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स्वर्ग
५. स्वर्गलोक निर्देश
१. श्रेणी बद्धोंके नाम निर्देश
च । पुवावरद क्विण उत्तरेण आदिच्चदो होति।३३८। विजयं च वेजयंतं जयंतमपराजियं च णामेण । सव्वट्टस्स दु एवे चदुसु वि य दिसामु चत्तारि ३४० =अचि, अचिमालिनी, दिव्य, वैरोचन और प्रभास ये चार विमान आदित्य पटल के पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और उत्तरमें हैं ।३३८। विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित ये चार विमान सर्वार्थ पटलकी चारों ही दिशाओं में स्थित है।३४०।
___ सौधर्म युगल के ३१ पटल ' (पटलों के नामों में अन्तर-दे-स्वर्ग/५॥३)
चित्र सं.
पर
सिनत्कुमार माहेन्द्रकल्प
उन्तराल
ति. प./८/८७-१०० णियणियमाणि सेढिमधेसु । पढमेसुं पहमज्झिमबावत्तविसिद्वजुत्ताणि हा उड्डईदयपुवादी सेढिगया जे हुवंति बासट्ठी। ताणं विदियादीणं एक्कदिसाए भणामो णामाई 101 संठियणामा सिरिवच्छवट्टणामा य कुसुमजावाणि । छत्तंजणकलसा... 1१६। एवं चउसु दिसासु णामेस दक्विणादियदिसामु । सैढिगदाणं णामा पीदिकर इंदयं जाव।६८ आइच्चइंदययस्स य पुव्वादिसु लच्छिलच्छिमालिणिया। वइरावइरावणिया चत्तारो वरविमाणाणि 1881 विजयंतबहजयंत जयंतमपराजिदं च चत्तारो। पुवादिसु माणाणि ठिदाणि सबसिद्धिस्स । १००। १. ऋतु आदि सर्व इन्द्रकोंकी चारों दिशाओं में स्थित श्रेणी बद्धों में से प्रथम चारका नाम उस-उस इन्द्र के नामके साथ प्रभ, मध्यम. आवर्त व विशिष्ट ये चार शब्द जोड़ देनेसे बन जाते हैं । जैसे-ऋतुप्रभ, ऋतु मध्यम, ऋतु आवर्त
और ऋतु विशिष्ट । २. ऋतु इन्द्र के पूर्वादि दिशाओं में स्थित, शेष द्वितीय आदि ६१-६९ विमानों के नाम इस प्रकार हैं। एक दिशाके ६१ विमानोंके नाम-संस्थित, श्रीवत्स, वृत्त, कुसुम, चाप, छत्र, अंजन, कलश आदि हैं। शेष तीन दिशाओंके नाम बनानेके लिए इन नामोंके साथ 'मध्यम', 'आवर्त' और 'विशिष्ट ये तीन शब्द जोड़ने चाहिए। इस प्रकार नबग्रैबेयकके अन्तिम प्रीतिकर विमानतकके श्रेणी बद्धों के नाम प्राप्त होते हैं। ३. आदित्य इन्द्रककी पूर्वादि दिशाओं में लक्ष्मी, लक्ष्मीमालिनी, वज्र और वज्रावनि ये चार विमान है। विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित ये चार विमान सर्वार्थ सिद्धिकी पूर्वादि दिशाओं में हैं। ह.पु./६/६३-६५ अचिराद्य परं ख्यातमचिमालिग्यभिख्यया। बज्र' वैरोचनं चैव सौम्यं स्यात्सौम्यरूप्यकम् ।६३। अङ्क च स्फुटिक चेति दिशास्वनुदिशानि तु। आदित्याख्यस्य वर्तन्ते प्राच्याः प्रभृति सक्रमम् ६४ा विजयं वैजयन्तं च जयन्तमपराजितम् । दिक्षु सर्वार्थसिद्धेस्तु विमानानि स्थितानि वै ।६।। - अनुदिशोंमें आदित्य नामका विमान बीच में है और उसकी पूर्वादि दिशाओं तथा विदिशाओं में क्रमसे-अर्चि, अचिमालिनी, वज्र, वैरोचन, सौम्य, सौम्यरूपक, अंक और स्फटिक ये आठ विमान हैं। अनुत्तर विमानों में सर्वार्थ सिद्धि विमान बीच में है और उसकी पूर्वादि चार दिशाओं में विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित ये चार विमान स्थित हैं।
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२६.नंद्यावत VINALYAHALA२५. वज़MINIMIHINI VIMANIMA२४ लोहित/WWMINIMIMIMMIN NAMA२३. पनमाल INDIA Vilm २२. हारिद/IANNUINALAAIIA
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MAHARANAM VIHIE.अरुण HINA५. वीर THANIINIA VIR बल्गु W/३ चन्त H UITM २ . विमला
ज. प./११/३३८-३४० अच्ची य अच्चिमालिणी दिवं वइरोयणं पभासं
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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