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सम्यग्दर्शन
सूचीपत्र
* | मार्गणाओं व पर्याप्त अपर्याप्तमें सम्यग्दर्शनका स्वामित्व व तद्गत शंकाएँ।
-दे, वह बह नाम । सम्यक्त्वके स्वामित्वमें मार्गणा गुणस्थान आदि २. प्ररूपणाएँ।
-दे. सत्। सम्यक्त्व सम्बन्धी सत् , संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव व अल्पबहुत्वरूप ८प्ररूपणाएँ।
-दे. वह वह नाम । सभी मार्गणाओंमें आयके अनुसार ही व्यय होनेका नियम।
-दे. मार्गणा। प्रथम सम्यग्दर्शनके प्रारम्भ सम्बन्धी।
-दे. सम्य./IV/२| सम्यग्दर्शनके अपर नाम । सम्यक्त्वकी पुनः-पुनः प्राप्ति व विराधना सम्बन्धी
नियम। * | सम्यग्दर्शनमें कर्मोके बन्ध, उदय, सत्व सम्बन्धी।
-दे. वह वह नाम।
स्वात्मानुभूतिके ज्ञान व सम्यक्त्वरूप होने सम्बन्धी समन्वय। अनुभूति उपयोगरूप होती है और सम्यक्त्व लब्धरूप। सम्यग्दर्शनमें कथंचित् विकल्प व निर्विकल्पता।
-दे. विकल्प/३। सम्यग्दर्शन व सम्यग्ज्ञानमें अन्तर। सम्यग्दर्शन कथंचित् सम्यग्ज्ञानसे पूर्ववर्ती है।
-दे. ज्ञान/III/२/४ । * | सम्यग्दर्शनमें नय निक्षेपादिका स्थान ।।
-दे, न्याय/१/३। सम्यग्दर्शनके साथ शान व वैराग्यका अविनाभावीपना।
-दे. सम्यग्दृष्टि/२। सम्यक्त्वके साथ चारित्रका कथंचित् भेद-अभेद । सम्यग्दर्शन-शान-चारित्रमें-कथंचित् एकत्व अनेकत्व।
-दे. मोक्षमार्ग/२,३ । मोक्षमार्गमें सम्यग्दर्शनकी प्रधानता सम्यग्दर्शनकी प्रधानताका निर्देश सम्यग्दर्शन ही सार, सुखनिधान, व मोक्षकी प्रथम सीढ़ी है इत्यादि महिमा। सम्यग्दृष्टि नीचकुल आदिमें नहीं जन्मता।
--दे. जन्म/३/१॥ सम्यग्दर्शनकी प्रधानतामें हेतु। सम्यग्दर्शन के पश्चात् भव धारणकी सीमा ।
सम्यग्दर्शनके अंग व अतिचार आदि
सम्यग्दर्शनके आठ अंगोंके नाम ।
आठों अंगोंकी प्रधानता। | निश्चय व्यवहार अंगोंकी मुख्यता-गौणता।
-दे. सम्य./IIII | सम्यग्दर्शनके अनेकों गुण । | सम्यग्दर्शनके अतिचार। शंका अतिचार व संशय मिथ्यात्वमें अन्तर ।
-दे. संशय/1 सम्यग्दर्शनके २५ दोष । कारणवश सम्यक्त्वमें अतिचार लगनेकी सम्भावना।
सम्यग्दर्शनकी प्रत्यक्षता-परोक्षता छमस्थोंका सम्यक्त्व भी सिद्धोंके समान है। सम्यग्दर्शनमें कथंचित् स्व-पर गम्यता। सम्यग्दृष्टिको अपने सम्यक्त्वके लिए किसीसे पूछनेकी आवश्यकता नहीं। -दे. अनुभव/४/३ । वास्तवमें सम्यग्दर्शन गुण नहीं बल्कि प्रशमादि गुण ही प्रत्यक्ष होते हैं। सम्यक्त्व वास्तवमें प्रत्यक्षशान गम्य है। सम्यक्त्वको सर्वथा केवलज्ञानगम्य कहना युक्त नहीं।
| निश्चय व्यवहार सम्यग्दर्शन निश्चय व्यवहार सम्यक्त्व लक्षण निर्देश सम्यग्दर्शनके दो भेद-निश्चय व्यवहार । व्यवहार सम्यग्दर्शनके लक्षण। १. देव शास्त्र व गुरु धर्मकी श्रद्धा। २. आप्त आगम व तत्त्वोंकी श्रद्धा । ३. तत्त्वार्थ या पदार्थों आदिका श्रद्धान । ४. पदार्थोंका विपरीताभिनिवेश रहित श्रद्धान। १.यथाव स्थित पदार्थों का श्रद्धान। ६. तत्त्वों में हेय व उपादेय बुद्धि । ७. तत्व रुचि। प्रशमादि गुणोंकी अभिव्यक्ति। -दे. सम्य./II/R1 निश्चय सम्यग्दर्शनके लक्षण १. उपरोक्त पदार्थों का शुद्धात्मासे भिन्न दर्शन। २. शुद्धात्माकी रुचि। ३. अतीन्द्रिय सुखकी रुचि। ४. वीतराग सुरवस्वभाव ही 'मैं हूँ' ऐसा निश्चय । १.शुद्धात्मकी उपलब्धि आदि। स्वसंवेदन शान निर्देश। -दे अनुभव । सम्यग्दर्शन व आत्मामें कथंचित् एकत्व ।
-दे. मोक्षमार्ग/२/६ ।
सम्यक्त्वका ज्ञान व चारित्रके साथ भेद
श्रद्धान आदि व आत्मानुभूति वस्तुतः सम्यक्त्व नहीं शानकी पर्याय हैं।
प्रशम आदि शानरूप नहीं बल्कि सम्यक्त्वके कार्य हैं। ३ | प्रशमादि कथंचित् सम्यग्ज्ञानके भी शापक हैं।
भा०४-४४
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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