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सत्व
८. क्षपक श्रेणी (अपूर्वं करण )
स्थान
सं.
१
२
३
४
( गो . क. / ३८५/५५३ ) - स्थान -४; भंग- ४ |
द्रष्टव्य-बद्धायुष्यकको क्षपक श्रेणी सम्भव नहीं अतः केवल अनद्वायुष्क मनुष्यके ही स्थान हैं।
तीन आयु + अनन्त चतु.
+ दर्शनमोह त्रिक.
तीर्थंकर
९. क्षपक श्रेणी ( अनिवृत्तिकरण )
/i
आहा. चतु.
आहा. चतु. + तीर्थ
गुण सरव स्थान स्थान
र/ध
असत्त्ववाली प्रकृतियाँ
संकेत. बेदी पुरुषवेदोदय सहित बेणी चढ़ने वाला।
=
१
३
४
१
२
३
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पहले
सरव
योग्य
असत्त्ववाली प्रकृतियाँ
१४५
१३८
१३८
१३८
आहारक चतु
आहा, चतु +तीर्थ
नरक दि. वि. वि. १-४
इन्द्रिय, स्थान, त्रिक, आतप
उद्योत सूक्ष्म, साधारण, -१६ ब्युच्यन्न
स्थावर
तीर्थंकर
आहा, चतु.
३ आयु + अनन्त चतु.
+ दर्शनमोह त्रि. १० न
-
तीर्थंकर
असत्त्व
स्त्रीवेदी - स्त्री वेदोदय सहित श्रेणी चढ़ने वाला ।
नपुं. वेदी = नपुंसक वेदोदय सहित श्रेणी चढ़ने वाला |
द्रष्टव्य- केवल अबद्धायुष्क मनुष्य के आलाप ही सम्भव है क्योंकि बद्धायुष्क क्षपक श्रेणी पर नहीं चढ़ सकता ।
२९०
(गो.क./३०१-३००/५६४-२२२) स्थान-: भंग
द्रष्टव्य-गो. सा.में पुरुष वेदी व स्त्रीवेदी दोनोंके समान आलाप मानकर कुल स्थान ३६ बताये हैं, पर सारणी १ के अनुसार पुरुष व स्त्रीवेदी आलापों में कुछ अन्तर होनेसे यहाँ स्थान ४४ बनते हैं।
पहले
सख
योग्य
१४८
१३८
१३८
१३८
१३८
१०
१२२
१२१
१
४
५
असश्र्व
१०
अब
सत्त्व
योग्य
१
४
५
१६
१३८
१
४
१३७
१३४
१३३
अ
सब
योग्य
१३८
१३७
१३४
१३३
१२२
·
१२१
भंग
१९८
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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१
१
१
१
भंग
१
१
१
३. सत्व विषयक प्ररूपणाएँ
१
विवरण
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X
विवरण
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X X X X
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