Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 4
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 453
________________ स्कंध १. स्कंध निर्देश वे परस्परमें बंध जाते हैं, जिसके कारण सूक्ष्मतमसे स्थूलतम तक अनेक प्रकारके स्कन्ध उत्पन्न हो जाते हैं। पृथिवी, अप् , प्रकाश, छाया आदि सभी पुद्गल स्कन्ध है। लोकके सर्वद्वीप, चन्द्र, सूर्य आदि महान पृथिवियाँमिलकर एक महास्कन्ध होता है, क्योंकि पृथक्-पृथक् रहते हुए भी ये सभी मध्यवर्ती सूक्ष्म स्कन्धोंके द्वारा परस्परमें बंधकर एक हैं। १. स्कन्ध निर्देश १.स्कन्ध सामान्यका लक्षण स. सि./५/२५/२६७/७ स्थूलभावेन ग्रहणनिक्षेपणादिव्यापारस्कन्धनारस्कन्धा इति संज्ञायन्ते। जिनमें स्थूल रूपसे पकड़ना, रखना आदि व्यापारका सकन्धन अर्थात संघटना होती है वे स्कन्ध कहे जाते हैं। (रा. वा./५/२५/२/४६१/१६)। रा.पा./५/२६/१६/४६३/६ बन्धो वक्ष्यते, तं परिप्राप्ताः येऽणवः ते स्कन्धा इति व्यपदेशमर्हन्ति । -जिन परमाणुओंने परस्पर बन्ध कर लिया है वे स्कन्ध कहलाते हैं। * पुद्गल वर्गणा रूप स्कन्ध-दे, वर्गणा। २. स्कन्ध देशादिके भेद व लक्षण पं. का./म./७५ खधं सयलसमत्थं तस्स दु, अब भणं ति देसो त्ति। अबद्धःच पदेसो परमाणू चेव अविभागी।७। सकल-समस्त (पुदगल पिण्डात्मक सम्पूर्ण वस्तु) वह स्कन्ध है, उसके अर्धको देश कहते हैं, अर्धका अर्ध वह प्रदेश है और अविभागी वह सचमुच परमाणु है ।७॥ (मू. आ./२३१); (ति. प./१/१५); (ध. १३/१,३, १२/गा. ३/१३); (गो.जी./मू.६०४/१०५६); (यो. सा.अ./२/१९)। रा.वा./५/२५/१६/४६३/७ ते (स्कन्धाः ) त्रिविधाः स्कन्धाःस्कन्धदेशा: स्कन्धप्रदेशाश्चेति । अनन्तानन्तपरमाणुबन्धविशेषः स्कन्धः । तदधं देशः । अधिं प्रदेशः । तदभेदाः पृथिव्यप्तेजोवायवः स्पर्शादिशम्दादिपर्यायाः। -वे स्कन्ध तीन प्रकारके हैं-स्कन्ध, स्कन्धदेश और स्कन्ध प्रदेश। अनन्तानन्त परमाणुओका बन्ध विशेष स्कन्ध है। उसके आधेको देश कहते हैं और आधेके भी आधेको प्रदेश । पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु आदि उसीके भेद हैं। स्पर्शादि और स्कन्धादि उसकी पर्याय हैं। ध.३/१,२,१/गा, २/३ पुढवी-जलं च छाया चउरिदियविसय-कम्मपरमाणू । छव्विह भेयं भणियं जिणवरेंहि ।। - पृथिवी, जल, छाया, नेत्र इन्द्रियके अतिरिक्त शेष चार इन्द्रियोंके विषय, कर्म और परमाणु, इस प्रकार पुदगल द्रव्य छह प्रकारका कहा है। (पं. का./प्रक्षेपक/७३-१/१३०); (न. च, वृ/३२): (गो. जी./न./६०२/ १०५८); (नि. सा./ता. वृ./२०)। म. पु./२४/१५०-१५३ शब्दः स्पर्शो रसो गन्धः सूक्ष्मस्थूलो निगद्यते। अचाक्षुषत्वे सत्येषाम् इन्द्रियग्राह्यतेक्षणात् ।१५१० स्थूलसूक्ष्माः पुनईयाश्छायाज्योत्स्नातपादयः । चाक्षुषत्वेऽप्यसंहार्य रूपत्वाद विधातकाः । ।१५२। द्रवद्रव्यं जलादि स्यात स्थूलभेद निदर्शनम्। स्थूलस्थूलः पृथिव्यादि द्यः स्कन्धः प्रकीर्तितः ।१५३ = शब्द, रस, गन्ध, स्पर्श सूक्ष्मस्थूल कहलाते हैं, क्योंकि यद्यपि इनका चक्षु इन्द्रियके द्वारा ज्ञान नहीं होता, इसलिए ये सूक्ष्म हैं परन्तु अपनी-अपनी कर्ण आदि इन्द्रियों के द्वारा इनका ग्रहण हो जाता है इसलिए ये स्थूल भी कहलाते हैं ।११। छाया, चाँदनी और आतप आदि स्थूल-सूक्ष्म कहलाते हैं क्योंकि चक्षु इन्द्रियके द्वारा दिखाई देनेके कारण यह स्थूल हैं, परन्तु इनके रूपका संहरण नहीं हो सकता, इसलिए विधात रहित होनेके कारण सूक्ष्म भी हैं । १५२। पानी आदि तरल पदार्थ जो कि पृथक् करनेपर भी मिल जाते हैं स्थूल भेदके उदाहरण हैं और पृथिवी आदि स्कन्ध जो कि भेद किये जानेपर फिर मिल न सकें स्थूल-स्थूल कहलाते हैं ।