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सप्तभंगी
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१. सप्तभंगी निर्देश
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१. सप्तभंगी निर्देश १. सप्तभंगीका लक्षण रा. वा./२/६/५/३३/१५ एकस्मिन् वस्तुनि प्रश्नवशाद दृष्टेनेष्टेन च प्रमाणेनाविरुद्रा विधिप्रतिषेधविकल्पना सप्तभंगी बिज्ञेया। - प्रश्नके अनुसार एक वस्तुमें प्रमाणसे अविरुद्ध विधि प्रतिषेध धर्मोंकी
कल्पना सप्तभंगी है । ( स. म./२३/२७८/८)। पं.का./ता. वृ./१४/३०/१५ पर उद्धृत-एकस्मिन्नविरोधेन प्रमाणनयवाक्यतः। सदादिकल्पना या च सप्तभङ्गीति सा मता। -प्रमाण वाक्यसे अथवा नय वाक्यसे, एक ही वस्तुमें अविरोध रूपसे जो सत्
असत् आदि धर्मकी कल्पना की जाती है उसे सप्तभंगी कहते हैं। न्या. दी./३/६८२/१२७/३ सप्तानो भङ्गानां समाहारः सप्तभङ्गीति । - सप्त'भगोंके समूहको सप्तभंगी कहते हैं (स.भ.त./१/१०)। स.भ.त/३/१ प्राश्निकप्रश्नज्ञानप्रयोज्यत्वे सति, एकवस्तुविशेष्यकाविरुद्धविधिप्रतिषेधात्मकधर्मप्रकारकबोधजनकसप्तवाक्यपर्याप्तसमुदायत्वम् । =प्रश्नकर्ताक प्रश्नज्ञानका प्रयोज्य रहते, एक पदार्थ विशेष्यक अविरुद्ध विधि प्रतिषेध रूप नाना धर्म प्रकारक बोधजनक सप्त वाक्य पर्याप्त समुदायता ( सप्तभंगी है)।
सप्त भंगोंमें प्रमाण व नयका विभाजन युक्त नहीं नय सप्तभंगीमें हेतु। अनेक प्रकारसे सप्तमंगी प्रयोग एकान्त व अनेकान्तकी अपेक्षा । स्वपर चतुष्टयकी अपेक्षा। विरोधी धर्मों की अपेक्षा -दे. सप्तभंगी//७।। सामान्य विशेषकी अपेक्षा नयोंकी अपेक्षा। अनन्तों सप्तभंगियोंकी समानता। अस्ति नास्ति भंग निर्देश वस्तुकी सिद्धिमें इन दोनोंका प्रधान स्थान।
दोनों में अविनाभावी अपेक्षा। ३ दोनोंकी सापेक्षतामें हेतु ।
नास्तित्वभंगकी सिद्धि में हेतु। नास्तित्व वस्तुका धर्म है तथा तद्गत शंका । उभयात्मक तृतीय भंगकी सिद्धि हेतु।' अनेक प्रकारसे अस्तित्व नास्तित्व प्रयोग स्वपर द्रव्यगुण पर्यायकी अपेक्षा। स्त्रपर क्षेत्रकी अपेक्षा। स्त्रपर कालकी अपेक्षा। | स्वपर भावकी अपेक्षा। वस्तुके सामान्य विशेष धर्मों की अपेक्षा। नयोंकी अपेक्षा।
विरोधी धर्मों में । * वस्तुमें अनेक विरोधी धर्म युगल तथा उनमें
| कथंचित् अविरोध। -दे. अनेकान्त/४,५ । * आकाश कुसुमादि अभावात्मक वस्तुओंका कथंचित् विधि निषेध ।
-दे. असद । कालादिकी अपेक्षा वस्तुमें भेदाभेद । मोक्षमार्गको अपेक्षा। अवक्तव्य भंग निर्देश युगपत् अनेक अर्थ कहनेकी असमर्थता । वह सर्वथा अवक्तव्य नहीं। कालादिकी अपेक्षा वस्तु धर्म अवक्तव्य है। सर्वथा अवक्तव्य कहना मिथ्या है। वक्तव्य व अवक्तव्यका समन्वय । शब्दकी वक्तव्यता तथा वाच्य वाचकता।
-दे. आगम/४। * वस्तुमें सक्षम क्षेत्रादिकी अपेक्षा स्वपर विभाग। .
