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सत्त्व
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३. सत्त्व विषयक प्ररूपणाएं
मार्गणा
| गुण
___ असश्व
असचव
कुल सत्त्व योग्य
असत्व
सत्त्व
कुल गुण स्थान
स्थान
स्व स्थानमें उद्वेलना सहित
नरक द्वि., बैकि.द्वि. उच्च गोत्र मनुष्य द्वय
पंचेन्द्रिय -
४. योग मार्गणा-(गो, क./भाषा/३५२-३५३/५०६-५०८)
१४८
४
१४८
चार मन, चार बचन व औदारिक काय योग आहारक व आ. मिश्र वैक्रियक
३
१(६ठा)
१४८
वै क्रियक मिश्र
नरकायु, तियंचायु
१४८ x तीर्थकर प्रकृतिबाला तीसरे नरक तक वा देवगतिमें जाता है। तिर्यच, मनुष्यायु
*२) १४८
१४६ x आ. द्वि., तीर्थ., नरकायु
१४६
औदारिक मिश्र
देवायु, नरकायु
१४४
१.२४४ व
१३ बा
६ कार्माण
१४८
-बै क्रियक मिश्र व सयोगीवत् -
५. वेद मार्गणा-(गो. क./जी. प्र./३५४/५०८/१)
१४८ १४८ १४८
१४८ १४८
पुरुष वेद स्त्री वेद सा.
..क्षपक श्रेणी ३। नपुंसक वेद
१४
तीर्थकर -स्त्रीवेदव
कषाय मार्गणा
क्रोधादिमें गुणस्थान
लोभमें गुणस्थान १०
४ | १४८
या १०
७. शान मार्गणा-(गो. के. जी. प्र/३१४/०८/4)
१४०
कुमति, कुश्रुत, विभंग मति, श्रुत, अवधि मनःपर्यय केवल
१४८
४-१२
नरक तियं चायु ओघवत् व्युच्छित्ति
१४८ -६३, १४८
१३-१४
नरक, तिथंचायु
८. संयम मार्गणा-(गो. क./जी./प्र./३५४/०८/8)
सामान्य सामायिक छेदोपस्था, परिहार विशुद्धि सूक्ष्म साम्पराय (उप.)
" " (क्षपक) यथारख्यात उप. उपशम.
ओघवत ४६ व्युच्छि. भरक, तियंचायु
१(१०)
१० वा| १(११वा
-
१४८
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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