Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 4
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 495
________________ प्रमाण | Jain Education International स्पर्श मार्गणा स्वस्थान स्वस्थान | बिहारवत् स्वस्थान वेदना कषाय समुद्धात वैक्रियिक समुद्धात मारणान्तिक समुद्घात उपपाद तैजस आहारक व | केलि समुद्धात पृ.स.१ पृ.सं.२ ६-६ च./असं., म/सं.. म. लोक म. लोक म. लोक च./असं . म असं. अपगत वेद |१०-१४ मूलोधवत् | ६. कषायमार्गणा ४२५॥ चारों कषाय त्रि असं, ति/सं..मरअसं. सर्व सर्व सर्व तै. व आ. ओघवत् लोक अपगतवेदीबत अकषाय चारों कषाय मूलोधवत मूलोधवद अकषाय ११.१४ For Private & Personal Use Only जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश ७. शानमार्गणा४२६, मतिश्रुत अज्ञान ४२० विभंग ज्ञान ४८८ लोक सर्व ई लोक सर्व | त्रि./असं., तिसं.. मरअसं. १४ देवनारको लोक तियं मनुष्य सर्व 5 लोक | च/असं., म. असं. लोकते. आ. ओघवत च असं., मरअसं. | च./असं, मरअसं. | च/असं., मरअसं. BRE/मति, श्रुत अवधिज्ञान ४३० मन पर्यय ज्ञान ४३९ केवलज्ञान २८१ मतिश्रुत अज्ञान १ | २ च./असं., मरअसं. अपगत वेदवत् लोक सर्व लोक सर्व । सर्व त्रि./असं., ति/सं. मxअसं. Entin १४ लाक लोक लोक लोक लोक १४ विभंग ज्ञान लोक 55 लोक लोक लोक मति श्रुत अवधि | ४-१२ मन.पर्यय ज्ञान ६ केवल ज्ञान १३-१४ A मूलोघबत मूलोघवत मूलाघवत् ३. स्पर्श विषयक प्ररूपणाएँ www.jainelibrary.org

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