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स्वभाव
१. स्वभावके भेद लक्षण व विभाजन
१. स्वभाव सामान्यका लक्षण
१. सभाका निरुक्ति अर्थ
रा.मा./७/१२/२/५३६/८ स्वेनात्मना असाधारणेन धर्मेन भवनं स्वभाव इत्युच्यते । स्व अर्थात् अपने असाधारण धर्मके द्वारा होना सो स्वभाव कहा जाता है।
स. सा. / आ./७१ स्वस्य भवनं तु स्वभावः । 'स्व' का भवन अर्थात् होना वह स्वभाव है।
का. अ./ /४०८ घम्मी मरसहायो यस्तु स्वभावको धर्म कहते हैं। भाव संग्रह / ३७३) स. अनु. २३ वस्तुस्वरूपं हि प्राहु हो महर्षियोंने धर्म कहा है। स.श./टी./१/२२६/१८ स्वसंवेद्यो निरुपाधिकं हि रूपं वस्तुतः स्वमानोऽभिधीयते। स्वसंवेद्य निरुपाधिक हो वस्तुका स्वरूप है. वही वस्तुका स्वभाव है ।
२. स्वभावका लक्षण अन्तरंग भाव
क. पा. १ / ४,२२ / ६६२३ / ३८७/३ को सहावो । = अन्तरंग कारणको स्वभाव कहते हैं ।
महर्षयः ॥५३॥ रूपको
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अन्तरङ्गकारणं ।
घ. ७/२,४,४ / २३८ /७ को सहावो णाम । अभंतरभावो । = आभ्यन्तर भावको स्वभाव कहते हैं (अर्थात वस्तु या वस्तुस्थितिकी उस अवस्थाको उसका स्वभाव कहते हैं जो उसका भीतरी गुण है और माह्य परिस्थिति पर अवलम्बित नहीं है)
३. स्वभावका लक्षण गुण पर्यायोंमें अन्वय परिणाम
प्र. सा./त.प्र./१२.११ स्वभावोऽस्तिस्वसामान्यान्यथः २६५० स्वभावस्तु द्रव्यस्य धौव्योत्पादोच्छेदे क्यात्मक परिणामः ॥ द्रव्यका स्वभाव वह अस्तित्व सामान्य रूप अन्वय है | १५| स्वभाव द्रव्यका धौव्यउत्पादविनाशकी एकता स्वरूप परिणाम है | हा
प्र. सा./ता.वृ./८७/११०/१२ द्रव्यस्य कः स्वभाव इति पृष्टे गुणपर्यायाणामात्मा एव स्वभाव इति । प्रश्न- द्रव्यका क्या स्वभाव है ! उत्तर- गुण पर्यायोंकी आत्मा ही स्वभाव है ।
४. स्वभाव व शक्ति के कार्यवाची नाम
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दे. तत्व/१/१ तत्व, परमार्थ, द्रव्य, स्वभाव, परमपरम, ध्येय, शुद्ध और परम ये सब एकार्थवाची हैं।
दे. प्रकृति बन्ध १/१ प्रकृति, शक्ति, लक्षण, विशेष, धर्म, रूप, गुण तथा शील व आकृति एकार्थ वापी हैं।
२. स्वभाव सामान्यके भेद
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न. च. बृ / ५६ को उत्थानका स्वभावाद्विविधाः -- सामान्या विशेषाश्च । भाव दो प्रकार है- सामान्य, विशेष (पं. ध. पू. /२००)
१. स्वभावके भेद लक्षण व विभाजन
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का. अ./३१२ पं. जयचन्द - वे धर्म (स्वभाव) अस्तित्व, नास्तित्व, एकरव अनेकर, नित्यत्व, अनित्यत्व, भेदव, अभेदत्व, अपेक्षाव, अनपेक्षत्व, साध्यख पौषसाध्यत्व हेतुसाल आगम साध्यत्व अन्तर गरम बहिरंगर, इत्यादि तो सामान्य है। बहूरियन पर्यायव जीवरण, अजीवत्व स्पर्शत्व, रसस्य, गन्धर, वर्ण, शदश्य, शुद्ध अमूर्त अमूर्त व संसारित्व सिद्धत्व अवगाहत्य गति हेतुत्व, स्थिति हेतुत्व, वर्तनादेस्य इस्यादि विशेष धर्म है।
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३. सामान्य व विशेष स्वभावोंके भेद
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न. . ./५१-६० अथिति परिचिचं अश्विमे बगेगमेदिदर भव्वा भव्वं परमं सामण्णं सव्वदव्वाणं | ५६| चेदणमचेदणं पिहु मुत्तममुत्तं च एगबहुदे । सुद्वासुद्वविभावं उवयरियं होइ कस्सेव |६०1- अस्तित्व नास्तित्व, नित्य, अनिष्य, एक, अनेक, भेद, मेद, भव्य, अभव्य और परम । ये ११ सर्व द्रव्यों के सामान्य स्वभाव चेतन अचेतन सूर्त, अमूर्त एकप्रदेशी, बहुप्रवेशी, शुद्ध, अशुद्ध, विभाव और उपचरित ये १० स्वभाव द्रव्योंके विशेष स्वभाव हैं । [ इस प्रकार कुल २१ सामान्य व विशेष स्वभाव हैं । (न.च.वृ./ ७० ) ] ( १/४), (न../६१)
