Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 4
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 520
________________ स्वर्ग ३. वैमानिक इन्द्रोंका निर्देश ७. वैमानिक इन्द्रोंके परिवार देवोंकी देवियाँ (ति. प./८/३१६-३३० ); (रा. बा./४/१६/८/२२५-२३५ ) । कल्प इन्द्रोंके नाम परिवार देव देवीका पद सौधर्म ईशान सनत्कुमार माहेन्द्र लान्तव कापिष्ठ शुक्र शतार महाशुक। सहस्रार आनत-प्राणत आरण-अच्युत ब्रह्मोत्तर प्रतीन्द्र सामानिक त्रायस्त्रिश अग्र देवी परिवारदेवी अपने इन्द्रों के समान १००० २००० अग्र देवी प्रत्येक(लोकपाल अभ्यन्तर पारिषद २०० ३०० ४०० ४ २०० ३०० ६०० ६०० बाह्य , अनीक मह अनौकआत्मरक्ष २०० . ज्येष्ठ " वल्लभा" उपदेशनष्ट प्रकीर्णक आदि ४. वैमानिक देवियोंका निर्देश १. वैमानिक इन्द्रों की प्रधान देवियोंके नाम ८. वैमानिक इन्द्रोंके परिवार, देवोंका परिवार व विमान आदि ति.प./१२८६-३०४ का भावार्थ-प्रतीन्द्र, सामानिक व प्रायस्त्रिंशमें प्रत्यैकके १० प्रकारके परिवार अपने-अपने इन्द्रों के समान हैं ।२८६ सौधर्मादि १२ इन्द्रोंके लोकपालों में प्रत्येक सामन्त क्रमसे ४०००, ४०००,१०००,१०००, ५००,४००, ३००, २००,१००, १००,१००,१०० है १२८७-२८८। समस्त दक्षिणेन्द्रों में प्रत्येकके सोम व यम लोकपालके अभ्यन्तर आदि तीनों पारिषदके देव क्रमसे ५०,४०० व ५०० हैं ।२८६। वरुणके ६०,५००.६०० है तथा कुबेरके ७०, ६००,७०० हैं ।२६०॥ उत्तरेन्द्रों में इससे विपरीत क्रम करना चाहिए ।२६० सोम आदि लोकपालोंकी सात सेनाओं में प्रत्येककी प्रथम कक्षा २८००० और द्वितीय आदि ६ कक्षाओं में उत्तरोत्तर दुगुनी है। इस प्रकार वृषभादि सेनाओं में से प्रत्येक सेनाका कुल प्रमाण २८०००४१२७४३५५६००० है ।२६४। और सातों सेनाओंका कुल प्रमाण ३४५६०००४७-२४८६२००० है।६सौधर्म सनत्कुमार व ब्रह्म इन्द्रों के धार-चार लोकपालों में से प्रत्येकके विमानों की संख्या ६६६६६६ है। शेषकी संख्या उपलब्ध नहीं है.।२६७,२६६,३०२। सौधर्म के सोमादि चारों लोकपालोंके प्रधान विमानों के नाम क्रमसे स्वयंप्रभ, अरिष्ट, चलप्रभ और वलगुप्रभ हैं ।२६ शेष दक्षिणेन्द्रों में सोमादि उन लोकपालोंके प्रधान विमानोंके नाम क्रमसे स्वयंप्रभ, वरज्येष्ठ, अंजन और बलगु है।३००। उत्तरेन्द्रों के लोकपालोंके प्रधान विमानोंके नाम क्रमसे सोम (सम), सर्वतोभद्र, सुभद्र और अमित हैं ।३०१। दक्षिणेन्द्रोंके सौम और यम समान ऋद्धिवाले हैं; उनसे अधिक वरुण और उससे भी अधिक कुबेर है।३०३। उत्तरेन्द्रोंके सोम और यम समान ऋद्धिवाले हैं। उनसे अधिक कुबेर और उससे अधिक वरुण होता है ।३०४। ति.प./८/३०६-३०७,३१६-३१८ अलमाणा अच्चिणिया ताओ सबिदसरिसणामाओ। एक्केक्कउत्तरिंदे तम्मेत्ता जेठ्ठदेवीओ।३०६। विण्हा या ये पुराई रामावइरामरक्खिदा वसुका। वसुमित्ता वसुधम्मा वसंघरा सवईद समणामा ।३०७ विणयसिरिकणयमालापउमाणंदासुसीमजिणदत्ता । एक्वेकदक्विणिदे एक्के का पाणवल्लयिा।३१६। एववेकउत्तरिदे एक्वेका होदि हेममाला य। पिलुप्पलविस्सुदया णदावइलवखणादो जिणदासी ।३१७१ सयलिंदवल्लभाणं चत्तारि महत्तरीओ पत्तेवक कामा कामिणिआओ पंकयगंधा यल बुणामा य ।३१८। सभी दक्षिणेन्द्रोंकी ८ ज्येष्ठ देवियों के नाम समान होते हुए कमसे पद्मा, शिवा, शची, अंजुका, रोहिणी, नवमी, बला और अचिनिका ये हैं और सभी उत्तरेन्द्रों की आठ-आठ ज्येष्ठ देवियों के नाम, मेघराजी, रामापति, रामरक्षिता, वसुका, वसुमित्रा, वसुधर्मा और वसुन्धरा ये हैं ।३०६-३०७। छह दक्षिणेन्द्रों की प्रधान वल्लभाओके नाम क्रमसे विनयश्री, कनकमाला, पद्मा, नन्दा, सुसीमा, और जिनदत्ता ये हैं ।३१६। छह उत्तरेन्द्रों की प्रधान वल्लभाओंके नाम 'हेममाला, नीलोत्पला, विश्रुता, नन्दा, वैलक्षणा और जिनदासी ये हैं।३९७। इन वल्लभाओं में से प्रत्येकके कामा, कामिनिका, पंकजगन्धा और अलम्वु नामकी चार महत्तरिका होती हैं ।३१८।। त्रि.सा./५०६,५१०-१११ ताओ चउरो सम्गे कामा कामिणि य पउमगंधा य। तो होदि अलंबुसा सविद पुराणमेस कमो ।०६। सचि पउम सिब सियामा कालिंदीसुलसअज्जुकाणामा भाणुत्ति जेठदेवी सत्वेसि दक्खिणिदाणं ।५१० सिरिमति रामा सुसीमापभावदि जयसैण णाम य भा०४-६५ जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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