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हूहू अंग
हूहू अंग कालका प्रमाण विशेष - दे. गणित/I/१/४ |
हृदयंगम - किंनर नामा या एकमेव
हेतु — अनुमान प्रमाणके अंगों में हेतुका सर्व प्रधान स्थान है, क्योंकि इसके बिना केवल विधि व उदाहरण आदिसे साध्यको सिद्धि नहीं हो सकती अन्य दर्शनकारोंने इस हेतुके सीम लक्षण किये हैं. पर स्याद्वाद मतावलम्बियोको 'अन्यथा अनुपपत्ति' रूप एक लक्षण ही इष्ट व पर्याप्त है। इस लक्षणकी विपरीत आदि रूपसे वृत्ति होनेपर वे हेतु स्वयं हेत्वाभास बन जाते हैं ।
१. भेद व लक्षण
१. हेतु सामान्यका लक्षण
१. अविनाभात्रीके अर्थमें
से उपलक्षित
घ. १३५.२.५०/२८७/३ हेतुः साध्याविनाभावि सिह अन्यथानुपपये लक्षणोपलक्षितः जो लिंग अन्यथानुपपत्तिरूप होकर साध्यका अविनाभावी होता है, उसे हेतु कहते हैं । प./३/१५ साध्याविनाभावेन निश्चितो हेतुः । १६।
जो साध्यके साथ अविनाभाविपनेसे निश्चित हो अर्थात् साध्यके बिना न रहे, उसको हेतु कहते हैं ।
न्या. दी./२/३३९/०६/५ साध्याविनाभावि साधन हेतु यथाइति इति या न्या. दी./३/६४६/१०/१५ साध्यान्यथानुपपत्तिमत्त्वे सति निश्चयपथप्राप्तत्वं खलु हेतोर्लक्षणम् । १. साध्यके अविनाभावी साधनके बोलने हेतु कहते हैं जैसे धूमपादा अन्यथा नहीं हो सकता. अथवा अग्नि होनेसे ही धूमवाला है । २• साध्यके होनेपर ही होता है अन्यथा साध्यके बिना नहीं होता तथा निश्चय पथको प्राप्त है अर्थात जिसका निश्चय हो चुका है वह हेतु है । ( और भी दे. साधन ) ।
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1 उपलब्धि
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विधिरूप अधि अन्वय हेतु
५३८.
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प्रतिषेधरूप विरुद्धोपलब्धि व्यतिरेकहेतु
हेतु
न्या. सू./मू./१/१/३४-३५ उदाहरणसाधर्थ्यात्साध्यसाधन हेतुः |३४| तथा वैधम्र्म्यात १३१ उदाहरणकी समानताके साध्यके धर्म के साधनको हेतु कहते हैं 158 अथवा उदाहरण के विपरीत धर्म से जो साध्या साधक है उसे भी हेतु पढ़ते हैं (न्या. सू. / भाग्य / १/१/३६/ ३८/११) ।
हेतु
२. स्वपक्षसाधकत्व के अर्थ में घ.१३/५.५.५०/२८७/४ तत्र स्वपक्षसिद्धये प्रयुक्तः साधनहेतुः । स्वपक्षकी सिद्धि लिए प्रयुक्त हुआ हेतु साधन हेतु है ( स मं तं / १० / ३ ) |
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२. पलके अर्थ
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पं.का./ता. १/२/६/१० हेतुफल हेतुशन्देन फलं कथं भव्यत इति चेत् । फलकारणात्फलमुपचारात् । फलको हेतु कहते हैं। प्रश्नहेतु शब्द से फल कैसे कहा जाता है 1 उत्तर- फलका कारण होनेसे उपचार से इसको फल कहा है।
★ साधनका लक्षण - दे. साधन ।
* साध्यका लक्षण - दे. पक्ष ।
★ कारणके अर्थमें हेतु - ३. कारण /१/१/२
२. देतुके भेद १. प्रत्यक्ष परोक्षादि
.प./१/३५-३६ दुनो मेदि हे... पञ्चपखपखमे एहिं ॥३५॥ सक्खापचक्रखा पर पञ्चवक्खा दोणि होदि पञ्चक्खा |... १३६ । हेतु प्रत्यक्ष और परोक्षके भेदसे दो प्रकार है ।५ प्रत्यक्ष हेतु साक्षात् प्रत्यक्ष और परम्परा प्रत्यक्षके भेदसे दो प्रकार है ३६ । (ध. १/१,१,१/ ५५/१० ) ।
दे. कारण / 1 /१/२ [ हेतु दो प्रकार है - अभ्यन्तर व बाह्य । बाह्य हेतु भी दो प्रकारका है आत्मभूत अमारमभूत
२. अन्वयव्यतिरेकी आदि
9.8./1/10-541
न्या. दी./१/४२-२८/८८-६६ ।
विविरूप अविरुद्वानुपलब्धि
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जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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अनुपलब्धि
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I प्रतिषेधरूप
विरुद्धानुपलब्धि
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