Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 4
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 499
________________ Jain Education International For Private & Personal Use Only जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश www.jainelibrary.org प्रमाण सं. १ स. २ पृ. पृ. [T ११. भव्य मार्गणा १४४५| भव्य अभव्य भव्य अभव्य १२. सम्यक्त्व मार्गणा ४४३ सामान्य (देणपेक्षया) ३०१ " 19 ३०२ मन. हि अपेक्षा) ४५०) क्षायिक (देव नारकी) ४४६ (मनु. तियं ) ४५२ वेदक १४५३ उपशम ४५५ सासादन मागणा १३०३ | १३०४| 11 17 ४५८ सम्य मिथ्यात्व मिथ्यादृष्टि सामान्य क्षायिक वेदक गुण स्थान १-१४ : ४-१४ ४ ५ ६-१४ ४-७ स्वस्थान स्वस्थान सत्र सर्व असं.. ति./सं.. मअर्स.. li जि./अ.... मxअसं., असं... 11 विहारवदस्वस्थान S लोक लोक 14120 : लोक लोक लोक असं बहुभाग वेदना व कषाय समुद्धात सर्व सूतोवद सर्व त्रि. / असं., ति./सं., असं 5. क त्रि. / असं., ति / सं., म<असं. s 5 लोक १४ लोक S क्रियिक समुद्रात मारणान्तिक समुद्रान त्रि / असं, ति./सं., मरअर्स, इन स्थानोंकी प्रधानता नहीं नपुंसक वेदवत् मूलोघवत् 5. लोक १४ S लोक लोक १४ त्रि./असं.. ति./सं.. असं S लोक १४ त्रि./असे. ति./सं. मxअस. S लोक 5. लोक सर्व : । सर्व 5. लोक 'लोक S १४ S लोक १४ त्रि./असं, ति./सं. असं. 5 लोक १४ च/असं.. मxअसं. સો १२ लोक १४ लोक लोक असं बहुभाग असं सं बहुधा कर मुलोममत मृतोपत 11 उपपाद सर्व 59 : 1 सर्व च असं मxअसं. मारणान्तिक वत् त्रि. / असं• ति./सं.. मासे, मारणान्तिकम च/असं., मअसं. च असं., असं. तियंच में उत्पन्न नारकी १४. ।। १४ | 1 देव त्रि. / असं ति./सं., मxअसं तेजस आहारक व केवली समुद्धात मूलोधवत :: मूलद मूलोघवत् तेजस व आहारक ओषत् : ।। : ।। स्पर्श ४९२ ३. स्पर्श विषयक प्ररूपणाएँ

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