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सादृश्य प्रत्यभिज्ञान
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साधारण चन्द्रसादृश्यम् । = उससे भिन्न हो तथा उसमें रहनेवाले धर्म पदार्थ में पपत्तेः साधर्म्य वै धर्म्य समौ ।रा-निदर्शनं क्रियावानात्म' द्रव्यरय हों, यही सादृश्य है। जैसे चन्द्रमासे भिन्न रहते चन्द्रगत आह्वादकरत्व क्रियाहेतुगुणयोगात् । द्रव्यं लोष्टः क्रियाहेतुगुणयुक्तः क्रियावान् तथा वर्तुलाकार युक्तत्व यह चन्द्रसादृश्य मुख में है।
चास्मा तस्मारिक्रयावानिति। एवं उपसंहृतेः परः साधम्र्येणैव प्रत्यसादृश्य प्रत्यभिज्ञान-दे. प्रत्यभिज्ञान |
वतिष्ठते निष्क्रिय आत्मा विभुनो द्रव्यस्य निष्क्रियत्वाइ विभु
चाकाशं निष्क्रियं च तथा चात्मा तस्मानिष्क्रिय इति 1.. विशेषसादृश्यास्तित्व-दे. अस्तित्व ।
हेत्वभावात्साधर्म्यसमः प्रतिषेधो भवति। विशेषहेत्वभावात्साधर्म्यसाधक श्रावक-दे. श्रावक//३।
समः प्रतिषेधो भवति। अथ वैधर्म्यसमः क्रियाहेतुगुणयुक्तो लोष्टः
परिच्छिन्नो दृष्टो न च तथात्मा तस्मान्न लोष्टवत् क्रियावानिति ।... साधन-१.लक्षण
विशेषहेत्वभावाद्वैधर्म्यसमः। वैधम्र्येण चोपसंहारे निष्क्रिय आत्मा १. हेतुके अर्थमें
विभुत्वात क्रियावद् द्रव्यमविभु दृष्टं यथा लोष्टो न च तथात्मा श्लो. वा./३/१/१३/श्लो. १२२/२६६ अन्यथानुपपत्त्येकलक्षणं तत्र
तस्मानिष्क्रिय इति वैधhण प्रत्यवस्था निष्क्रिय द्रव्यमाकाशं साधनं । अन्यथा अनुपपत्ति ही एक जिसका लक्षण है, वह साधन
क्रियाहेतुगुणरहितं दृष्टं न तथात्मा तस्मान्न निष्क्रिय इति ।... है। (सि.वि./वृ./५/२२/३५६/७); (और भी दे. हेतु/१/१)।
विशेषहेत्वभावाद्वैधर्म्यसमा क्रियावान लोष्टः क्रियाहेतुगुणयुक्तो दृष्टः न्या. दी./३/१६/६६ निश्चितसाध्यान्यथानृपपत्तिकं साधनम्। यस्य
तथा चात्मा तस्मात् क्रियावानिति ।-विशेष हेत्वभावात्साधर्म्यसाध्याभावासंभवनियमरूपा व्याप्त्यविनाभावाद्यपरपर्याया साध्या
समः।-१. वादी द्वारा साधर्म्यकी तरफसे हेतुका पक्षमें उपसंहार कर न्यथानुपपत्तिस्तख्येिन प्रमाणेन निर्णीता तत्साधनमित्यर्थः ।
चुकनेपर उस साधर्म्य के विपर्यय धर्मकी उपपत्ति करनेसे जो वहाँ तदुक्तं कुमारनन्दिभट्टारकैः-"अन्यथानुपपत्त्येकलक्षणं लिङ्ग- दूषण उठाया जाता है वह साधर्म्यसम प्रतिषेध माना गया है। मङ्गयते" [वादन्याय-] इति ।-जिसकी साध्यके साथ अन्यथा
२. और इसी तरह बादी द्वारा वैधर्म्यकी तरफसे पक्षमें हेतुका नुपपत्ति निश्चित है उसे साधन कहते हैं। तात्पर्य यह है कि जिसकी
उपसंहार कर चुकनेपर पुनः प्रतिवाद द्वारा साध्य धर्मके विपर्ययकी साध्यके अभावमें नहीं होने रूप व्याप्ति, अविनाभाव आदि नामों
उपपत्ति हो जानेसे वैधH या साधर्म्यकी अंरसे प्रत्यवस्थान दिया वाली साध्यानुपपत्ति- साध्यके होनेपर ही होना और साध्यके
जाता है वह वैधर्म्यसमा जाति इष्ट की गयी है। ३. साधर्म्यसमाका अभावमें नहीं होना - तर्क नामके प्रमाण द्वारा निर्णीत है वह साधन
उदाहरण-आत्मा क्रियावान् है क्योंकि यह एक द्रव्य है, और द्रव्य है। श्री कुमारनन्दि भट्टारकने भी कहा है-"अन्यथानुपपत्तिमात्र
क्रिया हेतु गुणसे युक्त होनेके कारण क्रियावाच हुआ करता है। जिसका लक्षण है उसे लिंग कहा गया है।"--(और भी दे.
