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सप्तभंगी
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५. अनेक प्रकारसे अस्तित्व नास्तित्व प्रयोग
संस्थानादिः स स्वात्मा, इतरः परात्मा। तत्र प्रतिनियतेन रूपेण घटः वेदी पुनः...|२५७) =स्याद्वादका ज्ञाता तो आत्माका निज कालसे नेतरेण (३३।२८)। परस्परोपकारवतिनि पृथुबुध्नाद्याकारः स्वात्मा, अस्तित्व जानता हुआ"।२५६१ स्याद्वादका ज्ञाता तो परकालसे इतरः परात्मा । तेन पृथुबुघ्नाद्याकारेण स घटोऽस्ति नेतरेण । (३४)। आरमाका नास्तित्व जानता (है)।२५८॥ = घट शब्दके वाच्य अनेक घड़ोंमें-से विवक्षित अमुक घटका जो स्या. म/२३/२७६/१ ( घटः) कालतः शै शिरत्वेन । न वासन्तिकादिआकार आदि है वह स्वात्मा, अन्य परात्मा है । सो प्रतिनियत रूपसे त्वेन । -( घटः) कालकी अपेक्षा शीत ऋतुकी दृष्टिसे है, बसन्त घट है, अन्य रूपसे नहीं (३३३२८)। (प्रत्युत्पन्न घट क्षणमें रूप, रस, ऋतुकी दृष्टिसे नहीं। गन्ध ) पृथुबुध्नोदराकार आदि अनेक गुण और पर्यायें हैं। अतः पं.ध/पू/१४६ अपि चैकस्मिन् समये यकाप्यवस्था भवेन्न साप्यन्या। घड़ा पृथुबुध्नोदराकारसे 'है' क्योंकि घट व्यवहार इसी आकारसे भवति च सापि तदन्या द्वितीयसमयोऽपि कालव्यतिरेकः ।१४।। होता है अन्यसे नहीं।
-एक समयमें जो अवस्था होती है वह वह ही है अन्य नहीं। ध.६/४,१,४५/२१४/५ अर्पितसंस्थानघटः अस्तिस्त्ररूपेण, नापितसंस्थान- और दूसरे समय में भी जो अवस्था होती है वह भी उससे अन्य ही
घटरूपेण । अथवापितक्षेत्रवृत्तिर्धटोऽस्ति स्वरूपेण नानर्पितक्षेत्र- होती है पहली नहीं ।१४६। (पं.ध./पू./१७२/४६७)। वृतैर्घटैः । -विवक्षित आकारयुक्त घट स्वरूपसे है, अविवक्षित
४. स्व-पर भावकी अपेक्षा आकार रूप घट स्वरूपसे नहीं है ।...अथवा विवक्षित क्षेत्र में रहनेवाला घट अपने स्वरूपसे है, अविवक्षित क्षेत्रमें रहनेवाले घटों की अपेक्षा वह रा. वा/१/६/२/३४/१४रूपमुखेन घटो गृह्यत इति रूपं स्वात्मा, रसादिः नहीं है।
परात्मा। स घटो रूपेणास्ति नेतरेण रसादिना। ...तत्र घटनक्रिया स. सा./आ./२५४-२५५ स्त्रक्षेत्रास्तितया निरुद्धरभसः स्याद्वादवेदी
विषयकतभावः स्वात्मा, इतरः परात्मा। तत्राद्य'न घटः नेतरेण । पुनस्तिष्ठत्यात्मनिखातबोध्य नियतव्यापारशक्तिर्भवन् ।२५४॥
-घड़ेके रूपको आँखसे देखकर ही घटके अस्तित्वका व्यवहार स्याद्वादी तु वसन् स्वधामनि परक्षेत्रे विदन्नास्तिता...॥२५॥
होता है अतः रूप स्वारमा है तथा रसादि परात्मा। क्योंकि घड़ा -स्याद्वादी तो स्वक्षेत्रसे अस्तित्व के कारण जिसका वेग रुका हुआ
रूपसे है अन्य रसादि रूपसे नहीं।...घटका घटनक्रियामें कर्ता रूपसे है, ऐसा होता हुआ, आत्मामें ही ज्ञेयोंमें निश्चित व्यापारकी
उपयुक्त होने वाला स्वरूप स्वात्मा है और अन्य परात्मा। शक्तिवाला होकर, टिकता है ।२५४। स्याद्वादी तो स्वक्षेत्रमें रहता
ध.६/४,१,४५४२१४/१ रूपघटो रूपघटरूपेणास्ति, न रसादिघटरूपेण । हुआ, परक्षेत्र में अपना नास्तित्व जानता ( है ) ।२५५॥
...रक्तघटो रक्तघटरूपेणास्ति, न कृष्णादिघटरूपेण । “अथवा नवस्या. म./२३/२७१/१ क्षेत्रतः पाटलिपुत्रकत्वेन । न कान्यकुब्जादित्वेन ।
घटो नवघटरूपेणास्ति, न पुराणादिषटरूपेण । -रूपघट रूपघट - (घट ) क्षेत्रकी अपेक्षा पटना नगरकी अपेक्षा मौजूद है, कन्नौजकी
रूपसे है, रसादि घट रूपसे नहीं, ...रक्तघट रक्तघट रूपसें है कृष्णादि अपेक्षा नहीं।
घट रूपसे नहीं है। ...अथवा नवीन घट नवीन घट स्वरूपसे है, पं.ध./पू./१४८ अपि यश्चैको देशो यावदभिव्याप्य वर्तते क्षेत्रम् । पुराने आदि घट स्वरूपसे नहीं। -
