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संख्या
जौवारिक मिश्र
वैि
मार्गणा
आहारक व कार्मण काय
औदारिक काय मिश्र
कार्मण काय सिद्ध जीव
अभय वचन
1. वैक्रियक काय
उभय बच्चन
असत्य
सत्य
अनुभय मन
उभय
वरीय
असत्य
सत्य
pla
::
39
सत्य
"
बैकि. मिश्र वैक्रि. काय अनुभय वचन
उभय
Mama
39
11
"
११
19
उपरोक्त क्रमसे चार मनोयोगी
बैंक कार्य उपरोक्त क्रमसे चार वचनयोगी उपरोक्त क्रमसे चार मनोयो,
वैक्रि. काय उपरोक्त कमसे
चार बचन उपरोक्त क्रमसे
चार मन
औदा. काय
उपरोक्त क्रमसे
चार वचन
उपरोक्त क्रम
चार मन
कि. मिश्र
कार्मण काय
औदा, मिश्र
जैकि मिश्र
कार्मण काय
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गुणस्था
१
१
१
१
१
१
१
१
१
१
४
४
४
४
४
४
३
३
३
२
२
२
४
३
२
५
४
४
२
२
२
४२
오태
3
५०७
"
४४
५०५
घ. / पृ.
४०४
"
37
४०४
**
99
४०५
95
99
11
5+
13
"1
४०६
::
:::::
49
४०७
::::
"
सर्व + सं
35
"
19
सर्व जीव+असं
11
सर्व जीवों से हू
घोष
असं.."
11
19
१७
91
"
११
शेष के सं.
"
11
14
11
भागाभाग
11
१०
+ अनं
११
उत्तरोत्तर..
19
99
शेषके उसरोवर..
17
अनं
15 39
11
शेषके उत्तरोत्तर..
:::
असं
असं.
स.
असं,
11
91
उत्तरोत्तर..
असं.
सं.
19
:
14
hco
महु
19
39
19
10
""
39
"
39
19
19
असं म सं.
::
17
19
37
"
14
शेषके असं. महु.
११२
99
11
"
मार्गणा
(उपरोक्त क्रमसे ६-७ सर्व योग
५. वेद मार्गगा
स्त्री. पुरुष व
अपगत वेदी
नपुंसक वेदी
अपगत
श्री
पुरुष तीनों बेदी
33
99
11
६. काय मार्गणा
क्रोधी मानीमायी
लोभ कषायी
अकषायी
चारों कषायो
( अकषायी +
लोभ कषायी
माया
क्रोध
मान
अकषायी
17
11
19
क्रमसेोभ माया, मान व क्रोध कषायी
लोभ कषायी
माया
क्रोध
79
११
मान,
उपरोक्त क्रमसे
चारों
गुणस्था.
"
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
१
४
५-६
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१
२-१०)
१
१
१
१
४
५
५
५
.
ܗ
रव
नोट -चारों कषायीकी मिथ्यादृष्टि सामान्य राशिके असं बहुभाग के चार समान खण्ड करके एक एक खण्ड प्रत्येकको दीजिये। इस एक खण्डकी सहनानीक / शेष असं वें भागकी सहनानी- रख । इस क्षेत्र राशिके उपरोक्त असं बहु भागको चारोंकी कराशिमें मिलाना । असं आ/ असं. ।
५
६-१०
Xir
४८
पं.१०
५१०
१०
३. संख्या विषयक प्ररूपणाएँ
घ./पृ.
४२१
17
४३१
४३२
17
11
४३३
४३३
ओघके आधार पर जान लेना
शेषके असं.
चारों कषाय
नोट-उपरो नोटकी भाँति यहाँ संयतास मतको अपेक्षा 'क'म 'ख' राशि जानना ।
::::
भागाभाग
सर्व जीव + अनं.
सर्व जीवों के अनं बहु.
•
शेषके
21
"
17 11
सं. असं.
19
"1
ओघवत सर्वजं से कुछ कम
४
सर्व जीव:
-से कुछ अधिक
"
४
सर्व जीव+अनं सर्व जीव के अनं, बहु शेष एक भाग
क +खका असं. न.
क + शेषका क+
क +शेष एक भाग उपरोक्त अवामी +
"1 41
१-१० गुणस्थानकी सर्वशिके वनं महु. उत्तरोत्तर संभ बहु.
"
महु.
क+का असं बहु क + शेषका
11
क +
W
११ 11.
क + शेष एक भाग सयतासंयत के क्रम से यथा योग्य
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