________________
समवसरण
३३२
समवसरण
३
२४
गाथा
नाम
लम्बाई चौड़ाई या ऊँचाई
८१४
२२३ प्रथम ऋषभदेवके
| नेमिनाथ तक पार्श्वनाथके वर्धमानके समवसरण में ।
। क्रमिक हानि समवसरणमें | समवसरण में चैत्यप्रासाद भूमिसे दूना स्व स्व तीर्थकरसे १२ गुनी द्वितीय वेदोबत
लता भूमिवत् स्व स्व तीर्थकरसे १२ गुना
उपवन भूमि उपवनभूमिके भवन तृतीय वेदी ध्वज भूमि ध्वजस्तम्भ
८१३
८१७ ८२६
८२१
८२२
विस्तार ऊँचाई विस्तार व ऊँचाई विस्तार ऊँचाई विस्तार विस्तार व ऊँचाई विस्तार विस्तार व ऊँचाई विस्तार विस्तार ऊँचाई
८२७
८२८ ८४०
तृतीय कोट कल्प भूमि चतुर्थ वेदी
भवन भूमि भवनभूमिको भवन पंक्तियाँ
स्तूप
८४३
द्वितीय कोटयत ध्वज भूमिवत्
प्रथम वेदीवत ( कल्पभूमिवन् ।) प्रथम वेदीसे ११ गुणा
चैत्य वृक्षवत् अर्थात् स्व-स्व तीर्थ करसे १२ गुणा
(दे. वृक्ष) द को. स्टेट को.. स्व-स्व तीर्थकरसे १२ गुणी १४४ को | हैट को.
चतुर्थ कोट सदृश मानस्तम्भके पीठबत्
८५०
चतुर्थ कोट श्रीमण्डपके कोठे
८५३
विस्तार ऊँचाई विस्तार विस्तार ऊँचाई
पंचम वेदी प्रथम पीठ
oin
(दे. मानस्तम्भ) ३६ को. पर को.
२४ को.
है को.
विस्तार मेखला
१३ ध.
द्वि.पीठ
४ घ.
...
८८२
टे को.
तृतीय पीठ
विस्तार मेखला ऊँचाई विस्तार विस्तार ऊँचाई चाई
१३० को । १ को. | २३५ को..
प्रथम पीठवत द्वितीय पौठवत
प्रथम पीठसे चौथाई ६००ध, । २५ ध, १२५ ध,
गन्धकुटी
५०ध. ७५ घ,
सिंहासन
स्व स्व तीर्थकरके योग्य
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org