Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 4
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 348
________________ समिति १. समिति निर्देश भिक्षु कहलाता है, यही आदान निक्षेपण समिति है ।३१।। (भ. आ./मू./११६८), (त. सा./६/१०) शीघतासे बिना देखे, अनादरसे, बहत कालसे रखे उपकरणोंका उठाना-रखना स्वरूप दोषों का जो त्याग करता है उसके आदान निक्षेपण समिति होती है ।३२० । रा. वा./8/1/७/५६४/२५ धर्माविरोधिना परानुपरोधिना द्रव्याणां ज्ञानादिसाधनानां ग्रहणे विसर्जने च निरीक्ष्य प्रमृज्य प्रवर्तनमादाननिक्षेपणा समितिः । धर्माविरोधी और परानपरोधी ज्ञान और संयमके साधक उपकरणों को देखकर और शोधकर रखना और उठाना आदाननिक्षेपण समिति है। (चा. सा./७४/२), (ज्ञा./१८/१२-१३), (अन. ध./४/१६८/४६६ )। २. आदान निक्षेपण समितिके अतिचार भ. आ./वि./१६/६२/- आदातव्यस्य, स्थाप्यस्य बा अनालोचन, किमत्र जन्तवः सन्ति न सन्ति वेति दुःप्रमार्जनं च आदाननिक्षेपणसमित्यतिचारः। =जो वस्तु लेनी है, अथवा रखनी है वह लेते समय अथवा रखते समय, इसमें जीव है या नहीं इसका ध्यान नहीं करना तथा अच्छी तरह जमीन वा वस्तु स्वच्छ न करना आदाननिक्षेपण समितिके अतिचार हैं। ७. प्रतिष्ठापन समिति निर्देश चारः। - यह वचन बोलना योग्य है अथवा नहीं, इसका विचार न कर बोलना, वस्तुका स्वरूप ज्ञान न होनेपर भी बोलना, ग्रन्थान्तरमें भी 'अपुट्ठो दुण भासेज भासमाणस्स अंतरे' कोई पुरुष बोल रहा है और अपने प्रकरणको, विषय मालूम नहीं है तो बीचमें बोलना अयोग्य है, जिसने धर्मका स्वरूप सुना नहीं अथवा धर्मके स्वरूपका ज्ञान नहीं ऐसे मुनिको अपृष्ट कहते हैं। भाषासमितिका क्रम जो जानता नहीं वह मौन धारण करे ऐसा अभिप्राय है, इस तरह भाषा समितिके अतिचार है। ५. एषणासमिति निर्देश १. एषणासमितिका लक्षण मू. आ./१३.३१८ छादालदोससुद्ध' कारणजुत्तं विसुद्धणवकोडी। सीदादी समभुत्ती परिसुद्धा एषणासमिदी।१३। उग्गमउप्पादणएसणेहिं पिंड च उवधि सज्जं च । सोधतस्स य मुणिणो परिसुज्झइ एसणासमिदी ।३१८ -१. उद्गमादि ४६ दोषों (दे. आहार/II/४ ) कर रहित, भूख आदि मेंटना व धर्म साधन आदि कर युक्त, कृत-कारित आदि नौ विकल्पों कर विशुद्ध ( रहित) ठडा-गरम आदि भोजनमे रागद्वेष रहित, समभाव कर भोजन करना, ऐसे आचरण करनेवालेके एषणासमिति है।१३। २. उद्गम, उत्पाद, अशन दोषोंसे आहार, पुस्तक, उपधि. बसतिकाको शोधनेवाले मुनिके शुद्ध एषणासमिति है ।३१८१ ( भ. आ/म् /१९६७): (त. सा./६/8) रा. वा./8/4/६/५६४/२१ अनगारस्य गुणरत्नसंचयसं वाहिशरीरशकटिसमाधिपत्तनं निनीषतोऽक्षम्रक्षणमिव शरीरधारणमौषधमिव जाठराग्निदाहोपशमनिमित्तमन्नाद्यनास्वादयो देशकालसामादिविशिष्टमगर्हितमभ्यवहरतः उद्गमोत्पादन षणासं योजनप्रमाणकारणाङ्गारधूमप्रत्ययनवकोटिपरिवर्जनमेषणासमितिरिति समारख्यायते।-गुणरत्नोंको ढोनेवाली शरीररूपी गाड़ीको समाधि नगरकी ओर ले जानेकी इच्छा रखनेवाले साधुका जठराग्निके दाहको शमन करने के लिए औषधिकी तरह या गाड़ी में आंगन देनेकी तरह अन्नादि आहारको बिना स्वादके ग्रहण करना एषणासमिति है। देश, काल और प्रत्यय इन नव कोटियोंसे रहित आहार ग्रहण किया जाता है ।