Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 4
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 458
________________ स्त्री ४५१ स्त्री ६.चेतनाचेतन स्त्रियाँ चा. सा./१/२ तिर्यग्मनुष्यदेवाचेतनभेदाच्चतुर्विधा स्त्री... - तियंच, __ मनुष्य, देव और अचेतनके भेदसे चार प्रकारकी स्त्रियाँ होती हैं । (बो. पा./टी./११८/२६७/२०) बो. पा./टी./११८/२६७/१६ काष्ठ-पाषाण-लेपकृतास्त्रियो। -काष्ठ पाषाण और लेप की हुई ये तीन प्रकारकी अचेतन स्त्रियाँ होती हैं। ७. स्त्रीकी निन्दा भ. आ./मू./गाथा नं. बग्घविसचोरअग्गीजलमत्तगयकण्हसप्पसत्तूस् । सो वीसभं गच्छदि वीसभदि जो महिलियो सु ।।५२॥ पाउसकालणदीवोष ताओ णिचंपि कलुसहिदयाओ। धणहरणकदमदीओ चोरोव्व सकज्जगुरुयाओ।१४। आगास भूमि उदधी जल मेरूवाउणो वि परिमाण । मादु सक्का ण पुणो सक्का इत्थीण चित्ताई १६३। जो जाणिऊण रत्तं पुरिसं चम्मट्ठिमंसपरिसैसं । उद्दाहं ति य बडिसामिसलग्गमच्छ व ।१७। चंदो हविज्ज उण्हो सीदो सूरो वि थडमागासं । ण य होज्ज अदोसा भहिया वि कुलबालिया महिला।६६01 -जो पुरुष स्त्रियोंपर विश्वास करता है वह बाघ, विष, चोर, आग. जल प्रवाह, मदवाला हाथी, कृष्णसर्प, और शत्रु इनके ऊपर विश्वास करता है ऐसा समझना चाहिए १६५२६ वर्षा कालकी नदीका मध्य प्रदेश मलिन पानीसे भरा रहता है और स्त्रियोंका चित्त भी राग, द्वेष, मोह, असूया आदि दुष्ट भावोंसे मलिन है। चोर जैसा मनमें इन लोगोंका धन किस उपायसे ग्रहण किया जावे ऐसा विचार करता है, वैसे ही स्त्रियाँ भी ( रति क्रीड़ा द्वारा) धन हरण करनेमें चतुर होती है।६५४। आकाश, जमीन, समुद्र, पानी, मेरु और वायु इन पदार्थोंका कुछ परिमाण है, परन्तु स्त्री के चित्तका अर्थात् उनके मनमें उत्पन्न होने वाले विकल्पों का परिमाण जान लेना अशक्य है ।६६३।अपनेपर आसक्त हुआ पुरुष चर्म, हड्डी, और मांस ही शेष बचा हुआ है ऐसा देखकर गलको लगे हुए मत्स्यके समान उसको मार देती है, अथवा घरसे निकाल देती है ।१७१। चन्द्र कदाचित शीतलताको त्यागकर उष्ण बनेगा, सूर्य भी ठंडा होगा, आकाश भी लोह पिण्डके समान धन होगा, परन्तु कुलीन वंशको भी स्त्री कल्याणकारिणी और सरल स्वभावकी धारक न होगी। (विशेष दे भ. आ./मू./१३८-१०३०) ज्ञा./१२/४४,५० भेत्तं शूलमसि छेत्तुं कर्तितुं क्रकचं दृढम् । नरान्पीडयितुं यन्त्रं वेधसा विहिताः स्त्रियः ।४४। यदि मूर्त्ताः प्रजायन्ते स्त्रीणां दोषाः कथंचन । पूरयेयुस्तदा नूनं नि शेष भुबनोदरम् ।१०। ब्रह्माने स्त्रियाँ बनायी हैं वे मनुष्योंको बेधने के लिए शूली, काटनेके लिए तलवार, कतरनेके लिए करीत अथवा पेलनेके लिए मानो यन्त्र ही अनाये हैं।४४। आचार्य कहते हैं कि स्त्रियोंके दोष यदि किसी प्रकारसे मूर्तिमान हो जाये तो मैं समझता हूँ कि उन दोषोंसे निश्चय करके समस्त त्रिलोको परिपूर्ण भर जायेगो ।१०। ( विशेष विस्तार दे. ज्ञा./१२९-१५५) * स्त्रीकी निन्दाका कारण उसकी दोषप्रचुरता -दे. स्त्री/ह। ८. स्त्री प्रशंसा योग्य भी है भ. आ./मू./६६५-१००० किं पुण गुणसहिदाओ इच्छीओ अस्थि विस्थ डजसाओ । णरलोगदेवदाओ देवे हि वि वंदणिज्जाओ।