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संस्कार
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जनता मयामास्कन्दतो मयाति पर्यन्तः किया गर्भादिकाः सदा भयात्मभिरनुष्ठेयाः प्रिपञ्चाशत्समुचयात् ॥११०॥ १. गर्भाधान क्रिया तुमती स्त्रीके चतुर्थ स्नान के पश्चाद. गर्भा धानके पहले, अर्हन्तदेवकी पूजाके द्वारा मन्त्र पूर्वक जो संस्कार किया जाता है, उसे आधान क्रिया कहते हैं 1901 भगवान् के सामने तीन अग्नियोंकी अर्हन्तकुण्ड, गणधरकुण्ड, व केवलो कुण्डमें स्थापना करके भगवादकी पूजा करें। तत्पश्चाद आहूति में फिर पुत्रोत्पतिकी इससे भोगाभिलाष निरपेक्ष स्त्रीसंसर्ग करें। एस प्रकार यह आधrefeया विधि है 1०१-०६ २ प्रतिक्रियागर्भाधान के पश्चात तीसरे महीने पूर्ववत् भगवान्को पूजा करनी चाहिए। उस दिन से लेकर प्रतिदिन बाजे, नगाड़े आदि बजवाने चाहिए ३७२. मोति क्रिया गर्भाधानके पाँचवें महीने पुनः पूर्वोक्त प्रकार भगकी पूजा करे २००१ ४. धृति क्रियागर्भाधान के सातवें महीने में गर्भ की वृद्धिके लिए पुनः पूर्वोक्तविधान करना चाहिए । २। ५. मोदक्रिया - गर्भाधानके नवमें महीने गर्भ की पुष्टि के लिए पुनः पूर्वोक्त विधान करके, स्त्रीको गात्रिकाअन्य मन्त्रपूर्वक बीजाक्षर लेखन व मंगलाभूषण पहनाना मे कार्य करने चाहिए . प्रियोद्भव क्रिया-प्रसूति होनेपर जारा कर्मरूप, मन्त्र व पूजन आदिका बड़ा भारी पूजन विधान किया जाता है। जिसका स्वरूप उपासकाध्ययनसे जानने योग्य है ।८५-८६ | ७. नामकर्म क्रिया -- जन्मसे १२वें दिन, पूजा व द्विज आदिके सत्कार पूर्वक, अपनी इच्छा या भगवान् के १००८ नामोमेंसे घटपत्र विधिद्वारा ( Baliat Paper System) बालकका कोई योग्य नाम छाँटकर रखना (8) ८ बहिन क्रिया जन्मसे ३०४ महीने पश्चाद ही मालकको प्रसूतिगृह बाहर जाना चाहिए। बालकको यथाशक्ति कुछ भेंट आदि दी जाती है । ६०-१२ ६. निषद्या क्रिया-बहिन के पश्चात् सिद्ध भगवान्की पूजा विधिपूर्वक arrest किसी बिछाये हुए शुद्ध आसनपर बिठाना चाहिए |१३४ १०. अन्नप्राशन क्रिया-जन्म के ७/८ माह पश्चात पूजन विधिपूर्वक बालकको जन्म खिलाये । १५४ ११ पुष्टि क्रिया जन्मके एक वर्ष पश्चात जिनेन्द्र पूजन विधि, दानव मधुपर्ग निमन्त्रणादि कार्य करना चाहिए। इसे वर्धन या वर्षगाँठ भी कहते हैं । ६६१० १२. केशवा क्रिया- तदनन्तर किसी शुभ दिन, पूजा विधिपूर्वक बालकके सिरपर उस्तरा फिरवाना अर्थात् मुण्डन करना, व उसे आशीर्वाद देना आदि कार्य किया जाता है। बालक द्वारा गुरुको नमस्कार कराया जाता है । ६८ - १०१। १३. लिपि संख्यातपाँच वर्ष अध्ययन के लिए पूजा विधिपूर्वक किसी योग्य गृहस्थी गुरुके पास छोड़ना । १०२-१०३ १४. उपनीत या आठवें वर्ष यज्ञोपवीत धारण कराते समय, केशोंका मुण्डन तथा पूजा विधिपूर्व योग्य व्रत ग्रहण कराके बाकी कमर जकी रस्सी बाँधनी चाहिए। यज्ञोपवीत धारण करके, सफेद धोती पहनकर सिरपर चोटी रखनेवाला वह बालक माता आदिके द्वारपर जाकर भिक्षा माँगे ने आगत से पहले भगवादको पूजा करे फिर शेष बचे अन्नको स्वयं खाये । अत्र यह बालक ब्रह्मचारी कहलाने लगता है । ९०४-१०८ १ १५. व्रतचर्या क्रिया - ब्रह्मचर्य आश्रमको धारण करनेवाला वह ब्रह्मचारी बालक अत्यन्त पवित्र व स्वच्छ जीवन बिताता है। कमर में रत्नत्रयके चिह्न स्वरूप तीन लरकी मूंकी रस्सी, टाँगों में पवित्र अर्हन्त कुलकी सूचक उज्ज्वल व सादी धोती, वक्षस्थल पर सात लरका यज्ञोपवीत, मन वचन व कायकी शुद्धिका प्रतीक सिरका मुण्डन ~ इतने चिह्न धारण करके अहिंसाणुव्रत का पालन करता हुआ गुरुके पास विद्याध्ययन करता है। वह -कभी हरी दाँतौन नहीं करता, पान खाना, अंजन लगाना, उबटन से स्नान करना व पलंगपर सोना आदि बातोंका त्याग करता है। स्वच्छ जल से स्नान करता है तथा अकेला पृथिवीपर सोता है ।
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२. संस्कार कर्म निर्देश
