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समय
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समयप्रबद्ध
दे. समय/१/२ समय शब्दसे सामान्यतया सभी पदार्थ कहे जाते हैं।
४. सिद्धान्तके अर्थ में स्या, म. ३०/३३५/१२ सम्यक् एति गच्छति शब्दोऽर्थ मनेन इति "पुन्नामिन घः" समयसंकेतः । यद्वा सम्यग् अवैपरीत्येन ईयन्ते ज्ञायन्ते जीवाजीवादयोऽथवा अनेन इति समयः सिद्धान्तः । अथवा सम्यग अयन्ते गच्छन्ति जीवादयः पदार्थाः स्वरूपे प्रतिष्ठा प्राप्नुवन्ति अस्मिन् इति समय आगमः ।.. उत्पादव्ययधौव्यप्रपञ्चः समयः । - जिससे शब्द का अर्थ ठीक-ठीक मालूम हो सो समय है अर्थात संकेत । यहाँ सम-इ धातुसे 'पुंन्नाम्नि घः' इस सूत्रसे समय शब्द बनता है। अथवा जिससे जीव, अजीव आदि पदार्थोंका भले प्रकारसे ज्ञान हो ऐसा सिद्धान्त समय है। अथवा जिसमें जीव आदिक पदार्थोंका ठीक-ठीक वर्णन हो ऐसा आगम समय है। अथवा उत्पाद व्यय और धौव्य के सिद्धान्तको समय कहते हैं।
५. सामायिकके अर्थ में दे. सामायिक/३/१/२ ज्ञानी पुरुष मुठी वा वस्त्र बाँधनेको, पलाठी मारने
आदिको अथवा सामायिक करने योग्य समयको जानते हैं ।
प'. का./म. व ता. वृ./१६५ उत्थानिका-सूक्ष्मपरसमयस्वरूपाख्यानमेतत् । -अण्णाणदो णाणी जदि मण्ण दि सुद्धसंपओगादो। हवदि त्ति दुक्रवमोक्रवं परसमयरदो हवदि जीवो ११६५। कश्चित्पुरुषो निर्विकारशुद्धारमभावनालक्षणे परमोपेक्षा संयमे स्थातुमीहते तत्राशक्तः सन् कामक्रोधाद्यशुद्धपरिणामवञ्चनार्थ संसारस्थितिछेदनार्थ वा यदा पञ्चपरमेष्ठिषु गुणस्तवनभक्ति करोति तदा सूक्ष्मपरसमयपरिणतः सन् सरागसम्यग्दृष्टिर्भवतीति, यदि पुनः शुद्धात्मभावनासमर्थोऽपि तां त्यक्त्वा शुभोपयोगादेव मोक्षो भवतीत्येकान्तेन मन्यते तदा स्थूलपरसमयपरिणामेनाज्ञानी मिथ्याष्टिभवति । ततः स्थितं अज्ञानेन जीवो नश्यतीति । यह सूक्ष्म परसमयके स्वरूपका कथन है। शुद्धसंप्रयोगसे दुरव मोक्ष होता है ऐसा यदि अज्ञानके कारण ज्ञानी माने तो बह परसमयरत जीव है।१६।। कोई पुरुष निर्विकार शुद्धात्म भावना है लक्षण जिसका ऐसे परमोपेक्षा संयममे स्थित होनेकी इच्छा करता है परन्तु अशक्त होता हुआ, जब काम-क्रोधादि अशुद्ध परिणामोसे बचनेके लिए तथा संसार स्थितिके विनाशके लिए पंचपरमेष्ठी के गुणस्तवन आदि रूप भक्ति करता है, तब सूक्ष्म परसमयसे परिणत होता हुआ सराग सम्यग्दृष्टि होता है। और यदि शुद्धात्म भावनामें समर्थ होनेपर भी उसको छोड़ कर, शुभोपयोगसे ही मोक्ष होता है ऐसा मानता है, तब वह स्थूल परसमग रूप परिणामसे अज्ञानी व मिथ्या दृष्टि होता है । अतः सिद्ध हुआ कि अज्ञान से जीव का नाश
होता है। , * परसमय निर्देश समयप्रबद्ध-१. समयप्रबद्ध सामान्य ध.१२/४,२,१४,२/४७८/७ समये प्रबध्यत इति समयप्रबद्धः । -एक
समय में जो बाँधा जाता है वह समय-प्रबद्ध है। गो, जी./जी. प्र./२४५/५०६/४ समये समयेन वा प्रबध्यतेस्म कर्मनोकर्मरूपतया आत्मना संबध्यते स्म यः पुद्गलस्कन्धः स समयप्रबद्धः। -जो समय-समयमें कम-नोकर्म रूप पुदगल स्कन्धोंका आत्मसे सम्बन्ध किया जाता है वह समय प्रबद्ध है। २. समयमबद्ध विशेष कर्म-नोकर्म समयमबद्ध
