Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 4
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 447
________________ ४४० ३. बादरत्व व सूक्ष्मत्व निर्देश नाम कर्मके उदघसे उत्पन्न हुए बादर शरीरकी उपलब्धि होती है ।२५१। और भो-दे. अवगाहना/२ । ध.१२/४ २,१३,२१४/४४३/१३ ण च मुहमयोगाहणाए बादरोगाहणा सरिसा ऊणा वा हो दि किं तु असंखेज्जगुणा चेव होदि । -बादर जीवकी अवगाहना सूक्ष्म जीवकी अवगाहनाके बराबर या उससे हीन नहीं होती है, किन्तु वह उससे असंख्पातगुणी ही होती है। ध. १३४५,३,२१/२४/२ सुहुमं णाम सणं, ण अपडिहण्णमाणमिदि चे --ण, आयासादीणं सुहमत्ता भावप्पसंगादो। प्रश्न-सूक्ष्मका अर्थ बारीक है। दूसरेके द्वारा नहीं रोका जाना, यह उसका अर्थ नहीं है। उत्तर--नहीं, क्योंकि सूक्ष्मका यह अर्थ करनेपर महान आकाश आदि सूक्ष्म नहीं ठहरेंगे। गो. जी./जी. प्र./१८४/४१६/१५ यद्यपि बादरापर्याप्तवायुकायिकादीनां जवन्यशरीरावगाहनमवपम् । ततोऽसंख्येयगुणत्वेन सूक्ष्मपर्याप्तकवायुकायिका दिपृथ्वीकायिकावसानजीवानां जघन्योत्कृष्टशरीरावगाहनानि महान्ति तथापि सूक्ष्मनामकर्मोदयसामर्थ्याव अन्यतरतेषां प्रतिघाताभावात् निष्क्रम्य गच्छन्ति श्वश्णवस्त्रनिष्क्रान्तजलबिन्दुवत। बादराणां पुनरपशरीरत्वेऽपि मादरनामकर्मोदयवशादन्येन प्रतिघातो भवत्येव श्लक्ष्णवस्त्रानिष्क्रान्तसर्षपवत् । य ( द्यपि) द्यवं ऋद्धिप्राप्तानां स्थूलशरीरस्य वज्रशिलादिनिष्क्रान्तिरस्ति सा कथं। इति चेत् तपोऽतिशयमाहात्म्येनेति व मः, अचिन्त्यं हि तपोविद्यामणिमन्त्रौषधिशक्त्यतिशयमाहात्म्यं दृष्टस्वभावत्वाद। 'स्वभावोऽतर्कगोचरः' इति समस्तवादिसंमतत्वात् । अतिशयरहितवस्तुविचारे पूर्वोक्तशास्त्रमार्ग एव बादरसूक्ष्माणां सिद्धः । यद्यपि बादर अपर्याप्त वायुकायिकादि जीवोंकी अवगाहना स्तोक है और इससे लेकर सूक्ष्म पर्याप्त वायुकायिकादिक पृथिवीकाधिक पर्यन्त जीवों की जघन्य बा उत्कृष्ट अवगाहना असंख्यातगुणी है, तो भी सूक्ष्म नामकर्मकी सामर्थ्य से अन्य पर्वतादिकसे भी इनका प्रतिधात नहीं होता है, उनमें वे निकलकर चले जाते हैं। जैसे-जल की बूद वस्त्रसे रुकती नहीं है निकल जाती है वैसे सूक्ष्म शरीर जानना । बादर नामकर्म कर्मके उदयसे अल्प शरीर होनेपर भी दूसरों के द्वारा प्रतिघात होता है जैसे सरसों वस्त्रसे निकलती नहीं है तैसे ही बादर शरीर जानना । यद्यपि ऋद्धिप्राप्त मुनियोंका शरीर बांदर है तो भी वज्र पर्वत आदिकमेंसे निकल जाता है, रुकता नहीं है सो यह तपजनित अतिशय को हो महिमा है। क्योंकि तप, विद्या, मणि, मन्त्र, औषधिकी शक्तिके अतिशयका माहात्म्य ही प्रगट होता है, ऐसा ही द्रव्यका स्वभाव है। स्वभाव तर्कके अगोचर है, ऐसा समस्त वादी मानते हैं। यहाँ पर अतिशयवानोंका ग्रहण नहीं है, इसलिए अतिशय रहित वस्तुके विचारमें पूर्वोक्त शास्त्रका उपदेश ही बादर सूक्ष्म जीवोंका सिद्ध हुआ। ४. सूक्ष्म व बादर में प्रदेशों सम्बन्धी विचार दे. शरीर/१/४,५ औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस व कार्मण ये पाँचों शरीर यद्यपि उत्तरोत्तर सुक्ष्म हैं परन्तु प्रदेशका प्रमाण उत्तरोत्तर असंख्यात व अनन्तगुणा है। स.