६। तिस्थयर चक्कधर वासुदेवबलदेवगणधरवराणं । जणणीओ महिलाओ सुरणरचरहिं महियाओ ६६६। एगपदिब्वाइकण्णा वयाणि धारिति कित्तिमहिलाओ। वेधव तिव्बदुववं आजीव णिति काओ वि 18६७ सीलवदीवो सुचंति महीयले पत्तपाडिहेराओ। सावाणुगहसमत्थाओ विय काओव महिलाओ ६६८। उग्घेण ण बूढाओ जलंतघोरग्गिणा ण दड्ढाओ । सप्पेहि सावज्जे हि वि हरिदा खद्धाण काओ वि IEEEN सब गुणसमग्गाण साहूर्ण पुरिसपवरसीहाण। चरमाण जणणित्तं पत्ता। हवं ति काओ वि १०००। - जगत में कोई कोई स्त्रियाँ गुणातिशयसे शोभा युक्त होनेसे मुनियों के द्वारा भी स्तुति योग्य हुई हैं। उनका यश जगतमें फैला है, ऐसी स्त्रियाँ मनुष्य लोकमें देवताके समान पूज्य हुई हैं, देव उनको नमस्कार करते हैं, तीर्थकर, चक्रवर्ती, नारायण, बलभद्र और गणधरादिकोको प्रसवने वाली स्त्रियाँ देव, और मनुष्यों में प्रधान व्यक्ति हैं । उनसे वन्दनीय हो गयी हैं । कितनेक स्त्रियाँ एक पतिव्रत धारण करती हैं, कितनेक स्त्रियाँ आजन्म अविवाहित रहकर निर्मल ब्रह्मचर्य वत धारण करती हैं। कितनेक स्त्रियाँ वैधव्यका तीव दुःख आजन्म धारण करती हैं |81-E७ शील व्रत धारण करनेसे कितनेक स्त्रियों में शाप देना और अनुग्रह करनेकी शक्ति भी प्राप्त हुई थी। ऐसा शास्त्रों में वर्णन है। देवताओं के द्वारा ऐसा स्त्रियोंका अनेक प्रकारसे माहात्म्य भी दिखाया गया है या ऐसी शीलवती स्त्रियोंको जलप्रवाह भी बहानेमें असमर्थ है। अग्नि भी उनको नहीं जला सकती है, वह शीतल होती हैं, ऐसी स्त्रियों को सर्प व्याघ्रादिक प्राणी नहीं खा सकते हैं अथवा मुहमें लेकर अन्यस्थानमें नहीं फेंक देते हैं । सम्पूर्ण गुणोंसे परिपूर्ण, श्रेष्ठ पुरुषों में भी श्रेष्ठ, तद्भव मोक्षगामी ऐसे पुरुषों को कितनेक शीलवती स्त्रियों ने जन्म दिया है ।१०००। कुरल./६/५.८ सर्वदेवान् परित्यज्य पतिदेव नमस्यति। प्रातरुस्थाय या नारी ततश्या वारिदाः स्वयम् ।। प्रसूते या शुभं पुत्रं लोकमान्य विदांवरम् । स्तुवन्ति देवता नित्यं स्वर्गस्था अपि ता मुदा।। -- जो स्त्री दूसरे देवताओंकी पूजा नहीं करती किन्तु बिछौनेसे उठते ही अपने पतिदेवको पूजती है, जलसे भरे हुए बादल भी उसका कहना मानते हैं। जो महिला लोकमान्य और विद्वान् पुत्रको जन्म • देती है स्वर्गलोकके देवता भी उसकी स्तुति करते हैं ।८। ज्ञा./१२/५७-५८ ननु सन्ति जीवलोके काश्चिच्छमशीलसंयमोपेताः । निजवंशतिलकभूता श्रुतसत्यसमन्विता नार्यः ॥५॥ सतीत्वेन महत्त्वेन वृत्तेन विनयेन च। विवेकेन स्त्रियः काश्चिद भूषयन्ति धरातलम १५८। - अहो। इस जगत में अनेक स्त्रियाँ ऐसी भी हैं जो समभाव और शील संयमसे भूषित हैं, तथा अपने वश में तिलकभूत हैं, और शास्त्र तथा सत्य वचन करके सहित भी हैं ।५७॥ अनेक स्त्रियाँ ऐसी हैं जो पतिव्रतपनसे, महत्त्वसे, चारित्रसे, विनयसे, विवेकसे इस पृथिवी तलको भूषित करती हैं ।५८० ९. स्त्रियोंकी निन्दा व प्रशंसाका समन्वय भ. आ./म्./१००१-१००२/१०५१ मोहोदयेण जीवो सम्बो दुस्सीलमइलिदो होदि। सो पुण सम्बो महिला पुरिसाणं होइ सामण्णा ।१००११ तस्मा सा पल्लवणा पउरा महिलाण होदि अधिकिच्चा । सीलवदीओ भणिदे दोसे किह णाम पावं ति ।१००२। -मोहोदयसे जीव कुशील बनते हैं, मलिन स्वभावके धारक बनते हैं। यह मोहोदय सर्व स्त्रियों और पुरुषों में समान हैं। जो पीछे स्त्रियो के दोष (दे स्त्री/७) का विस्तारसे वर्णन किया है वह श्रेष्ठ शीलवती स्त्रियोंके साथ सम्बन्ध नहीं रखता अर्थात् वह सब वर्णन कुशील स्त्रियों के विषयमें समझना चाहिए । क्योंकि शीलवती स्त्रियाँ गुणोंका धुंजस्वरूप ही हैं। उनको दोष कैसे छू सकते हैं ।१००१-१००२। ज्ञा./१२/18 निविण्णर्भवसक्रमाच्छू तधरै रेकान्ततो निस्पृहैर्यो यद्यपि दूषिताः शमधनै ब्रह्मवताल बिभिः । निन्द्यन्ते न तथापि निर्मलयमस्वाध्यायवृत्ताङ्किता-निर्वेदप्रशमादिपुण्यचरिताः शुद्धिभूता भुवि ।५।। - जो संसार परिभ्रमणसे विरक्त हैं, शास्त्रोंके परगामी और स्त्रियोंसे सर्वथा निस्पृह हैं तथा उपशम भाव ही है धन जिनके ऐसे ब्रह्मचर्यावलम्बी मुनिगणोने यद्यपि स्त्रियों की निन्दा की जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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