Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 4
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 512
________________ स्वप्न स्वभाव ६. भरत चक्रवर्तीके १६ स्वप्नम.पु./११/६३-७६ । प्रमाण श्लो.सं. स्वप्न फल यह फल प्रकट होता है कि जिसका सुमेरु पर अभिषेक हुआ है, ऐसा देव ( ऋषभ भगवान् ) अवश्य आज हमारे घरमें आवेगा ।४०। और ये अन्य स्वप्न भी उन्हींके गुणों को सूचित करते हैं ।४१॥ स्वप्नातिचार-दे. अतिचार/३ । स्वभाव-वस्तुके स्वयंसिद्ध, तर्कागोचर, नित्य शुद्ध अंशका नाम स्वभाव है । वह दो प्रकारके होते हैं-वस्तुभूत और आपेक्षिक । तहाँ वस्तुभूत स्वभाव दो प्रकार के हैं-सामान्य व विशेष । सहभावी गुण सामान्य स्वभाव है और क्रमभावी पर्याय, विशेष स्वभाव है। आपेक्षिक स्वभाव अस्तित्व, नास्तित्व, नित्यत्व-अनित्यत्व आदि विरोधी धर्मों के रूपमें अनन्त हैं, जिनकी सिद्धि स्याद्वाद रूप सप्तभंगी द्वारा होती है। इन्हींके कारण वस्तु अनेकान्त स्वरूप है। समूह " पर्वत पर २३ सिंह वीरके अतिरिक्त २३ तीर्थ करोंके समय दुष्ट नयोंकी उत्पत्तिका अभाव | सिंहके साथ हिरणों का | वोरके तीर्थ में अनेकों कुलि गियोंकी उत्पत्ति बड़े बोझसे झुकी पीठवाला | पंचम कालमें तपश्चरणके घोड़ा समस्त गुणोंसे रहित साधु होंगे शुष्क पत्ते खानेवाले बकरों- आगामी कालमें दुराचारी का समूह मनुष्यों की उत्पत्ति हाथीके ऊपर बैठे बानर क्षत्रिय वंश नष्ट हो जायेंगे अन्य पक्षियों द्वारा त्रास धर्मको इच्छासे मनुष्य अन्य किया हुआ उलूक मतके साधुओं के पास जायेंगे आनन्द करते भूत व्यन्तर देवों की पूजा होगी मध्य भाग में सूखा हुआ | आर्य खण्डमें धर्म का अभाव तालाब मलिन रत्नराशि ऋद्धि धारी मुनियों का अभाव कुत्तका नैवेद्य आदिसे गुणी पात्रोंके समान अवती सत्कार करना ब्राह्मणोंका सत्कार होगा जवान बैल तरुण अवस्थामें ही मुनिपद होगा मण्डलसे युक्त चन्द्रमा अवधि व मनःपर्यय ज्ञानका अभाव होगा शोभा नष्ट दो बैल एकाकी विहारका अभाव होगा मेघोंसे आवृत सूर्य केवलज्ञानका अभाव होगा | छाया रहित सूखा वृक्ष खो-पुरुषोंका चारित्र भ्रष्ट होगा | जीर्ण पत्तोंका समूह महौषधियोंका रस नष्ट होगा * * * स्वभावके भेद लक्षण व विभाजन स्वभाव सामान्यका लक्षण । १.स्वभावका निरुक्तयर्थ । २. स्वभावका अर्थ अन्तरंग भाव । ३. स्वभावका लक्षण गुण पर्यायों में अन्वय परिणाम । ४. स्त्रभाव व शक्तिके एकार्थवाची नाम । स्वभाव सामान्यके भेद । सामान्य व विशेष स्वभावोंके भेद । प्रत्येक द्रव्यके स्वभाव -दे, वह-वह द्रव्य। जीव पुद्गलका ऊर्ध्व अधोगति स्वभाव -दे. गति/१/३-६॥ वस्तुमें अनेकों विरोधी धर्मोंका निर्देश -दे. अनेकान्त/४। * | जीवके क्षायोपशमिकादि स्वभाव -दे, भाव तथा वह-वह नाम । वस्तुमें अनन्तों धर्म होते हैं -दे,गुण/३/९-११ । उपचरित स्वभावके भेद व लक्षण । प्रत्येक द्रव्यमें स्वभावोंका निर्देश । वस्तुमें कल्पित व वरतुभूत धर्मोका निर्देश स्वभाव व शक्ति निर्देश स्वभाव परकी अपेक्षा नहीं रखता। स्वभावमें तर्क नहीं चलता। शक्ति व व्यक्तिकी परोक्षता प्रत्यक्षता । शक्तिका व्यक्त होना आवश्यक नहीं-दे. भव्य/३/३ । अशुद्ध अवस्थामें स्वभावकी शक्तिका अभाव रहता है -दे. अगुरुलधु। स्वभाव या धर्म अपेक्षाकृत होते हैं। गुणको स्वभाव कह सकते हैं पर स्वभावको गुण नहीं। धर्मोंकी सापेक्षताको न माने सो अज्ञानी । स्वभाव अनन्त चतुष्टय -दे, चतुष्टय। स्वभाव विभाव सम्बन्धी -दे, विभाव। खभाव व विभाव पर्याय -दे. पर्याय/३। वस्तु स्वभावके भानका सम्यग्दर्शनमें स्थान -दे. सम्यग्दर्शन/II/३1 m * * ७. राजा श्रेयांसके सात स्वप्न म. पु./२०/३४-४० सुमेरुमैक्षतोत्तुङ्ग हिरण्मयमहातनुम् । कल्पद्रुमं च शाखाग्रलम्बि भूषणभूषितम् ॥३४॥ सिहं संहारसन्ध्याभकेसरोदधुरकन्धरम् । शृङ्गाग्रलग्नमृत्स्नं च वृषभं कूलमुद्रुजम् ॥३५॥ सूर्येन्दू भुवनस्यैव नयने प्रस्फुरदय ती। सरस्वन्तमपि प्रोच्चैरूचि रत्नाचितार्ण सम् ।३६। अष्टमङ्गलधारीणि भूतरूपाणि चाग्रतः। सोऽपश्यद् भगवत्पाददर्शन कफलानिमार ३७१ सप्रश्रयमासाद्य प्रभाते प्रीतमानसः । सोमप्रभाय तान् स्वप्नान् यथादृष्टं न्यवेदयत् ३८। ततः पुरोधाः कल्याण' फलं तेषामभाषत। प्रसरहशनज्योत्स्नाप्रधौतककुबन्तरः।३१। मेरुसंदर्शना वो यो मेरुरिव सुन्नतः। मेरौ प्राप्ताभिषेकः स गृहमेष्यति नः स्फुटम् ॥४०॥ - राजा श्रेयांसने भगवान्को आहारदानसे पूर्व प्रथम स्वप्न में सुमेरु पर्वत देखा। फिर क्रमसे आभूषणोंसे सुशोभित कल्पवृक्ष, किनारा उखाड़ता हुआ बैल, सूर्य-चन्द्रमा, लहरों और रत्नोंसे सुशोभित समुद्र, और सातवें स्वप्नमें अष्ट मंगल द्रव्य लिये हुए व्यन्तर देवोंकी मूर्तियाँ देखी ३४-३७। मेरुके देख नेसे * * * * भा०४-६४. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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