. N. Up.) । २. रा. वा./३/१०/१/१७२/१७ हिमवन्नाम पर्वतः तस्यादूरभवः सोऽस्मिन्नस्तीति वाणि सति हैमवतो वर्षः । = [अढाई द्वोपों में स्थित प्रसिद्ध द्वितीय क्षेत्र है ] हिमवान नामके पर्वतके पासका क्षेत्र, या जिसमें हिमवान् पर्वत है वह हैमवत है। २. हैमवत इस क्षेत्रका अवस्थान व विस्तारादि-दे. लोक/३/३; ३. हैमवत क्षेत्र में काल वर्तनादि सम्बन्धी-दे. काल; ४. हिमवान् पर्वतपर स्थित एक कूट व देव-दे. लोक/५/४५. महामिवान् पर्वतस्थ कूट व उसका स्वामी देव-दे. लोकाश६.रुचक पर्वतस्थ एक कूट--दे. लोक/५/१३ ॥ हैमी नाममाला-दे. शब्दकोष ! हैरण्यवत-१. रा.वा./३/१०/१७/१८१/१६ हिरण्यवान् रुक्मिनामा पर्वतस्तस्थादूरभवत्वाद्धरण्यवतव्यपदेशः। = [अढाई द्वीपस्थ प्रसिद्ध छठा क्षेत्र है ] रुक्मिके उत्तर शिखरीके दक्षिण तथा पूर्व पश्चिम समुद्रोंके बीच हैरण्यवत क्षेत्र है । २. हैमवत क्षेत्रका अवस्थान व विस्तारादिदे. लोक/३/३॥ ३. हैमवतक्षेत्रमें काल वर्तन आदि सम्बन्धी विशेषता----दे. काल/४/१३॥ ४. रुक्मि पर्वतस्थ एक कूट व उसका स्वामी देव-दे. लोक,५/४६५.शिखरी पर्वतस्थ एक कूट ब उसका स्वामी देवदे. लोक/। होय्सल-यह नगर कर्नाटक (दक्षिण ) में है। यहाँके राज्यके आधीन ही जैनियों का प्रसिद्ध स्थान मूडबिद्री रहा है (ध./३॥ प्र.५) । होलोरेणुका चरित-पं. जिनदास द्वारा वि. १६८० में लिखित ७ अध्याय ४३ श्लोक प्रमाण पंचनमस्कार महात्म्य प्रदर्शक संस्कृत काव्य । (ती./४/८४)। ह्य नसांग-एक चीनी यात्री था। राजा हर्षवर्धनके समय भारतमें आया। समय--ई.६३०-६४५ (न्यायावतार । प्र.२ सतीश चन्दविद्याभूषण के अनुसार वह ई. ३२६ में भारत आया था। (वर्तमान भारतका इतिहास)। ह्रद-प्रत्येक वर्षधर पर्वतपर स्थित हैं। जिसमेंसे गंगा आदि नदियाँ निकलती हैं। दे. लोक /३/F ! ह्रस्व-ध./१३/५, ५,४७/२४८/३। एकमात्री ह्रस्वः। = एक मात्रा __ वाला वर्ण ह्रस्व होता है। ह्रस्व स्वर-दे. अक्षर । ही-१. हैमवत पर्वतस्थ एक कूट--दे. लोक/५/४,२. हैमवत पर्वतस्थ महापद्म ह्रद तथा ह्रीकूटकी स्वामिनी देवी-दे. लोकश६३.रुचक पर्वतस्थ निवासिनी दिक्कुमारी देवी--दे. लोक/५/१३। ह्रीमत-राजगृहमें स्थित एक पर्वत--दे. मनुष्या। इति चतुर्थः खण्डः समाप्तोऽयं ग्रन्थः जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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