-दे. अनेकान्त/४/७॥ शुद्ध निश्चय नय अवाच्य है। -दे. नय/V|२/२ । सूक्ष्म पर्याय अवाच्य हैं। -दे. पर्याय/३/१।
२. सप्तमंगोंके नाम निर्देश पं.का./मू./१४ सिय अस्थि णत्थि उहय अव्वत्तव्वं पुणो य तत्तिदर्य । दव्वं खु सत्तभंगं आदेशवसेण संभवदि । १४ । आदेश (कथन) के वश द्रव्य वास्तवमें स्यात-अस्ति, स्याव नास्ति, स्यात् अस्तिनास्ति, स्यात अवक्तव्य और अवक्तव्यता युक्त तीन भंगवाला (स्यात् अस्ति अवक्तव्य, स्यात् नास्ति अवक्तव्य, और स्यात अस्ति-नास्ति अवक्तव्य) इस प्रकार सात भंगवाला है । १४ । (प्र. सा./मू./ ११५); (रा. वा./४/४२/१५/२५३/३ ); (स्या. म./२३/२७८/ ११); (सं.भ.त./२/१)। न. च. वृ./२५२ सत्तैव हुँति भंगा पमाणणयदुणयभेदजुत्तावि। -प्रमाण
सप्तभंगी में, अथवा नय सप्तभंगी में, अथवा दुर्न य सप्तभंगीमें सर्वत्र सात ही भंग हो है। स. भं,त./१६/१ स च सप्तभंगी द्विविधा-प्रमाणसप्तभंगी नयसप्तभंगी
चेति ।-सप्तभंगी दो प्रकारकी है-प्रमाण सप्तभंगी और नय सप्तभगी। ३. सातों भंगोंके पृथक्-पृथक् लक्षण स.भ.त./पृष्ठ सं./पक्ति सं. तत्र धर्मान्तराप्रतिषेधकरवे सति विधिविषयकबोधजनकवाक्यं प्रथमो भङ्गः। स च स्यादस्त्येव घट इति वचनरूपः । धर्मान्तराप्रतिषेधकत्वे सति प्रतिषेधविषयकबोधजनकवाक्यं द्वितीयो भङ्गः। स च स्यान्नास्त्येव घट इत्याकारः (२०/३)। घटः स्यादस्ति च नास्ति चेति तृतीयः । घटादिरूपैकधमिविशेष्यक क्रमापितविधिप्रतिषेधप्रकारकबोधजनक्वाक्यत्वं तल्लक्षणम् । क्रमार्पितस्वरूपपररूपाद्यपेक्षयास्तिनास्त्यात्मको घट इति निरूपितप्रायम् । सहार्पितस्वरूपपररूपादिविवक्षायां स्यादवाच्यो घट इति चतुर्थः । घटादिविशेष्यकावक्तव्यत्वप्रकारकबोधजनकवाक्यत्वं तल्लक्षणं (६०/ १) व्यस्तं द्रव्यं समस्तौ सहार्पितौ द्रव्यपर्यायावाश्रित्य स्यादस्ति चावक्तव्य एव घट इति पञ्चमभङ्गः। घटादिरूपै कर्मिविशेष्यकसत्त्वविशिष्टावक्तव्यत्वप्रकारकबोधजनकवाक्यत्वं तल्लक्षणम् । तत्र द्रव्यार्पणादस्तित्वस्य युगपद द्रव्यपर्यायार्पणादवक्तव्यत्वस्य च विबक्षितत्वात् । (७१/७) तथा व्यस्तं पर्यायं समस्तौ द्रव्यपर्यायो चाश्रित्य स्थानास्ति चावक्तव्यो घट इति षष्ठः । तल्लक्षणं च घटादिरूपैकधर्मिविशेष्यकनास्तित्वविशिष्टावक्तव्यत्वप्रकारकबोधजनकवाक्यत्वम् । एवं व्यस्तौ क्रमापितौ समस्तौ सहापितौ च द्रव्यपर्यायावाश्रित्य स्यादस्ति
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