२. शब्द अर्थ व ज्ञान समय पं. का./त. प्र./३ तत्र च पञ्चानामस्तिकायानां समो मध्यस्थो रागद्वेषाभ्यनुपहतो वर्ण पदवाक्यसं निवेशविशिष्टः पाठो बादः शब्दसमय: शब्दागम इति यावत् । तेषामेव मिथ्यादर्शनोदयोच्छेदे सति सम्यग्वायः परिच्छेदो ज्ञानसमयो ज्ञानागम इति यावत्। तेषामेवाभिधानप्रत्ययपरिच्छिन्नानां वस्तुरूपेण समवायः संघातोऽर्थसमयः सर्वपदार्थसार्थ इति यावत् । =सम् अर्थात् मध्यस्थ यानी जो रागद्वेषसे विकृत नहीं हुआ, वाद अर्थात् वर्ण पद और वाक्यके समूहवाला पाठ। पाँच अस्तिकायका 'समवाय' अर्थात् मध्यस्थ पाठ बह शब्दसमय है अर्थाद शब्दागम वह शब्द समय है। मिथ्यादर्शनके उदयका नाश होनेपर, उस पंचास्तिकायका ही सम्यग् अवाय अर्थात सम्प्ररज्ञान वह ज्ञान समय है अर्थात ज्ञानागम वह ज्ञान समय है। कथनके निमित्तसे ज्ञात हुए उस पंचास्तिकायका ही वस्तु रूपसे समवाय अर्थात समूह ब्रह अर्थसमय है।
३. स्व व परसमय र. सा./मू./१४७ बहिरतरप्पभेयं परसमयं भण्णए जिणिदेहिं । परमप्पो सगसमयं तब्भेयं जाण गुणठाणे ।१४७१ = जिनेन्द्र देवने बहिरात्मा, अन्तरात्माको परसमय बतलाया है। तथा परमात्माको स्वसमय बतलाया है । इनके विशेष भेद गुणस्थानकी अपेक्षा समझने चाहिए। दे. मिथ्यादृष्टि/१/१ मिथ्यादृष्टि परसमय रत है। स. सा./मू./२ जीबो चरित्तदंसणणाण द्विउ तं हि ससमयं जाण । पुग्गल कम्मपदेसट्ठियं च तं जाण परसमयं ।। = हे भव्य, जो जीब दर्शन, ज्ञान, चारित्रमें स्थित हो रहा है वह निश्चयसे स्वसमस जानो और जीव पुद्गल कर्म के प्रदेशों में स्थित है उसे परसमय जानो। प्र. सा./मू./६४ जे पज्जयेसु गिरदा जीवा परसमयिग त्ति णिहिट्ठा ।
आदसहावम्मि ठिदा ते सगसमया मुणेदवा। - जो जीव पर्यायों में लीन हैं उन्हें परसमय कहा गया है (प्र. सा./मू./६३ ) जो आरम
स्वभावमें लोन हैं वे स्वसमय जानने। पं. का./म./१५५ जीवो सहाबणियदो अणियदगुणपज्जोधपरसमओ । जदि कुण दि सगं समयं पभस्सदि कम्मबंधादो। -जीव (द्रव्य अपेक्षासे) स्वभाव नियत होनेपर भी, यदि अनियत गुणपर्यायवाला हो तो पर समय है। यदि वह (नियत गुणपर्यायसे परिणत होकर ) स्वसमयको करता है तो कर्मबन्ध करता है।
गो.जी./जी.प्र/२४५/०६/४ सिद्वानन्तै कभागाभव्यराश्यनन्तप्रमिता.
नन्तवर्गणाभिनियमेनै कसमयप्रबद्धो भवति । गो. जी./जी. प्र./२४६/५१०/११ सर्वतः स्तोकः औदारिकसमयप्रबद्धः । ...ततः श्रेण्यसंख्येयभागगुणितपरमाणुप्रमितो वैक्रियिकशरीरसमयप्रबद्धः । ततः संख्येयभागगुणितपरमाणुप्रमितः आहारकशरीरसमयप्रबद्धः। ...अग्रे तेजसशरीरसमयप्रबद्धोऽनन्तगुणपरमाणुप्रमितः । १. सिद्धोंके अनन्तवें भाग तथा अभव्योंसे अनन्तगुणे ऐसे मध्य अनन्तानन्त प्रमाण वर्गणाओंसे नियमसे एक समयप्रबद्ध होता है। २. औदारिक शरीरका समयप्रबद्ध सबसे कम है। इससे श्रेणीके असंख्यातवें भाग गुणित परमाणु प्रमाण समयप्रबद्ध वैक्रियक शरीरका है । और उससे भी श्रेणी के असंख्यातवें भागसे गुणित परमाणु प्रमाण समय-प्रबद्ध आहारक शरीरका है। इससे आगे तेजस व कार्मण शरीरका समयप्रबद्ध क्रमशः अनन्तगुणा अनन्तगुणा है।
२. नवक समयप्रवद्ध गो. क./भाषा./५१४/६७३/१ जिनका बन्ध भये थोड़ा काल भया, संक्रमणादि व.रने योग्य जे निषेक न भये ऐसे नूतन समयप्रबद्धके निषेक तिनिका नाम नवकसमय प्रबद्ध है।
- जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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