Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 4
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 482
________________ स्पर्श यह संयोगी भंग (4x४३१ + १२xxxx -०२० / ०२०-१ | - १॥ जीवके साथ जीव के स्पर्श रूप बन्ध का भंग' गसके साथ युगल के स्पर्श रूप भाग (मो. क. सु. ००) कुल भंग स्पर्श द्वय एकक्षेत्र अनन्तरक्षेत्र देश कर्मस्पर्श त्वक्स्पर्श स्पर्श स्पर्श सर्वस्पर्श बन्धस्पर्श भव्य स्पर्श भावस्पर्श ।} ।।। ३. निक्षेपोंकी अपेक्षा भेद दृष्टि नं. २ ष, खं. १३/५,३ / सू. ४-३३ / पृ. ३-३६ १/३ Jain Education International Jeblika पाँच शरीरोंके पर स्पर संयोगी भंग ३१- पुनरुक्त भंग १७- १४ ०६/ आठ कम क | परस्पर संयोगी भंग ६४- पुनरुक्त • २८३६ ३८/३ दे. निक्षेप २) में दिये गये सर्व भेद नोआगम आगम M = ६५ कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, स्निग्ध, रूक्ष, शीत, उष्ण इन स्पर्शक २४/२४ । ( संयोगी भंग = २५५ भंग ६३ अधर्म, धर्म, आकाश व काल इन छह द्रव्यों जीव, पुद्गल, के परस्पर संयोगी ४७५ प. ९३/४.३.२४/२/२ एरच केचि आइरिया कडा विकासानं पहाणीकयाणं एवादिसंजोगेहि फासभंगे उप्पायंति, तण्ण घडदे गुणाणं निस्सहावणं गुणेहि फासाभावादो ... अधवा सुत्तस्स देसामा सिय ते.... सगंतो से संतराणमदृष्णं फासाणं संजोए पंचवं चासभंगा उप्पारयन्वा । - यहाँ कितने ही आचार्य प्रधानताको प्राप्त हुए ककश आदि स्पर्शोके एक आदि संयोगों द्वारा स्पर्श ग उत्पन्न कराते हैं; परन्तु वे बनते नहीं; क्योंकि गुण निस्वभाव होते हैं, इसलिए उनका अन्य गुणोंके साथ स्पर्श नहीं बन सकता ।... अथवा सूत्रदेशामर्शक होता है। अतएव अपने भीतर जितने विशेष प्राप्त होते हैं, उन सबके साथ आठ स्पर्शोके संयोग से दो सौ पचपन भंग उत्पन्न कराने चाहिए । पुसदि ५. निक्षेप रूप भेदोंके लक्षण पघला टी./९६/५१/ नं./१.नंद सो सम्वोदव्व फासो णाम । (१२/११)' 'जं दव्वमेवखेत्तेण पुसद सो सव्बो एक्वत्तफासो णाम ( १४ / १६ ) ' एक्कम्हि आगासपदेसे दिवाणसनवारण संजोग वा जो फासो - एक्सफासो नाम बहुवाणं दव्वाणं अक्षमेण एतण दुवारेण वा एयक्स्खेत्तफासो वत्तव्वो । 'जं दव्वमणं तरवखेत्तेण पुसदि सो सब्त्री अनंतर खेत्तफासो णाम (१६/१७) दुपदेसट्ठिददव्वाणमण्येहि दो आगासपदेस दहि जो फासो सो असरसफासो गाम...