________________
सल्लेखना
१
*
२
३
४
५
*
१२
१३
६
७
८
९ सल्लेखना के अतिचार ।
१०
सल्लेखनाका महत्व व फळ ।
११ क्षपककी भवधारण सीमा सल्लेखना में सम्भन लेश्याएँ ।
Dr rm yog 9
१
२
३
४
१४ सल्लेखनाका स्वामित्व |
१५
सभी व्रतियोंको सल्लेखना आवश्यक नहीं ।
१६ सल्लेखना के लिए हेमन्त ऋतु उपयुक्त है।
*
सल्लेखना तीन वेदनाओंकी सम्भावना |
२ | सल्लेखनाके योग्य अवसर
५
६
सल्लेखना सामान्य निर्देश
सल्लेखना सामान्यका लक्षण । दीक्षा सल्लेखना आदिकाल
बाह्य अभ्यन्तर सल्लेखना निर्देश ।
शरीर कृश करने का उपाय
८
*
सल्लेखना आत्महत्या नहीं है।
सल्लेखना जबरदस्ती नहीं करायी जाती ।
संयम रक्षार्थ या उपसर्ग आनेपर आत्महत्या तक
३
१
२
*
करना न्याय है । - दे, मरण १/५ में विप्राणस मरण । पर संयम रक्षार्थ भी मरना सल्लेखना नहीं है । अभ्यन्तर सल्लेखनाकी प्रधानता ।
*
३
सल्लेखना धारनेकी क्या आवश्यकता ।
संस्तर धारण व मरण कालमें परस्पर सम्बन्ध ।
- दे, काल / ११
सल्लेखना योग्य शरीर क्षेत्र व काल । निर्यापकको उपलब्धिकी अपेक्षा
- दे. लेखना /५/८1
योग्य कारणों के अभाव में धारनेका निषेध | अन्त समय भारने का निर्देश।
अन्त समयकी प्रधानताका कारण !
1
परन्तु केवल अन्त समयमें धरना अत्यन्त कठिन है। अतः इसका अभ्यास व भावना जीवन पर्यन्त करना योग्य है।
अन्त समय व जीव पर्यन्तकी आराधनाका समय । मरणका संशय होने पर अथवा अकस्मात् मरण होनेपर अथवा रत्रकाल मरण होने पर क्या करे । -देसदेखना /२/१-१०
भक्त प्रत्याख्यान आदि विधि निर्देश
सल्लेखनामरणके व विधि भेद ।
भक्त प्रत्याख्यान आदि तीनके लक्षण ।
तीनों आहारका त्याग सामान्य है ।
Jain Education International
सोनका स्वामित्व |
तीनकि योग्य संहनन काल व क्षेत्र |
- दे. लेखन/३/२४
- दे. सल्लेखना / १ / १४ ।
३८१
तीनोंके फल ।
५
भक्तप्रत्याख्यानकी जघन्य व उत्कृष्ट अवधि |
६ साधुओंके लिए भक्त प्रत्याख्यानकी सामान्य विधि । समर्थ आवक के लिए भक्त प्रत्याख्यानकी सामान्य विधि |
७
असमर्थ श्रावक के लिए भक्त प्रत्याख्यानकी
८
सामान्य विधि |
मृत्युका संशय या निश्चय होनेकी अपेक्षा भक्त प्रत्याख्यान विधि |
१० सविचार व अविचार भक्त प्रत्याख्यानके
९
११
१२
१३
४
१
२
३
४
५
६
७
4
९
५
१
सामान्य लक्षण व स्वामी ।
अविचार भक्त प्रत्याख्यान विधि |
२
३
४
इंगिनीमरण विधि |
प्रायोपगमन मरण विधि ।
सविचार भक्त प्रत्याख्यान विधि
इस विषयक ४० अधिकार । सल्लेखना योग्य गि । - सिंग/९/४। सल्लेखनामें नग्नताका कारण व महत्त्व ।
- देश
इन अधिकारोंका कपन क्रम आचार्य पदत्याग निधि ।
१०
११
१२ क्षपकके लिए उपयुक्त आहार
सूचीपत्र
सबसे क्षमा ।
परगणचर्या व इसका कारण ।
परगण द्वारा आगत मुनिका परीक्षा पूर्वक ग्रहण | - दे. विनय /२/१
उद्यत साधुके साह आदिका विचार आलोचना पूर्वक प्रायश्चित्त ग्रहण क्षपक योग्य वसतिका व संस्तर ।
क्षपणा, समता व ध्यान ।
कुछ विशेष भावनाओंका चिन्तवन
मौन वृद्धि
क्रम पूर्वक आहार व शरीरका त्याग ।
•
- दे, वह वह नाम । श्रावक को घर या मन्दिर दोनों जगह संस्तरधारणको आशा - दे. सल्लेखना / ३ / ८ निर्यायाचार्य व उसका मार्ग
-- दे. सल्लेखना / ५।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
For Private & Personal Use Only
भक्त प्रत्याख्यान में निर्यापकका स्थान
योग्य निर्यापक व उसकी प्रधानता ।
चारित्रहीन निर्यापकका आश्रय हानिकारक है । योग्य निर्वाका अन्नेषण
एक निर्वापक एक ही क्षपकको ग्रहण करता है।
www.jainelibrary.org