जैसे लोष्ट नामका द्रव्य क्रियाहेतु गुणसे युक्त होने के कारण क्रियावान् हेतु/१/१)।
है। इसप्रकार वादी द्वारा साधर्म्य की तरफसे उपसंहार किया जा
चुकनेपर प्रतिवादी इसके विपर्ययमें यों कह रहा है कि आत्मा २. चारित्रके अर्थमें
निष्क्रिय है, क्योंकि, यह विभु है और विभुद्रव्य निष्क्रिय हुआ भ. आ./वि./२/१४/२१ उपयोगान्तरेणान्तहिताना दर्शनादिपरिणामान करता है, जैसे कि आकाश । विशेष हेतुके अभावमें 'साधर्म्यसमा निष्पादनं साधनं । अन्य कार्य के प्रति ज्ञानोपयोग लगनेसे
प्रतिषेध होता है। वैधर्म्य समाका उदाहरण-क्रियाहेतुगुणसे युक्त तिरोहित हुए दर्शनादिपरिणामों को उत्पन्न करना, अर्थात नित्य व
लोष्ट तो परिच्छिन्न अर्थात अव्यापक देखा जाता है, परमात्मा आत्मा नैमित्तिक कार्य करने में चित्त लगनेसे तिरोहित हुए सम्यग्दर्शना
तो वैसा नहीं है, इस लिए वह लोष्ट की भाँति क्रियावान् भी नहीं दिकोंमेंसे, किसी एकको पुनः उपायोंके प्रयोगसे सम्पूर्ण करना साधन
है। विशेष हेतुके अभाव में यह वैधर्म्यसमा जाति है। ४. अथवा कहलाता है।
वैधर्यको तरफसे उपसंहार किया जाने पर दोनों के उदाहरण ऐसे दे,श्रावक/१/१/४ [ मरण समय आहार व मन वचन कायके व्यापारका
हैं-आत्मा निष्क्रिय है, क्योंकि वह विभु है । लोष्ट की भाँति अविभु त्याग करके आत्म शुद्धि करना साधन है। उसको करनेवाला श्रावक
द्रव्य ही क्रियावान देखा जाता है, परन्तु आत्मा वैसा नहीं है, साधक श्रावक कहलाता है।]
इसलिए वह निष्क्रिय है, इस प्रकार वैधय॑की तरफसे उपसंहार
किया जा चुकनेपर प्रतिवादी वैधय॑के द्वारा ही प्रत्यवस्थान देता है * अन्य सम्बन्धित विषय
कि निष्क्रिय आकाश द्रव्य ही क्रियाहेतु गुणसे रहित देखा जाता १. कारणके अर्थमें साधन-दे. कारण/I/१/११
है, परन्तु आत्मा वैसा नहीं है, इसलिए वह निष्क्रिय नहीं है। विशेष २. साधन साध्य संबन्ध-दे. संबन्ध ।
हेतुके अभाबमें यह वैधर्म्यसमा जाति है। क्रियावान लोष्ट द्रव्य ही ३. निश्चय व्यवहार में साध्य साधन भाव-दे. सम्यग्दर्शन आदि वह क्रियाहेतु गुणसे युक्त देखा जाता है और क्यों कि आत्मा भी वैसा ही
वह नाम।
है, इसलिए बह क्रियावान् है । विशेष हेतुके अभावमें यह साधर्म्यसमा
जाति है। (श्लो.वा./४/१/३३/न्या. ३२५/४६३/५ तथा न्या./३२६/ साधनमन्त्र-दे. मन्त्र/१/६ ॥
850/9) साधन विकल-दे. दृष्टान्त/१/८1
साधारण-१. साधारणत्वका लक्षण साधन व्यभिचार-दे. नय/III/६/८॥
स.भ.त./७८/६ अनेकव्यक्तिवृत्तित्वमेव हि साधारणत्यम् । अनेक साधम्र्य-स. भ. त./१३/२ साधय नाम साध्याधिकरणवृत्तित्वेन
व्यक्तियों में अनुगतरूपसे होनेवाला वृत्तित्व ही साधारणत्व है। निश्चितत्वम् ।-साध्यके आधारोंमें जिसकी वृत्तिता निश्चित हो
(विशेष दे. सामान्य )। उसको साधर्म्य कहते हैं। साधयं उदाहरण दे. दृष्टान्त/१/३॥
२. साधारणासाधारण शक्ति साधर्म्य समा
स.सा./आ./परि/शक्ति नं. २६ स्वपरसमानासमानसमानासमानत्रिन्या. सू. व भाष्य/४/१/२ साधर्म्यवैधाभ्यामुपसंहारे तद्धर्मविपर्ययो- विधभावधारणात्मिका साधारणासाधारणसाधारणासाधारणधर्मत्व
भा०४-५१
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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