तत्तत्क्षेत्रं नान्यद्भवति तदन्यश्च क्षेत्रव्यतिरेकः । =जो एक देश स. सा./आ./परि./क. २५८-२५६ सर्वस्मानियतस्वभावभवनज्ञानाद्विजितने क्षेत्रको रोककर रहता है वह उस देश (द्रव्य ) का स्वक्षेत्र भक्तो भवत् स्याद्वादी...।२५८। स्याद्वादी तु विशुद्ध एव लसति है । अन्य असका नहीं है, किन्तु दूसरा दूसरा हो है, पहला स्वस्य स्वभाव भरादारूढः परभावभावविरहव्यालोकनिष्कम्पितः पहला ही।
१२५६। = स्याद्वादी तो अपने नियत स्वभावके भवन स्वरूप ज्ञानके
कारण सत्र (परभावों) से भिन्न वर्तता हुआ...।२५८॥ स्याद्वादी तो ३. स्व-पर कालकी अपेक्षा
अपने स्वभावमें अत्यन्त आरूढ होता हुआ, परभाव रूप भवनके रा. वा./२/६/५/३३/३२ तस्मिन्नेत्र घट विशेषे कालान्तरावस्थायिनि
अभावकी दृष्टिके कारण निष्कम्प वर्तता हुआ ।२५६) पूर्वोत्तरकुशलान्तकपालाद्यवस्थाकलापः परात्मा, तदन्तरालवर्ती
स्या. म./२३२७४/२ (घटः) भावतः श्यामत्वेन । न रक्तादित्वेन । स्वात्मा। स तेनैव घटः तत्कर्म गुणव्यपदेशदर्शनात नेतरात्मना ।...
-घट भावकी अपेक्षा काले रूपसे मौजूद है, लाल रूपसे नहीं। अथवा अजुसूत्रनयापेक्षया प्रत्युत्पन्नघटस्वभावः स्वात्मा, घटपर्याय ___ पं. ध/पू./१५० भवति गुणांशः कश्चित् स भवति नान्यो भवति न एवातीतोऽनागतश्च परात्मा। तेन प्रत्युत्पन्नस्वभावेन सता स घटः चाप्यन्यः । सोऽपि न भवति तदन्यो भवति तदन्योऽपि भावव्यतिनेतरेणासता। - अमुक घट भी द्रव्यदृष्टिसे अनेक क्षणस्थायी होता रेकः ।१५० =जो कोई एक गुणका अविभागी प्रतिच्छेद है वह है। अतः अन्वयी मृगद्रव्यकी अपेक्षा स्थास कोश कुशल घट कपाल वह ही होता है, अन्य नहीं हो सकता। और दूसरा भी पहला आदि पूर्वोत्तर अवस्थाओं में भी घट व्यवहार हो सकता है। इनमें नहीं हो सकता है। किन्तु उससे भिन्न है वह उससे भिन्न ही स्थास, कोश, कुशूल और कपाल आदि पूर्व और उत्तर अवस्थाएं रहता है ।१५० परात्मा हैं तथा मध्य क्षणवर्ती घट अवस्था स्वात्मा है ।...अथवा ऋजुसूत्र नयकी दृष्टिसे एक क्षणवर्ती घट ही स्वात्मा है, और अतीत ५. वस्तुके सामान्य विशेष धर्मोकी अपेक्षा अनागतकालीन उस घटकी पर्यायें परात्मा हैं। क्योंकि प्रत्युत्पन्न
न्या.वि./मू./३/६६/३५० द्रव्यपर्यायसामान्यविशेषप्रविभागतः। स्यास्वभावसे घट है, अन्यसे नहीं।
द्विधिप्रतिषेधाम्यां सप्तभङ्गी प्रवतते। =द्रव्य अर्थात सामान्य और "ध.६/४.१,४५/२१४/६ तत्परिणतरूपेणास्ति घटः, न पिण्ड-कपालादिप्राक पर्याय अर्थात् विशेष; द्रव्य सामान्य व द्रव्य विशेष में तथा पर्याय प्रसाभावः विरोधात् ।...वर्तमानो घटो वर्तमानघटरूपेणास्ति, सामान्य व पर्याय विशेषमें कथं चित्र विधि प्रतिषेधके द्वारा तीन नातोतानागतघटैः। = घट पर्यायसे घट है, प्राग्भावरूप पिण्ड सप्तभंगी प्रवर्तती है।
और प्रबंसाभावरूप कपाल पर्यायसे वह नहीं है, क्योंकि वैसा ध.६/४,१,४५/पृष्ठ/पंक्ति पर्यायघटः पर्यायघटरूपेणास्ति, न द्रव्यघटमाननेमें विरोध है ।...तमान घट वर्तमान रूपसे है, अतीत व रूपेण (२१५/७ ) अथवा व्यञ्जनपर्यायेणास्ति घटः नार्थपर्यायेण अनागत घटों की अपेक्षा बह नहीं है।
(२१/३)। - पर्यायघट पर्यायघट रूपसे है, द्रव्य घट रूपसे स. सा. आ./परि./क. २५६-२५७ अस्तित्वं निजकालतोऽस्य कलयन नहीं (२१४/७ ) अथवा व्यजन पर्यायसे घट है, अर्थ पर्यायसे स्यावादवेदी पुनः ।२५६। नास्तित्वं परकालतोऽस्य कलयन स्याद्वाद- नहीं हैं ( २१५/३)।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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