Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 4
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 445
________________ सुषिर प्रायोगिक शब्द सुविर प्रायोगिक शब्द शब्द/ सुषेण- १. वरांग चरित्र / सर्ग / श्लोक वरांगका सौतेला भाई था । (११/८५) । वरांगको राज्य मिलनेपर कुपित हो, वरोगको छलसे राज्यसे दूर भेज स्वयं राज्य प्राप्त किया (२०/० ) । फिर किसी शत्रुसे युद्ध होनेपर स्वयं डरकर भाग गया (२० / ११) । २. म. पु. / ५८ / श्लोक कनकपुर नगरचा राजा था (११) गुणमंजरी नृत्यकारिणीके अर्थ भाई विन्ध्यशक्ति युद्ध किया युद्धमें हार जानेपर नृत्यकारिणी इससे बलात्कारपूर्वक छीन ली गयी (७३) । मानभंगसे दुःखित हो दीक्षा लेकर कठिन तप किया। अन्त में बैर पूर्वक मरकर प्राण स्वर्ग में देव हुआ (७८-७९) । यह द्विपृष्ठ नारायणका पूर्वका दूसरा भव है । दे द्विपृष्ठ । सुसीमा पूर्व विदेहस्थ मत्सदेशकी मुख्य नगरी-दे, लोक/२/२ सुस्थित १. मुद्रा रक्षक व्यन्तरदेव-देव्यन्तर / ४ । सुस्थिता- रुचक पर्वत बासिनी दिक्कुमारी । दे. लोक / ५ / १३ । सुस्वर स्वर सुहस्ति - रुचक पर्वतस्थ स्वस्तिक कूटका स्वामी देव - दे. लोक/७ । सुह्य २. भरक्षेत्र आर्य खण्डका एक देश, मनुष्य / ४ २. जिस देश में कपिशा ( कोलिया) नदी बहती है। ताम्रलिपी राजधानी थी। सुकरिका - भरत क्षेत्रस्थ आर्य खण्डकी एक नदी - दे. मनुष्य ४ । सूक्ष्म-जो किसी द्वारा स्वयं नाधित न हों और न दूसरेको ही कोई बाधा पहुंचायें वे पदार्थ या जीव सूक्ष्म है और इनसे विपरीत स्थूल या मादर इन्द्रियग्राह्य पदार्थको स्थूल और इन्द्रियग्राको सूक्ष्म कहना व्यवहार है परमार्थ नहीं सूक्ष्म व मादरपने में न अवगाहनाकी हीनाधिकता कारण है न प्रदेशोंकी, बल्कि नामकर्म ही कारण है। सूक्ष्म स्कन्ध व जीव लोकमें सर्वत्र भरे हुए हैं, पर स्थूल आधारके बिना नहीं रह सकनेके कारण त्रस नालीके यथायोग्य स्थानों में ही पाये जाते हैं। १. सूक्ष्मके भेद व लक्षण * सूक्ष्म जीवोंका निर्देश - इन्द्रिय काय, समास । १. सूक्ष्म सामान्यका लक्षण १. बाधा रहित ४३८ स.सि./५/१५/२००/१२/ न ते परस्परेण वादश्च व्याहन्यन्त इति । - वे (सूक्ष्म जीव ) परस्परमें और बादरोंके साथ व्याघातको नहीं प्राप्त होते हैं। (रा.वा./२/१४/२/०६/१९)" - ध. ३/१,२.८७/३३१/२ अण्णेहि पोग्गलेहिं अपडिहम्ममाणसरीरो जीवो सुमो त्ति घेत्तव्वं । जिनका शरीर अन्य पुद्गलोंसे प्रतिघात रहित है ये सूक्ष्म जीव हैं, यह अर्थ यहाँ पर सूक्ष्म शब्दसे सेना । घ. १३/५-३,२२/२३/१२ परिसंतपरमा गुस्स परमाणु परिमंदिराहुमस्स हुहूमेण चादर घेण वा पधिकरणावतीदो प्रवेश करनेवाले परमाणुको दूसरा परमाणु प्रतिबन्ध नहीं करता है, क्योंकि सूक्ष्मका दूसरे सूक्ष्म स्कन्धके द्वारा या नरके द्वारा प्रतिमन्ध करनेका कोई कारण नहीं पाया जाता है। = Jain Education International का.अ./मू./१२७ ण य तैसि जेर्सि पडिललण पुढवी तोहि अग्ि वाएहिं । ते जाण सुहुम- काया इयरा पुण थूलकाया य ॥ १२७॥ - जिन जीवोंका पृथ्वीसे, जलसे, आगसे और वामुसे प्रतिघात नहीं होता, उन्हें सूक्ष्मायिक जानो १२० सूक्ष्म गो.