Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 4
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 525
________________ स्वर्ग ५१८ ५. स्वर्गलोक निर्देश प्रत्येक स्वर्ग के इन्द्रक या पटल श्रेणीबद्ध प्रत्येक पटल-1 प्रति दिशा कुल योग इन्द्रक विस्तार योजन ब्रह्म ब्रह्मोत्तर युगल में ४ अरिष्ट सुरसमिति देवसमिति ब्रह्म ब्रह्मोत्तर १८०३२२५३योजन १७३२२५८ॐ ॥ १६६१२९०३१ " १५९०३२२३६ , - लांतत्र कापिष्ठ युगल में २ ब्रह्मदय १५१९३५४३६ . १४४८३८७ॐ , लांतव १३७७४१९३३ " शुक्र महाशुक्र युगल में ३५) महाशुक्र - शतार सहस्रार युगल में १ सहस्रार - आनतादि चार में ६ १३०६४५१३६ ॥ आनत प्राणत पुष्पक १२३५४८३३१ . ११६४५१६ ॥ १०९३५४८३३ १०२२५८०३० " ९५१६१२२६ , ८८०६४५३ " शान्तकर आरण अच्युत नव ग्रैवेयक में ९ . सुदर्शन अमोष 11111111111111 यशोधर सुभद्र सुविशाल ८०९६७७३३ " ७३८७०९३१ " ६६७७४१३६ ॥ ५९६७७४३६ , ५२५८०६३१ , ४५४८३८३२ , ३८३८७०३ , ३१२९०३७५ २४१९३५३५ , सुमनस सौमनस प्रीतिकर सब अनुदिश व पंचअनुत्तर में १ आदित्य सर्वार्थसि. १७०९६७३३ . १००००० . जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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