(चा, सा./६७/३ ), (ज्ञा./१८/१०-११), (अन, ध./४/१६७) । २. एषणासमितिके अतिचार म. आ./वि./१६/१२/७ उद्गमादिदोषे गृहीतं भोजनमनुमननं वचसा, कायेन वा प्रशंसा, तैः सह वासः, क्रियासु प्रवर्तन वा एषणासमितेरतीचारः । -उद्गमादि दोषोंसे सहित आहार लेना, मनसे, वचनसे, ऐसे आहारको सम्मति देना, उराकी प्रशंसा करना, ऐसे आहारकी प्रशंसा करनेवालोंके साथ रहना, प्रशंसादि कार्य में दूसरोंको प्रवृत्त करना । एषणासमितिके अतिचार हैं। ६. आदान निक्षेपण समिति निर्देश १. आदान निक्षेपण समितिका लक्षण : आ./१४,३१६,३२० णाणुवहिं संजमुवहिं सौचुनहिं अण्णमप्पमुपहि वा। पयद गहणणिक्खेको समिदी आदाणणिवरनेवा ।१४। आदाणे णिक्खेवे पडिलेहिय चक्रखुणा पमज्जेज्जो। दव्वं च दवठाणं सजमलगीए सो भिक्खू ।३१। सहसाणा भोइददुष्पमज्जिदअपच्चुवेश्रवणा दोसा। परिहरमाणस्स हवे समिदी आदाणणियखेवा ॥३२॥ ८१. ज्ञानके उपकरण, संयमके उपकरण तथा शौचके उपकरण, व अन्य साथरे आदिके निमित्त उपकरण, इनका यत्नपूर्वक उठाना, रखना वह आदान निक्षेपण समिति है। (नि. सा./६४)। २. ग्रहग ओर रखने में पीथो, कमण्डलु आदि वस्तुको तया वस्तुके स्थानको अन्यो तरह देखकर पोछोसे जो शोधन करता है वह १. प्रतिष्ठापन समितिका लक्षण मू. आ./१५,३२१-३२५ एगते अच्चित्ते दूरे गूढे विसालमविरोहे। उच्चा रादिच्चाओ पदिठावणिया हवे समिदी ।१४ वणदाहकिसिमसिकदे थंडिललेणुपरोधे विस्थिण्णे । अवगदर्जतु विवित्त उपचारादी विसज्जेज्जो ।३२१। उच्चार पस्सवण्णं खेल सिंघाणयादिय दव्वं । अच्चित्तभूमिदेसे पडिले हित्ता विसज्जेज्जो ।३२२। रादो दु पमजित्ता पण्णसमणपैपिरवदम्मि ओगासे । आसं कवि सुदीए अपहत्थगफासणं कुज्जा ।३२३। जदित हवे असुद्ध' विदियं तदियं अणुण्णवे साह । लधुए अणिछायारे ण देज साधम्मिए गुरुयो ।३२४। पदिठवणासमिदी वि य तेणेव कमेण व पिणदा होदि । वोसरणिज्जं दव कुथं डिले वोसरत्तस्स ।३२५। -१. एकान्तस्थान, अचित्तस्थान, दूर, छिपा हुआ, बिल तथा छेदरहित चौड़ा, और जिसकी निन्दा व विरोध न करे ऐसे स्थानमें मूत्र, विष्ठा आदि देहके मल का क्षेपण करना प्रतिष्ठापना समिति कही गयी है ।१५। (नि. सा./६५), (ज्ञा./१८/१४ । २. दावाग्निसे दग्धप्रदेश, हलकर जुता हुआ प्रदेश, मसान भूमिका प्रदेश, खार सहित भूमि, लोग जहाँ रोके नहीं, ऐसा स्थान, विशाल स्थान, त्रस जीवोंकर रहित स्थान, जनरहित स्थान-ऐसी जगह मूत्रादिका त्याग करे ।३२१॥ (भ.आ./मू./११६६), (त.सा./६/११), (अन. ध./४/१६६/४६७) ३. विष्ठा, मूत्र, कफ, नाकका मेल, आदिको हरे तृण आदिसे रहित प्रामुक भूमिमें अच्छी तरह देखकर निक्षेण्ण करे ।३२२। रात्रि में आचार्यके द्वारा देखे हुए स्थानको आप भी देखकर मूत्रादिका क्षेपण करे । यदि वहाँ सूक्ष्म जीवोंकी आशंका हो तो आशंकाकी विशुद्धिके लिए कोमल पोछोको लेकर हथेलीसे उस जगह को देखे ।३२३. यदि पहला स्थान अशुद्ध हो तो दूसरा, तीसरा आदि स्थान देखे। किसी समय रोग पीड़ित होके अथवा शीघ्रतासे अशुद्ध प्रदेश में मल छूट जाये तो उस धर्मात्मा साधुको प्रायश्चित्त न दे ।३२४॥ (अन. ध./४/१६६ ) उसी कहे हुए क्रमसे प्रतिष्ठापना समिति भी वर्णन की गयी है उसी क्रमसे त्यागने योग्य मल-मूत्रादिको उक्त स्थण्डिल स्थानमें निक्षेपण करें। उसी के प्रतिष्ठापना समिति शुद्ध है । ३२५॥ रा.बा./8/1/८/५६४/२८ स्थावराणां जनमानां च जीवादीनाम् अविरोधेनाङ्गमलनिहरणं शरीरस्य च स्थापनम् उत्सर्गसमिति जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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