१५३। । का/त.प्र./७६ तत्र छिन्नाः स्वयं संधानासमर्था काष्ठपाषाणादयो मादरमादराः। छिन्नाः स्वयं संधानसमर्थाः क्षीरघृततैलतोयरसप्रभृतयो बादराः। स्थूलोपलम्भा अपि छेत्तुं भेत्तुमादातुमशक्या छायातपतमोज्योत्स्नादयो बादरसूक्ष्माः । सूक्ष्मत्वेऽपि स्थूलोपलम्भाः स्पर्शरसगन्धशब्दाः सूक्ष्मवादराः । सूक्ष्मत्वेऽपि हि करणानुपलभ्याः कर्मवर्गणादयः सूक्ष्माः। अत्यन्तसूक्ष्माः कर्मवर्गणाभ्योऽधो मणुकस्कन्धपर्यन्ताः सूक्ष्मसूक्ष्मा इति । काष्ठ पाषाणादिक जो कि छेदन करनेपर स्वयं नहीं जुड़ सकते वे ( घन पदार्थ) बादरमादर हैं। दूध, घी, तेल, रस आदि जो कि छेदन करनेपर स्वयं जुड़ जाते हैं वे (प्रवाही पदार्थ ) बादर हैं। छाया, धूप, अन्धकार, चाँदनी आदि (स्कन्ध ) जो कि स्थूल ज्ञात होनेपर भी जिनका छेदन, भेदन, अथवा ( हस्तादि द्वारा) ग्रहण नहीं किया जा सकता बे बादर-सूक्ष्म हैं। स्पर्श-रस-गंध-शब्द जो कि सूक्ष्म होनेपर भी स्थूल ज्ञात होते हैं (जो चक्षुके अतिरिक्त अन्य चार इन्द्रियोंसे ज्ञात होते हैं। वे सूक्ष्म बादर हैं। कर्म वर्गणादि कि जिन्हें सूक्ष्मपना है तथा जो इन्द्रियोंसे ज्ञात न हों ऐसे हैं वे सूक्ष्म हैं। कर्म वर्गणासे नीचेके द्विअणुक स्कंध तकके जो कि अत्यन्त सूक्ष्म हैं वे सूक्ष्मसूक्ष्म हैं । (गो.जी./जी. प्र./६०३/१०५६ ) । ४. महास्कन्ध निर्देश ष. ख./१४/५.६/सू. ६४१/४६४ अटु पुढवीओ टंकाणि कूडाणि भवणाणि विमाणाणि विमाणिदियाणि विमाणपत्थडाणि णिरइंदियाणि णिरयपत्थडाणि गच्छाणि गुम्माणि वल्लीणि लदाणि तणवणप्फदि आदीहि ।६४१ -आठ पृथिवियाँ, टेक, कूट, भवन, विमान, विमानेन्द्रक, विमानप्रस्तर नरक, नरकेन्द्रक, नरकप्रस्तर, गच्छ, गुल्म, बल्ली, लता और तृण बनस्पति आदि महास्कन्ध स्थान हैं ।६४१॥ गो. जी./जी.प्र./६००/१०५२/४ महास्कन्धवर्गणा वर्तमानकाले एका सा तु भवन विमानाष्टपृथ्वीमेरुकुलशैलादीनामेकीभावरूपा । कथं संख्यातासंख्यातयोजनान्तरितानामेकत्वं । एकमन्धनबद्धसूक्ष्मपुदगलस्कन्धैः समवेतानामन्तराभावात् । -महास्कन्ध वर्गणा वर्तमान कालमें जगत्में एक ही है सो भवनवासियोंके भवन, देवियों के विमान, आठ पृथिवी, मेरुगिरि, कुलाचल इत्यादिका एक स्कन्ध ३. स्थूल सूक्ष्मकी अपेक्षा स्कन्धके भेद व लक्षण नि, सा./मू./२१-२४ अइथूलथूलथूल थूलमुहुमं च मुहुमथूलं च सुहुमं अहमुहुम इदि धरादियं होदि छब्भेयं ।२१। भूपम्बदमानिया भणिदा अइथूलथूलमिदि बंधा । धूला इदि विण्णेया सप्पीजलतेलमादीया। ।२२। छायातक्मादीया थूलेदरखधमिदि बियाणाहि। मुहमथूले दि भणिया बंधा चउरक्ख विसया य ।२३। मुहमा हवं ति खंधा पावोग्गा कम्मवग्गणस्स पुणो। तविबरीया खंधा अइसहुमा इदि परूवेंदि । ।२४ - १. भेद-अतिस्थूलस्थूल, स्थूल, स्थूलसूक्ष्म, सूक्ष्मस्थूल, सूक्ष्म और अतिसूक्ष्म ऐसे पृथिवी आदि स्कन्धोंके छह भेद हैं।२१॥ (म. पू./२४/२४६); (पं. का./त.प्र./७६); (यो, सा.अ./२/२०); (गो.जी./मू./६०३/१०५६);२. लक्षण-भूमि, पर्वत आदि अतिस्थूलस्थूल स्कन्ध कह गये हैं, घी जल तेल आदि स्थूलस्कन्ध जानना। ।२२। छाया, आतप आदि स्थूल-सूक्ष्मस्कन्ध जानना और चार इन्द्रियके विषयभूत स्कन्धोंको सूक्ष्म-स्थूल कहा गया है ।२३। और कर्म वर्गणाके योग्य स्कन्ध सूक्ष्म हैं, उनसे विपरीत (अर्थात कर्म वर्गणाके अयोग्य ) स्कन्ध अतिसूक्ष्म कहे जाते हैं ।२४। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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