जी./जी./१८४/४१६/१४ आधारानपेक्षितशरीराः जीवाः सूक्ष्मा भवन्ति । जलस्थलरूपाधारेण तेषां शरीरगतिप्रतिघातो नास्ति । अत्यन्तम परिणामत्वाचे जीवाः सूक्ष्मा भवन्ति - आधारकी अपेक्षा रहित जिनका शरीर है वे सूक्ष्म जीव हैं जिनकी गतिका जल, स्थल आधारोंके द्वारा प्रतिघात नहीं होता है । और अत्यन्त सूक्ष्म परिणमनके कारण वे जीव सूक्ष्म कहे हैं। 1 २. इन्द्रिय अमाथ को स.सि./५/२८/२६६ /१ सूक्ष्मपरिणामस्य स्कन्धस्य भेदी सौक्ष्म्यापरियायावचानुषत्वमेव सूक्ष्म परिणामनाले स्कन्धका भेद होनेपर वह अपनी सूक्ष्मताको नहीं छोड़ता, इसलिए उसमें अचानुपना ही रहता है। (रा.मा./५/२०/- ( ४१४/१० ) रा.वा./५/२४/१/४८५/११ लिङ्गेन आत्मानं सूचयति, सूच्यतेऽसौ सूच्यतेऽनेन सुचनमात्रं मा सूक्ष्मः सूक्ष्मस्य भावः कर्म वा सौक्ष्म्य जो लिंग के द्वारा अपने स्वरूपको सूचित करता है या जिसके द्वारा सूचित किया जाता है या सूचन मात्र है, वह सूक्ष्म है। सूक्ष्म भाव वा कर्मको सौक्ष्म्य कहते हैं । प्र.सा./ता.वृ./१६८/२३०/१३ इन्द्रियाग्रहणयोग्यैः सूक्ष्मैः । = जो इन्द्रियोंके ग्रहण के अयोग्य हैं वे सूक्ष्म हैं । पं. ध. /उ. ४०३ अति सूक्ष्मत्वमेतेषां लिङ्गस्याक्षैरदर्शनाद 1४८३१इसके साधक साधनका इन्द्रियोंके द्वारा दर्शन नहीं होता, इसलिए इसमें (धर्मादिमें) सूक्ष्मपना है। १. सूक्ष्म दूरस्यमें सूक्ष्मका लक्षण १२/२२.२१/२९३/३ किमेत्य सुहुम युगेज्मतं सूक्ष्म शब्दका क्या अर्थ है ? उत्तर- जिसका ग्रहण सूक्ष्म कहलाता है । प्रश्न- यहाँ कठिन हो वह द्र सं./टी./५०/२१३/११/परचेतोवृत्तयः परमाण्वादयश्च सूक्ष्मपदार्थाः । पर पुरुषों के चित्तोंके विकल्प और परमाणु आदि सूक्ष्म पदार्थ.... न्या. दी./२/१२२/४१/१० सूक्ष्माः स्वभावविप्रकृष्टाः परमाण्वादयः । - सूक्ष्म पदार्थ 'वे हैं जो स्वभावसे विप्रकृष्ट हैं- दूर हैं जैसे परमाणु आदि । रहस्यपूर्ण चिट्ठी / ५१३ जो आप भी न जाने केवली भगवान् ही जाने सो ऐसे भावका कथन सूक्ष्म जानना । २. सूक्ष्मके भेद व उनके लक्षण स.सि./५/२४/२६५/१० सौक्ष्म्यं द्विविधं अन्य्यमापेक्षिकं च तत्रान्यं परमाना आपेक्षिक विश्यामलक मदरादीनाम् सूक्ष्मता के दो भेद है अन्य और आपेक्षिक परमाणुओं में अन्य सूक्ष्मत्व है तथा मेल, ऑनला, और बेर आदिमें आपेक्षिक सुक्ष्म है।. (रा.वा./५/२४/१०/४८८/३० ) ३. सूक्ष्म नामकर्मका लक्षण स.सि./१/१९/१२/९ मशरीर निर्वर्तक सूक्ष्मनाम । सूक्ष्म शरीर का निर्वर्तक कर्म सूक्ष्म नामकर्म है। रा.वा./८/११/२६/५७६/७ यदुदयादन्यजीवानुपग्रहोपघातायोग्य सूक्ष्मशरीरनिवृतिर्भवति तत्सूक्ष्मनाम -जिसके उदयसे अन्य जीवों के अनुग्रह या उपघातके अयोग्य सूक्ष्म शरीरकी प्राप्ति हो वह सूक्ष्म है। ( गो ./जी./ जो प्र. / ३३/२०/१३ ) जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only = = घ. ८/१.१ १.२८/६२/१] जस्स कम्मर उदरण जीव समविजदि तस्स कम्मस्स सुममिदि सण्णा । जिस कर्मके उदयसे जीव (एकेन्द्रिय घ. १३) सूक्ष्मताको प्राप्त होता है उस कर्मकी यह सूक्ष्म संज्ञा है । www.jainelibrary.org

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