Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 4
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 484
________________ प्रमाण Jain Education International स्पर्श गुणस्थान स्थान |स्वस्थान स्वस्थान | विहारक्त स्वस्थान बेदना कषाय समुद्धात वैक्रियिक समुद्धात मारणान्तिक समुद्धात उपपाद । तैजस आहारक व केवलि समुद्रात जीवोंके वर्तमान काल स्पर्शकी ओघ प्ररूपणा-(ध.४/१.४.२-१०/१४५-१७३) १४ | मियादृष्टि । | सर्व | त्रि./असं.. ति./स.. सर्व मारणान्तिकवव त्रि./असं., ति./सं. मरअसं. मरअसं. १४६॥ सासादन २ च./असं., म. असं. च./असं., मरअसं. च./असं., मझअसं, च./असं, मअसं. च./असे., मरअसं. सम्यग्मिध्यादृष्टि ६६ असंयत सम्यग्दृष्टि ४ । त्रि./असं., त्रि./असं.,ति./सं., | त्रि./असं , ति./सं. | त्रि./असं., वि./सं.. ति./सं., मरअसं. | मरअसं. मरअसं. मरअसं. त्रि./असं., ति./सं.. मारणान्तिकवत मरअसं. संयतासंक्त For Private & Personal Use Only जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश १७० प्रमत्त संयत ६ च./असं.,म./सं. | च./असं., म./सं. | च./असं., म./सं. | च./असं., म./सं. च./असं.,मरअसं. ... तेजस - च./असं., म./सं. बाहारक - अप्रमत्त संयत उपशामक । क्षपक ७२ सयोगकेवली च./असं., म./सं. ... दण्ड-- च./असं., मरअसं. कपाटकायोत्सर्ग- ४५००,००० योज.प्र. उपविष्ट १०००.००० योx१ज.प्र. प्रतर - वातवलय रहित सर्व लोकपूरण सर्व ३. स्पर्श विषयक प्ररूपणाएं १७२ अयोगकेवलो । १४ www.jainelibrary.org

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