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सत्त्व
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३. सत्त्व विषयक प्ररूपणाएं
११. नामप्रकृति सरवस्थान सामान्य प्ररूपणा-(पं.सं./प्रा./२०८-२१६); (पं. सं.:सं /३/२२२-२२६); (गो. क./भाषा./६१०/
८१७); (गो. क./भाषा/६२०-१२४); (गो. क./भाषा./७५६/६३१) कुल सत्त्व स्थान-१३: कुल सत्त्व योग-३ । संकेत- दे. सारणी 'सं. १ का प्रारम्भ ।
स्वामी जीव गो. क./भाषा/६२०-८२४
प्रति स्थान प्रकृति
प्रकृतियोंका विवरण (गो. क /भाषा/६१०/८१७)
कर्म भूमिज मनु. प. व नि. अप. असंयमादि वैमानिक देव असं यत सासादन रहित चतुर्गतिके जीव देव सम्यग्दृष्टि, मनुष्य, नारकी सम्यक् व मिध्यादृष्टि
६३-तीर्थकर
अनिवृत्ति क. में प्रकृतियोंका क्षय भये पीछे चतुर्गति ।
६३-आहारक द्विक ६३-आ.द्वि. व तीर्थ. . उपर्युक्त १०-देवद्विक्
देव द्विक्की उद्वेलना, एकेन्द्रिय या विकलेन्द्रियके होय तो वह मरकर जहाँ उपजे वहाँ तिर्यंच, मनुष्य मिथ्यादृष्टि भी उस उद्वेलना सहित
उपर्युक्त सं. ५ जीव नारकद्विक्की उद्वेलना कर ले तो। मनुष्यद्विक्की उद्वेलना भये तेज, वात कायिक या अन्य ८८ वाले स्थानवत्त होय ऐसा तिथंच सा मिथ्यादृष्टि ।
उपर्युक्त ८८-नारक द्विक् व वैक्रियक द्विक् १३- तीर्थ., आ.द्वि., देवद्विक्, नारकद्विक,
वै. द्विक, मनु. द्विक
अनिवृत्तिकरण g/ii से १४/i तक
१३-(नरक द्वि, ति.द्वि.,१-४ इन्द्रिय आतप, उद्योत, सूक्ष्म साधारण, स्थावर ।
८०-तीर्थकर
८०-आ. द्विक
८०-आ.द्विक, तीर्थ.
तीर्थ कर अयोगीका अन्तसमय
मनु. गति, पंचे.. सुभग, त्रस, बादर, पर्याप्त, आदेय, यश, तीर्थ, मनुष्यानुपूर्वी
सामान्य अयोगी का अन्तसमय
उपर्युक्त १०-तीर्थ कर
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जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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