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________________ सत्त्व ३०३ ३. सत्त्व विषयक प्ररूपणाएं ११. नामप्रकृति सरवस्थान सामान्य प्ररूपणा-(पं.सं./प्रा./२०८-२१६); (पं. सं.:सं /३/२२२-२२६); (गो. क./भाषा./६१०/ ८१७); (गो. क./भाषा/६२०-१२४); (गो. क./भाषा./७५६/६३१) कुल सत्त्व स्थान-१३: कुल सत्त्व योग-३ । संकेत- दे. सारणी 'सं. १ का प्रारम्भ । स्वामी जीव गो. क./भाषा/६२०-८२४ प्रति स्थान प्रकृति प्रकृतियोंका विवरण (गो. क /भाषा/६१०/८१७) कर्म भूमिज मनु. प. व नि. अप. असंयमादि वैमानिक देव असं यत सासादन रहित चतुर्गतिके जीव देव सम्यग्दृष्टि, मनुष्य, नारकी सम्यक् व मिध्यादृष्टि ६३-तीर्थकर अनिवृत्ति क. में प्रकृतियोंका क्षय भये पीछे चतुर्गति । ६३-आहारक द्विक ६३-आ.द्वि. व तीर्थ. . उपर्युक्त १०-देवद्विक् देव द्विक्की उद्वेलना, एकेन्द्रिय या विकलेन्द्रियके होय तो वह मरकर जहाँ उपजे वहाँ तिर्यंच, मनुष्य मिथ्यादृष्टि भी उस उद्वेलना सहित उपर्युक्त सं. ५ जीव नारकद्विक्की उद्वेलना कर ले तो। मनुष्यद्विक्की उद्वेलना भये तेज, वात कायिक या अन्य ८८ वाले स्थानवत्त होय ऐसा तिथंच सा मिथ्यादृष्टि । उपर्युक्त ८८-नारक द्विक् व वैक्रियक द्विक् १३- तीर्थ., आ.द्वि., देवद्विक्, नारकद्विक, वै. द्विक, मनु. द्विक अनिवृत्तिकरण g/ii से १४/i तक १३-(नरक द्वि, ति.द्वि.,१-४ इन्द्रिय आतप, उद्योत, सूक्ष्म साधारण, स्थावर । ८०-तीर्थकर ८०-आ. द्विक ८०-आ.द्विक, तीर्थ. तीर्थ कर अयोगीका अन्तसमय मनु. गति, पंचे.. सुभग, त्रस, बादर, पर्याप्त, आदेय, यश, तीर्थ, मनुष्यानुपूर्वी सामान्य अयोगी का अन्तसमय उपर्युक्त १०-तीर्थ कर - जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016011
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages551
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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