सि./२/३८/१६२/१० याब, परम्पर' (शरीर) महापरिमाणं प्राप्नोति । नै यमः बन्धविशेषात्परिमाणभेदाभावस्तूल निचयायःपिण्डवत् । - प्रश्न-यदि ऐसा है तो उत्तरोत्तर एक शरीरसे दूसरा शरीर महापरिमाणवाला प्राप्त होता है : उत्तर-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि बन्ध-विशेषके कारण परिमाण में भेद नहीं होता । जैसे, रूईका ढेर और लोहेका गोला । (रा. वा./२/३८/५/१४८/८) . . रा. वा./२/३९/६/१४८/३१ स्यादेतत्-बहुद्रव्योपचितत्वात तैजसकार्मणयोरुपलब्धिः प्राप्नोतीति । तन्नः किं कारणम् । उक्तमेतह-प्रचयविशेषात् सूक्ष्मपरिणाम इति । - प्रश्न-बहुत परमाणुबालें होनेके कारण तैजस और कार्मण शरीरकी उपलब्धि ( दृष्टिगोचर.) होना प्राप्त है। उत्तर-नहीं, पहले कहा जा चुका है कि उनका अति सघन . और सूक्ष्म परिणमन होनेसे इन्द्रियोंके द्वारा उपलब्धि नहीं हो सकती। ध, १३/५,४,२४/१०/४ ण च थूलेण बहुसंखेण चेव होदव्वमिदि णियमो अस्थि । थूलेरंडरुक्खादो सहलोहगोलएगरूवत्तण्णहाणुववत्तिबलेण पदेसबहुत्तुवल भादो। = स्थूल बहुत संख्यावाला ही होना चाहिए, ऐसा कोई नियम नहीं है क्योंकि स्थूल एरण्ड वृक्षसे, सूक्ष्म लोहेके गोलेमें एकरूपता अन्यथा बन नहीं सकती, इस युक्तिके बलसे प्रदेशबहुत्व देखा जाता है। ५. सूक्ष्म व बादरमें नामकर्म सम्बन्धी विचार ध. ११,१,३४/२४६-२५१/६ न बादरशब्दोऽयं स्थूलपर्यायः, अपितु बादरनाम्नः कर्मणो वाचकः । तदुदयसहचरितत्वाज्जीवोऽपि मादरः ॥२४॥ कोऽनयोः (बादर-सूक्ष्म )कर्मणोरुदययो.दश्चेन्मूर्तेरन्यैः प्रतिहन्यमानशरीरनिर्वतको बादरकर्मोदय; अप्रतिहन्यमानशरीरनिर्वर्तकः सूक्ष्मकर्मोदय इति तयोर्भेदः। सूक्ष्मत्वात्सूक्ष्मजीवानां शरीरमन्यैर्न मूर्तद्रव्यैरभिहन्यते ततो न तदप्रतिघातः सूक्ष्मकर्मणो विपाकादिति चेन्न, अन्यैरप्रतिहन्यमानत्वेन प्रतिलब्धसूक्ष्मव्यपदेशभाजः सूक्ष्मशरीरादसंख्येयगुणहीनस्य बादरकर्मोदयतः प्राप्तबादरव्यपदेशस्य सूक्ष्मत्वप्रत्यविशेषतोऽप्रतिधाततापत्तेः । -बादर शब्द स्थूलका पर्यायवाची नहीं है, किन्तु बादर नामक नामकर्मका वाचक है, इसलिए उस बादर नामकर्मके उदयके सम्बन्धसे जीव भी बादर कहा जाता है । प्रश्न-सूक्ष्म नामकमके उदय. और बादर नामकर्म के उदयमें क्या भेद है 1 उत्तर-बादर नामकर्म का उदय दूसरे मूर्त पदार्थोंसे आघात करने योग्य शरीरको उत्पन्न करता है । और सूक्ष्म नामकर्म का उदय दूसरे मूर्त पदार्थों के द्वारा आघात नहीं करने योग्य शरीरको उत्पन्न करता है। यही उन दोनों में भेद है। प्रश्न-सूक्ष्म जीवोंका शरीर सूक्ष्म होनेसे ही अन्य मूर्त द्रव्यों के द्वारा आपातको प्राप्त नहीं होता है, इसलिए मूर्त द्रव्यों के साथ प्रतिघातका नहीं होना सूक्ष्म नामकर्म के उदयसे नहीं मानना चाहिए। उत्तर-नहीं, क्योंकि, ऐसा मानने पर दूसरे मूर्त पदार्थोके द्वारा आघातको नहीं प्राप्त होनेसे सुक्ष्म संज्ञाको प्राप्त होने वाले सूक्ष्मशरीरसे असंख्मात गुणी हीन अवगाहनावाले और नामकर्म के उदयसे बादर संज्ञाको प्राप्त होनेवाले भादर शरीरको सूक्ष्मताके प्रति कोई विशेषता नहीं रह जाती है, अतएव उसका भी मूर्त पदार्थों से प्रतिघात नहीं होगा, ऐसी आपत्ति आयेगी। ६. बादर जीव आश्रय से ही रहते हैं ध. ७/२.६,४८/३३६/१ पुढवीओ चेवस्सिदूण बादराणमवट्ठाणादो। -पृथिवियोंका आश्रय करके ही बादर जीवोंका अवस्थान है। (ध.४/१,३,२४/१००/१०) (गो. जी./मू./१८४/४१६) ( का. अ./ टी./१२२) ७. सूक्ष्म व बादर जीवोंका लोको अवस्थान म. आ./१२०२ एइंदिया य जीवा पंचविधा वादरा ये सहमा य । सेहि बादरा खलु सुहमैहि णिरतरो लोओ ।१२०२। - एकेन्द्रिय जीव प्रथिवीकायादि पाँच प्रकारके हैं और वे प्रत्येक बादर सूक्ष्म है, बादर जीव लोकके एक देश में हैं तथा सूक्ष्म जीवोंसे सब लोक ठसाठस भरा हुआ है ।१२०२। (और भी दे. क्षेत्र) * अन्य सम्बन्धित विषय १. बादर वनस्पति कायिक जीवोंका लोकमें अवस्थान । -दे, वनस्पति/२/१०। जैनेन्द्र सिद्धान्त श Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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