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४. उपचरित स्वभावके भेद व लक्षण
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आ. प. ६ स्वभावस्याप्यश्यत्रोपचारादुपचरितस्वभावः स द्वेधा-कर्मअस्वाभाविकभेदात् यथा जीवस्य मूर्तश्यमचे सभ्यत्वं यथा सिद्धामी परशता परदर्शकत्वं च एवमितरेषां द्रव्याणामुपचारो यथासंभयो ज्ञेयः । = स्वभावका भी अन्यत्र उपचार करनेसे उपचारित स्वभाव होता है वह उपचरित स्वभाव कर्म और स्वाभाविक भेदसे दो प्रकारका है। जैसे जीवका मूर्तत्व और अचेतनत्व कर्मजस्वभाव है। और fatar vrat देखना, परको जानना स्वाभाविक स्वभाव है । इस प्रकार दूसरे द्रव्योंका उपचार भी यथासम्भव जानना चाहिए । दे. पारिणामिक / २ अस्तित्व, अन्यस्व कर्तृत्व, भोक्तृत्व, पर्यायत्व, सर्वगतत्व अनादिसन्तति मन्धर, प्रदेशवस्य अरूप नित्यश्व
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आदि भाव च शब्दसे समुच्चय किये गये हैं । स.सा.///४० शक्तियाँ जीव द्रव्यमें ४० शक्तियों का नाम निर्देश किया गया है, यथा-१, जीवख २. चितिशक्ति, ३. दृशिशक्ति, ४ ज्ञानशक्ति, ५. सुखशक्ति, ६. दीर्यशक्ति, ७ प्रभुत्व, विधुव १. सर्वदक्षिण १०. सर्वज्ञव, ११. स्वच्छत्व १२. प्रकाशशक्ति, १३. असंकुचितविकाशत्व १४. अकार्यकारण, १५. परिणम्य. परिणामकरण १६. त्यागोपादानशून्यत्व, १७. अगुरुलघुख, १८. उत्पादन १६. परिणाम २०. अमूर्त २१. अ. २२. अभोक्तृत्व, २३. निष्क्रियत्व, २४, नियतप्रदेशत्व, २५. सर्वधर्म२४. साधारणासाधारणधर्मत्व २०. अधर्म २८ विरुद्धधर्म २१ १० ३९.३२. अनेकत्व, २३ भावशक्ति ३४ अभामशक्ति २५. भाषाभागशक्ति, ३६. अभावभावशक्ति, ३७. भावभावशक्ति, ३८. अभावभावशक्ति, २१. भावशक्ति, ४० कियक्ति ४१ कर्माति ४२. शक्ति, ४२. करणशक्ति ४४ सम्प्रदानशक्ति ४५ अपादानशक्ति, ४६ अधिकरणशक्ति, ४७ सम्बन्धशक्ति ।
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५. प्रत्येक द्रव्य में स्वभावों का निर्देश
न च बृ./७० इगवीसं तु सहावा दोण्डं तिण्डं तु सोडसा भणिया । पंचदसा पुर्ण काले दव्वसहावा य णायव्वा ॥७०॥ = जीवपुद्गल के २१ स्वभाव हैं, धर्म, अधर्म और आकाश द्रव्यके १६ स्वभाव कहे गये हैं। तथा काल द्रव्यके १५ स्वभाव जानना चाहिए।
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स. सा. / पं. जयचन्द / आ./क. २ वस्तुमें अस्तित्व, वस्तुत्व, प्रमेयत्व, प्रदेशस्व, चेतनत्व, अचेतनत्व, मूर्तिकरव, अमूर्तिकत्व इत्यादि तो गुण हैं।...एक अनेकरम, नित्य, अभियस्य मेदरव अभेदल शुद्धत्व अशुद्धत्व आदि अनेक धर्म हैं। वे सामान्य रूप तो बचन के गोचर हैं, किन्तु अन्य विशेष रूप धर्म वचनके विषय नहीं है। किन्तु वे ज्ञानगम्य हैं। आत्मा भी एक वस्तु है उसमें भी अनन्त धर्म है।
स. सा. / पं. जयचन्द / ४०४ आत्मामें अनन्तधर्म है, कितने तो छद्मस्थ के अनुभव गोचर ही नहीं है. कितने ही धर्म अनुभव गोचर हैं। कितने हो तो अस्तित्व, वस्तुरन प्रमेयस्यादि तो अन्य द्रव्योंके साथ सामान्य और कितने ही पर द्रव्यके निमित्तसे हुए हैं ।
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