अध्ययन क्रम में गुरुके मुखसे पहले श्रावकाचार और फिर अध्यात्म शास्त्रका ज्ञान कर लेनेके अनन्तर व्याकरण, न्याय, छन्द, अलंकार, गणित, ज्योतिष आदि विद्याओं को भी यथा शक्ति पढ़ता है । १०६१२० १६. व्रतावतरण क्रिया- विद्याध्ययन पूरा कर लेनेपर बारहवें या सोलहवें वर्ष में गुरु साक्षी में, देवपूजादि विधिपूर्वक गृहस्थ आश्रम में प्रवेश पानेके लिए उपरोक्त सर्व व्रतोंको त्यागकर, श्रावकके योग्य आठ मूलगुणों (दे, श्रावक) को ग्रहण करता है । और कदाचित् क्षत्रिय धर्म के पालनार्थ अथवा शोभार्थ कोई शस्त्र धारण करता है । । १२१-१२६ । १७ विवाह क्रिया - विवाहकी इच्छा होनेपर गुरु साक्षी में सिद्ध भगवान व पूर्वोक्त ( प्रथम क्रियावत् ) तीन अग्नियोंकी पूजा विधिपूर्वक अग्निप्रदक्षिणा देते हुए कुसीना पाणिग्रहण करें। सात दिन पर्यन्त दोनों से रहें, फिर तीर्थयात्रादि करें। तदनन्तर केवल सन्तानोत्पत्ति के लिए, स्त्रीके ऋतुकास में सेवन करें। शारीरिक शक्तिहीन हो तो पूर्ण ब्रह्मचर्य से रहें । १२०-१४० १८ वर्णलाभ क्रिया यथोक्त पूजन विधिपूर्वक पिता उसको कुछ सम्पति व घर आदि देकर धर्म व न्याय पूर्वक जीवनमा पृथक रहने के लिए कहता है । १२६-१४१० १६. चर्या क्रिया अपनी परम्परा अनुसार देव पूजादि गृहस्थके षट्कमको यथाविधि निष्य पालता है यही कुरा । १४२१४३० २०. गृहीशा क्रिया-धार्मिक क्षेत्रमें तथा ज्ञानके क्षेत्र वृद्धि करता हुआ, अन्य गृहस्थोंके द्वारा सत्कार किये जाने योग्य गृहोश मा गृहस्थाचा होता है।९४४९४६ २१. शान्ति कियाअपने पुत्रको गृहस्थका भार सौंपकर रिक्त मिस हो विशेष रूपसे धर्मका पालन करते हुए शान्त वृत्तिसे रहने लगता है । १४७-१४६ । २२. गृह त्याग क्रिया गृहस्थानमे कुंसार्थताको प्राप्त हो. योग विधि पूर्वक अपने ज्येष्ठ पुत्रको घरकी सम्पूर्ण सम्पत्ति व कुटुम् पोषणका कार्यभार सौंपकर तथा धार्मिक जीवन बितानेका उपदेश करके स्वयं घर स्वता देता है । १५० १६६ २३. दीक्षाच क्रियाक्षुल्लक व्रत रूप उत्कृष्ट श्रावककी दीक्षा लेता है । १५७-१३८ । २४. जिनरूपता क्रिया - क्रमसे यथा अवसर दिगम्बर रूपवाले मुनित्रतकी दीक्षा १५-१६०१२४. मौनाध्ययन वृत्ति क्रिया -- गुरुके पास यथोक्त कामोनपूर्वक शास्त्रमा १६९-१६३२६. तीर्थं कृामा किया तीर्थकर पदको कारण सोलह भावनाओंको भाता है। । १६४-१६३॥ २०. गुगमन क्रिया-प्रसन्नता पूर्वक उसे योग्य समझकर गुरु ( आचार्य ) अपने संघके आधिपत्यका गुरुपद प्रदान करे तो उसे विनय पूर्वक स्वीकार करना १९६६ २६० २८, गणोपग्रहण किया- गुरुपदनिष्ठ होकर चतुःसबकी रक्षा व पालन करे तथा नवीन जिज्ञासुओंको उनकी शक्तिके अनुसार वत व दीक्षाएँ दे १६८ - १७१ । २६. स्वगुरु स्थानावाप्ति क्रिया-गुरुकी भाँति स्वयं भी अवस्था विशेषको प्राप्त हो जानेपर, संघमें से योग्य शिष्यको छाँटकर उसे गुरुपदका भार प्रदान करे। १७२ १७४ । ३० निःसंगत्वभावना क्रिया-एकल बिहारी होकर अत्यन्त निर्ममता पूर्वक अधिकाधिक चारित्र में विशुद्धि करना | १०५-१०० ३१. योगनिया पानि क्रिया आयु का अन्तिम भाग प्राप्त हो जानेर वैराग्यकी उरकता पूर्वक एकरम व अन्यत्व भावनाको भाता हुआ सल्लेखना धारण करके शरीर त्याग करने के लिए साम्यभाव सहित इसे धीरे-धीरे कृश करने लगता है । १७८ - १८५ । ३२. योग निर्वाण साधन क्रिया- अन्तिम अवस्था प्राप्त हो जानेपर साक्षात् समाधि या सल्लेखनाको धारणकर तिष्ठे (१८६ - १८६६ ३३. इन्द्रोपपाद क्रिया- उपरोक्त तपके प्रभावसे वैमानिक देवोंके इन्द्र रूपसे उत्पाद होना । १६०-१६४ । ३४. इन्द्राभिषेक क्रिया - इन्द्रपदपर आरूढ करनेके लिए देव लोग उसका इन्द्राभिषेक करते हैं । ९६४-२१०१ ३२. विधिदान क्रिया- देवोंको उन-उनके पदों पर नियुक्त करना । १६६० २६ सुखोदय क्रिया
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