एवं संत समागमारा जो फासो सो एयन्त फासो काम असमानोगाहा को फासो सो सरसफासो णाम । कधमणंतरत्तं । समाणासमाणवखेत्ताणमंतरे खेत्तंतराभावादो । एवमणं तरखेत्तफा सपरूत्रणा गदा । - 'जं दव्वदेसं देसेण पुसदि सो सबो देसफासो णाम (१८/१८) एगस्स दव्वरस देसं अवयवं जदि [ देसेण] [] अणदम्यदेश अप्पलो अवश्येग प्रसदि तो देसफासो ि दयोदयं वा गोवा पुसदि सो यो तयफासो गाम (२०/१६) एसो तमासा अंतभावं कि ग ण, तय-गोतयाणं खंधम्हि समवेदाणं पुध दव्वत्ताभावादो। संध-तयगोतयाणं समूहो दव्त्रं । ण च एक्कम्हि दब्बे दबफासो अस्थि, विरोहादो !... तयफासो देसफासे किण्ण पविसदि । ण णाणदव्वविसए देसफासे एमदसियरस तयफासरस पवेसविरोहादो १. भेद व लक्षण द स वे फुर्सद सहा परमाणुव्यमिदि सोसयो फासो णाम । (२२/२१)' 'सो अट्ठविहो- कक्खडफासो मउवफासो गरुबफासो लहमकास गिफासो पासो सीपकासोउफासो सो फासफासो नाम (२४ / २४ ) स्पृश्यत इति स्पर्शः कर्क शादिः स्पृश्यत्यनेनेति स्पर्शस्लमिन्द्रियं तयोर्द्वयोः स्पर्शयोः स्पर्शः स्पर्शस्पर्शः ॥ सी अट्ठविहीणागावरणीय दंसणावरणीय वेणीय मोहणीय-आउअ णामा गोद - अंतराइय-कम्मफासो । सो सम्पो कम्मफासो नाम (२६/२६) अट्ठकम्माणं जीवेण विस्सासोचहिय शोकम्मे हि य जो फासो सो दफा पददिति एथ ण बुच्चदे, कम्भाणं कम्मे हिजो फासो सो कम्मफासो ति एथ घे तन्त्र । - ' सो पंचविहो- ओरालि यसरीरबंधफासो एवं वेउब्वियआहार - तेया कम्मइयसरीरबंधफासो । सो सवो बंधकासो णाम । (२८/३०)' बनातीति बन्धः । औदारिकशरीरमेव बन्धः औदारिकशरीरबन्धः । तस्स बंधस्स फासो ओरालियसरीरवंधफासो णाम । एवं समासरीनं धफासा पति-पंजरकंदय- वग्गुरादीणि कत्तारो समोद्दियारो य भवियो फुसणदाए जो य पुण ताव तं फुसदि सो सव्वो भवियफासो नाम ( ३० / ३४ ) ' 'उदो पाहुजाण सोसम्बी भायफासो णाम (२२ / ३५) १. एक द्रव्य दूसरे द्रव्य स्पर्शको प्राप्त होता है वह राम अयस्पर्श है | १२ | २. जो द्रव्य एक क्षेत्रके साथ स्पर्श करता है वह सब एक क्षेत्रस्पर्श है | १४ | एक आकाश प्रदेशमें स्थित अनन्तानन्त पुद्गल स्कन्धों का समवाय सम्बन्ध या संयोग सम्बन्ध द्वारा जो स्पर्श होता है वह एक क्षेत्रस्पर्श कहलाता है । अथवा बहुत द्रव्योंका युगपत् एक क्षेत्रके स्पर्शन द्वारा एक क्षेत्र स्पर्श कहना चाहिए। ३. जो द्रव्य अनन्तर द्रव्य के साथ स्पर्श करता है वह सब अनन्तरक्षेत्र स्पर्श है | १६ | दो प्रदेशों में स्थित द्रव्योंका दो आकाशके प्रदेशोंमें स्थित अन्य द्रव्यों के साथ जो स्पर्श होता है वह अनन्तर क्षेत्रस्पर्श है ।.... इस स्थिति में ( एक शब्द संख्यावाची नहीं समानवाची हैं ) समान अवगाहना वाले स्कन्धोंका जो स्पर्श होता है वह एक क्षेत्रस्पर्श है। और असमान अवगाहना वाले स्कन्धोंका जो स्पर्श होता है वह अनन्तरक्षेत्र स्पर्श है । क्योंकि समान और असमान क्षेत्रोंके मध्य में अन्य क्षेत्र नहीं उपलब्ध होता, इसलिए इसे अनन्तरपना प्राप्त है । ४. जो द्रव्य एक देश एक देश के साथ स्पर्धा करता है वह सब देशस्पर्श - जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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