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सम्यग्दर्शन
होंति । ण चेवं, अणुवलंभा । परिहारो वुच्चदे--ण वेयणासामण्णं सम्म सुपक्षीय कारणं किंतु जेसिमेसा देणा एवम्हादो मियादो इमाद अजमादो (बा) उपपत्ति उपजोगो, जादो तेखि चैत्र देणा सम्मतम्पती कारणं, मावरजीवाणं बेयणा, सत्य एवं विजोगाभावा । प्रश्न- १. चूँ कि सभी नारकी जीव विभंगज्ञानके द्वारा एक, दो, या तीन आदि भवग्रहण जानते हैं (दे. नरक ), इसलिए सभी जातिस्मरण होता है। अतएव सारे नारकीय जीव सम्यग्दृष्टि होने चाहिए 1 उत्तर - यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, सामान्य रूपसे भवस्मरणके द्वारा सम्यक नहीं होती। किन्तु धर्मबुद्धिसे पूर्वभव किये गये अनुमानोंकी विफलता के दर्शन से ही प्रथम सम्यक्त्वकी उत्पत्तिका कारणत्व इष्ट है, जिससे पूर्वोक्त दोष प्राप्त नहीं होता और इस प्रकारको बुद्धि सब नारकी जीवों होती नहीं है, क्योंकि सीम मिध्यात्वके उदयके वशीभूत नारकी जीवोंके पूर्व भव का स्मरण होते हुए भी उक्त प्रकारके उपयोगका अभाव है । इस प्रकार जातिस्मरण प्रथम सम्यक्त्वकी उत्पत्तिका कारण है। प्रश्नवेदनाका अनुभव सम्यक्त्वोत्पत्तिका कारण नहीं हो सकता, क्योंकि, यह अनुभव तो सब नारकियोंके साधारण होता है । यदि वह अनुभव सम्यक्त्वोत्पत्तिका कारण हो तो सब नारकी जीव सम्पति होंगे। किन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि जैसा पाया नहीं जाता 1 उत्तर-पूर्वोक्त शंकाका परिहार कहते हैं । वेदना सामान्य सम्यक्त्वोपतिका कारण नहीं है, किन्तु जिन जीनोंके ऐसा उपयोग होता है, कि अमुक वेदना अमुक मिथ्यात्वके कारण या अमुक असंयमसे उत्पन्न हुई, उन्हीं जीवोंकी वेदना सम्यक्त्वोत्पत्तिका कारण होती है। अन्य जीवोंकी वेदना नरकों में सम्यक्त्वोत्पत्तिका कारण नहीं होती, क्योंकि उसमें उक्त प्रकार के उपयोगका अभाव होता है ।
५. नरकोंमें धर्म श्रवण सम्बन्धी
घ. ६/१-१-१/४२२/१ कई तेखि धम्मसंभवदि, तस्थ रिसीव गमनाभावा । ण सम्माइट्ठिदेवाणं पुव्वभव संबंधी धम्मपदुप्पा वावदाणं सयलवाधाविरहियाणं तत्थ गमणदंसणादो |
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घ. ६/९६-६,९२/४२४/५ धम्मसपणादो पहमसम्मतस्स सत्य उप्पी णत्थि, देवाणं तत्थ गमनाभावा । तत्थ तणसग्माइद्विधम्मसबणादो पढमसम्मत्तस्स उप्पत्ती किण्ण होदि त्ति वुत्ते ण होदि, तेसिं भवसंबंधेण पुव्यबेरसंबंधेन वा परोप्परविरुद्वाणं अणुगेयुग्गाव भावाणमसंभवादो। = प्रश्न- १. नारकी जीवोंके धर्म श्रवण किस प्रकार सम्भव है, क्योंकि, वहाँ तो ऋषियोंके गमनका अभाव है ! उत्तर - नहीं, क्योंकि, अपने पूर्व भव के सम्बन्धी जीवों के धर्म उत्पन्न कराने में प्रवृत्त और समस्त बाधाओंसे रहित सम्यग्दृष्टि देवोंका नरकोंमें गमन देखा जाता है। २. नोचेकी चार पृथिवियोंमें धर्मश्रावणके द्वारा प्रथम सम्यक्रयकी उत्पति नहीं होती, क्योंकि यहाँ देवों के गमनका अभाव है। प्रश्न- वहाँ ही विद्यमान सम्यग्दृष्टियों से धर्मश्रवणके द्वारा प्रथम सम्यक्त्वकी उत्पत्ति क्यों नहीं होती ? उत्तर- ऐसा पूछनेर उत्तर देते हैं कि नहीं होती, क्योंकि, भव सम्बन्धसे या पूर्व वैर के सम्बन्धसे परस्पर विरोधी हुए नारकी tath अनुगृह्य अनुग्राहक भाव उत्पन्न होना असम्भव है ।
६. मनुष्योंमें जिनमहिमा दर्शनके अभाव सम्बन्धी
ध. ६/१,६-६,१०/४३०/१ जिणमहिमं दट्ठूण वि केई पढमसम्मतं पडिवज्जंता अस्थि तेण चदुहि कारणेहि पढमसम्मत्तं पडिवज्जति त्तिवत । ण एस दोसो, एदस्स जिणविबदसणे अंतभावादो | अथवा मधुसमिथ्या गयणगमविरहियाणं पिदेवणिकाएहि णंदीसर - जिणवर पडिमाणं कीरमाणमहामहिमावलोयणे संभवाभावा । मेरुरमहिमाओ विवाधरमिच्छादिद्वियो
