Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 4
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 535
________________ स्वामित्व स्वामित्व ५२८ ३. मोहनीय कर्म सत्वके स्वामित्व विषयक ओघ भादेश.प्ररूपणा-(क.पा, मूल या उत्तर विषय उत्कृष्टानुत्कृष्ट भुजगारादि पद ज. उ. वृद्धि हानि षट् स्थान वृद्भि-हानि स्वामित्व सामान्य १. प्रकृति सत्त्व राग व द्वेष भाव सामान्य कर्म सत्ता व असत्ता सामान्य कर्म सत्व असत्त्व ३/३३ २/६३६ उत्तर २/१११० २/१३ २/६३१३ २/३१ २/४ २/838 परस्पर सन्निकर्ष २८, २४, २३ आदि स्थानोंकी | समुत्कीर्तना २. स्थिति सत्त्व ३/३४ २] उत्तर ३. अनुभाग सत्व ३/६३२२ ५/१४२ ५/ उत्तर - व भुजगारादि ज.उ. वृद्धि हानि स्वामित्व सामान्य स्थानोंकास. प्रकृति उत्कृष्टानु• त्कृष्ट भुजगारादि ज. उ. वृद्धि ____ हानि षट् स्थान वृद्धि हानि स्वामित्व सामान्य उत्तर १. अष्ट कर्म उदीरणाके स्वामित्व विषयक ओघ आदेश ५. अष्टकर्मोदय स्वामित्व सम्बन्धी ओघ आदेश प्ररूपणा प्ररूपणा (ध. १५/पृष्ठ सं.) (ध. १५/पृष्ठ सं.) मूल मूल जघन्य भंगों या || .. क्र. प्रकृति मूल व उत्तर स्वामित्व १. प्रकृति उदोरणा १ प्रकृति उदय१। अष्टकर्म । मूल ४६-४८ ५१ ५३ ४४-४६ || अष्टकर्म मूल २ ज्ञाना,दर्शना उत्तर ८१-८३ | १७-६६ ३ वेदनीय मोह , , ८१-८३ २ स्थिति उदय[४ आयु, नाम ८१:८३ गोत्र, अन्तरा अष्ट कर्म | २१० २६४ २६५ | २६५ ८६-६६ २६५ उत्तर २८५ १४-६१ उत्तर २८५ २८६ १ उत्तर २६५ १७ २ स्थिति उदीरणा। अष्टकर्म | मूल | १०४३ अनुभाग उदीरणा ३ अनुभाग उदय| अष्टकर्म | मूल २६५ उत्तर - २६५ २६५ २६६ २३७ | ४ प्रदेश उदय ४ प्रदेश उदोरणा१ अष्टकर्म | मूल २६३, अष्टकर्म | मूल | २६६२६६२६६ उत्तर | २६७- | ३२५ ३३२ ३३४ २७१ जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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