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समाधिगुप्त
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समिति
३. एक साधु समाधि भावनामें शेष १५ भावनाओंका
अन्तर्भाव ध.८/३,४१/०८/६ ण च एत्थ सेसकारणाभावो, तदस्थित्तस्स दरि सिदत्तादो । एवमेदं नवमं कारणं । =इस (साधु समाधि संधारणता) में शेष कारणों का अभाव नहीं है, क्योंकि उनका अस्तित्व (किसी भी कारणसे गिरती हुई समाधिको देखकर सम्यग्दृष्टि, प्रवचनवत्सल, प्रवचन प्रभावक, विनयसम्पन्न,...आदि होकर उसे धारण करता है इसलिए वह समाधिसंधारणा है-दे, ऊपरवाला शीर्षक।) वहाँ दिखला ही चुके हैं। इस प्रकार वह तीर्थंकर नामकर्म बंधनेका नवम कारण है। * अन्य सम्बन्धित विषय १. निर्विकल्प समाधि व शुक्लध्यानकी एकार्थता। -दे. पद्धति । २. परम समाधिके अपरनाम ।
-दे. मोक्षमार्ग/२/५। ३. अन्य मत मान्य समाधि ध्यान नहीं है। -दे, प्राणायाम | ४. एक ही भावनासे तीर्थकर प्रकृतिका बन्ध सम्भव ।
-दे. भावना/२।
समाधिगृप्त-यह भाविकालीन अठारहवें तीर्थकर है।-दे.
तीथ कर/५1 समाधितन्त्र-इसका दूसरा नाम समाधिशतक भी है। यह ग्रन्थ
आचार्य पूज्यपाद (ई. श. १) कृत अध्यात्म विषयक १०५ संस्कृत श्लोकों में निबद्ध है। इसपर आ. प्रभाचन्द्र (ई.६५०-१०२०) ने एक संस्कृत टीका लिखी है । (ती./२/२२६); (जै./२/१९६) समाधिमरण-दे. सल्लेखना। समान खंड-जैसे २ = १९६६ । समानगोल-Sphere. (ज. प./प्र. १०८) । समानाधिकरण--१. ...भिन्नप्रवृत्तिनिमित्तानां शब्दानामकस्मिन्नर्थ वृत्ति : सामान्याधिकरण्यम् यथा तत् त्वमसि-भिन्न प्रवृत्ति में जो निमित्त है ऐसे विभिन्न शब्दों की एक ही अर्थ में वृत्ति होना सामान्याधिकरण्य है। जैसे 'तत त्वमसि' इस पद में 'तत' का अर्थ अशरीरी ब्रह्म और स्त्रम' का अर्थ शरीरी ब्रह्म या जीवारमा ये दोनों एक है. ऐसा इस पद का अर्थ है । २. लक्ष्य लक्षणमे सामानाधिकरण्य।
-दे. लक्षण। समानुपात सिद्धान्त-Theory of Proportion.(ज.प./प्र५०८)
१ समिति निर्देश
समिति सामान्यका लक्षण। | समितिके भेद। समिति व सामायिक चारित्रमें अन्तर ।
-दे. सामायिक/४। समिति व सूक्ष्म साम्परायमें अन्तर ।
-दे. सूक्ष्मसाम्पराय। | समिति, गुप्ति, व दशधर्ममें अन्तर। -दे. गुप्ति/२ । संयम व समितिमें अन्तर। -दे, संयम/२। सयम और विरतिमें समिति सम्बन्धी विशेषता ।
-दे. संयम/२/१। ईर्या समिति निर्देश १. ईर्या समितिका लक्षण, २. ईर्यापथ शुद्धिका लक्षण, ३. ईर्या समितिकी विशेषताएं, ४.ईर्या समितिके अतिचार। भाषा समिति निर्देश १. भाषा समितिका लक्षण, २. वाक शुद्धिका लक्षण,
३. भाषा समितिके अतिचार । * | भाषा समिति व सत्यधर्ममें अन्तर। -दे. सत्य/२/८ । * धर्म हानिके अवसरपर बिना बुलाये बोले ।
-दे. वाद। ५ । एषणा समिति निर्देश
१. एषणा समितिका लक्षण; २. एषणासमितिके अतिचार। आदान निक्षेपण समिति निर्देश १. आदान निक्षेपण, समितिका लक्षण, २. आदान निक्षेपण समितिके अतिचार। प्रतिष्ठापन समिति निर्देश १. प्रतिष्ठापन समितिका लक्षण, २. प्रतिष्ठापन शुद्धिका लक्षण, ३. प्रतिष्ठापन समितिके अतिचार।
समारम्भ-म. सि./६/८/१२/३ साधनसमभ्यासीकरण समारम्भः । साधनों का जुटाना समारम्भ है। (रा. बा./६/८/३/५१३/३२) रा.वा./६/८/३/५१३, ३२ माध्याया' क्रियायाः साधनानां समभ्यासीकरणं समाहारः समारम्भ इत्याख्यायते। = साध्य के साधनों का इकट्ठा करना समारंभ है। (चा. सा./८/४) समास--जीव समास - दे. जीव समास। समाहार-१. रुचकपतानवासिनी दिक्कुमारी देवी।- दे.
लोक/५/१३,२. स. भ.त/१/१० समाहारः समूह' । - समाहार अर्थात्
निश्चय व्यवहार समिति समन्वय समितिमें सम्यग् विशेषणकी आवश्यकता । प्रमाद न होना ही सच्ची समिति है। समितिका उपदेश असमर्थ जनोंके लिए है। समितिका प्रयोजन अहिंसा व्रतको रक्षा। श्रावकको भी समितिके पालन सम्बन्धी।
-दे,व्रत/२/४। समिति पालनेका फल। | समितिमें युगपत् आस्रव व संवरपना ।
-दे, संवर/२।
सामात-चलने-फिरने में बोलने चालने में, आहार ग्रहण करने में, वस्तुओंको उठाने-धरनेमे और मलमूत्र निक्षेपण करने में यत्न पूर्वक सम्यक् प्रकार से प्रवृत्ति करते हुए जीवोंको रक्षा करना समिति है ।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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