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III सम्यग्दर्शनकी उत्पत्तिके निमित्त
पेच्छति त्ति एस अत्थो ण वत्तव्यओ त्ति केई भणति । तेण पुव्युत्तो चैव अत्थो घेत्तब्बो । प्रश्न-- जिनमहिमाको देखकर भी कितने ही मनुष्य प्रथम सम्यक्त्वको प्राप्त करते हैं. इसलिए (सोनकी बजाय ) चार कारणों से मनुष्य प्रथम सम्यवत्वको प्राप्त करते हैं, ऐसा कहना चाहिए ? उत्तर-१, यह कोई दोष नहीं क्योंकि, जिनमहिमादर्शनका निम्न दर्शनमें अग्मन हो जाता है।
२. अथवा मिथ्यादृष्टि मनुष्योंके आकाशमें गमन करनेकी शक्ति न होनेसे उनके चतुविध देवनिकायोंके द्वारा किये जानेवाले नन्दीश्वरद्वीपवर्ती जिनेन्द्र प्रतिमाओंके महामहोत्सवका देखना सम्भव नहीं है, इसलिए उनके जिनमहिमादर्शनरूप कारणका अभाव है । ३. किन्तु मेरुपर्वतपर किये जानेवाले जिनेन्द्र महोत्सवको
घर देखते हैं, इसलिए उपर्युक्त अर्थ नहीं कहना चाहिए, ऐसा कितने ही आचार्य कहते है, अतएव पूर्वोक्त अर्थ ही ग्रहण करना योग्य है ।
७. देवोंमें जिनबिम्ब दर्शन क्यों नहीं
प०६/१,१-६.३०/४३२/१० जिविस पडमसम्मसरस कारण से एथ
किष्ण उत्तं । ण एस दोसो; जिनमहिमादंसणम्मि तस्स अंतम्भाबादो, - जिगबिबेण विणा जिणमहिमाए अणुववत्ती दो । सम्मोयरणजम्मा हिलेमा परिणिक्खमणजिनमहिमाओ जिणि मिणा कीरमाणीओ दिस्संति ति जिमिम समस्त अमिनाभावी गरि वि पाकतिर विभानिरसनसंभा अपना एवा महिमासु उत्पज्जमाणपढमसम्मत्तं ण जिण विवद सणनिमित्तं, किंतु जिगमित्तमिति प्रश्न यहाँ देवोंमें) जिन निम्नदर्शनको प्रथम सम्यक्त्वके कारणरूपसे क्यों नहीं कहा 1 उत्तर- १. यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, जिन बिम्बदर्शनका जिनमहिमादर्शन में हो अन्तर्भाव हो जाता है, कारण जिनबिम्बके बिना जिनमहिमाकी उपपत्ति बनती नहीं है। प्रश्न-स्वर्गावतरण, जन्माभिषेक और परिनिष्क्रमणरूप जिनमहिमाएँ जिनके बिना ही को गयी देखी जाती है, इसलिए जिनमहिमा दर्शन में जिननिम्मदर्शनका अविनाभावी पता नहीं है। उत्तर- ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिए क्योंकि स्वर्गावतरण, जग्गाभिषेक और परिनिष्क्रमण रूप जिनमहिमाओं में भी भावी जिनबिम्बका दर्शन पाया जाता है । २. अथवा इन महिमाओं में उत्पन्न होनेवाला प्रथम सम्यक्त्व जिनबिम्बदर्शननिमित नहीं है, किन्तु जिनगुण अण निमिशक है।
८. आनतादिमें देवऋद्धि दर्शन क्यों नहीं
घ. ६/१६ - ६.४०/४३५/१ देविद्धिदंसणेणं चत्तारि कारणणि किण्ण तात्यि महिद्धिसं जुतुब रिमदेवाणमागमाभाषा सत्यद्विददेवानं महिद्धिदं परमसम्म यी विभितं भूयो स तत्य विन्याभावा सुक्कलेस्साए महिद्भिसमे से किसाभावादो वा। सोऊण जं जाइसरणं, देविद्धि दट्ठूण जं च जाइस्सरणं, वाणि दो दिनसम्म सुप्पत्ती जिमि होति तो मि सम्म जाइस्सरण निमित्त मिदि एण घेध्यदि वैविविणणाजाइस्सरणनिमित्तत्तादो किंतु सवण देवद्विदंसणपमित्तनिधि घेत्तव्त्रं । = प्रश्न- यहाँपर ( आनतादि चार स्वगमें) देवऋद्धिदर्शन सहित चार कारण क्यों नहीं कहे ? उत्तर-१, आनत आदि चार कल्पों में महर्षि से संयुक्त ऊपर के देवोंके आगमन नहीं होता, इसलिए यहाँ महद्विदर्शनपर रूप प्रथम सम्यस्यकी उत्पत्तिका कारण नहीं पाया जाता । २ और उन्हीं कल्पों में स्थित देवोंके महर्द्धिका दर्शन प्रथम सम्यक्त्वकी उत्पत्तिका निमित्त हो नहीं सकता, क्योंकि उसी ऋद्धिको बार-बार देखनेसे विस्मय नहीं होता । ३. अथवा उक्त कम्पोनें शुक्लेश्या सद्भाव के कारण महर्द्धिके दर्शन उन्हें कोई
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