Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 4
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 519
________________ स्वर्ग ५१२ ३. वैमानिक इन्द्रोंका निर्देश ६. वैमानिक इन्द्रोंका परिवार १. सामानिक आदि देवोंकी अपेक्षा (ति. प./८/२१८-२४६), (रा. वा./४/१४/८/२२५-२३५), (त्रि. सा./४६४,४६५,४६८), (ज.पं./१६/२३६-२४२, २७०-२७८) । पारिषद् सप्त अनीक* इन्द्रोंके नाम | प्रतीन्द्र | सामानिक अभ्यन्तर मध्य आत्मरक्ष प्रत्येक कुल समिति । समिति समिति अनीक अनीक वायस्त्रिंश लोकपाल बाह्य सहस्र ७४६७६ ८४००० १४००० or सौधर्म ईशान सनत्कु. माहेन्द्र ब्रह्म १६००० १४००० १२००० सहस्त्र १०६६८ १०१६० ६१४४ १२००० १०००० ८००० १२००० १०००० ८००० ६००० ४००० २००० ७१९२० ६४००८ & & ८८४० ६००० ३३६००० ३२००० २५८००० २८०००० २४०००० २००००० १६०००० १२०००० ८०००० & ७६२० ६३५० लान्तव & ८०००० ७२००० ७०००० ६०००० ५०००० ४०००० ३०००० २०००० २०,००० २०००० २०.००० १००० ६२२३० ५३३४० ४४४५० ३५५६० s १७७८० & महाशुक्र सहसार ५०८० ४००० २००० १००० ५०० १६००० ४००० २००० १००० १००० १००० ८०० ३८१० २५४० आनत २५० & ० प्राणत ० २५० ५०० : ८००० ccc ० : आरण अच्युत १२५ ५०० १००० ८०००० : नोट-[वृषभ तुरंग आदि सात अनीक सेना है। प्रत्येक सेनामें सात-सात कक्षा है। प्रथम कक्षा अपने सामानिक प्रमाण है । द्वितीयादि कक्षाएँ उत्तरोत्तर द्वनी-दूनी हैं। अतः एक अनीकका प्रमाण - सामानिकका प्रमाण x १७ । कुल सातों अनीकोंका प्रमाण = एक अनीकx(दे. अनीक ); (ति. प./८/२३५-२३७)] - - २. देवियोंकी अपेक्षा (ति.प.//३०६-३१५ + ३७६-६८५); (रा. वा./४/१६/-/२२५-२३५): त्रि. सा./५०६-५१३) । इन्द्रका नाम ज्येष्ठ देवियाँ प्रत्येक ज्येष्ठ देवीकी परि वार देवियाँ वल्लभिका अग्र देवियाँ प्रत्येक देवीके वैक्रियक रूप ६६००० १६००० ८००० ३२००० ३२००० ८००० ८००० २००० ८००० ४००० सौधर्म ईशान सनत्कु, माहेन्द्र ब्रह्म लान्तव महाशुक्र सहस्रार आनत प्राणत आरण अच्युत 36. Gax aur : १६०,००० १६०,००० ७२,००० ७२,००० ३४,००० १६५०० ८२५० ४१२५ २०६३ १६००० १६०००. ३२००० ३२००० ६४००० १२८००० २५६००० ५१२००० १०२४००० २००० १००० ५०० vur जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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