SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 290
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सत्त्व २८३ ३. सत्त्व विषयक प्ररूपणाएं मार्गणा | गुण ___ असश्व असचव कुल सत्त्व योग्य असत्व सत्त्व कुल गुण स्थान स्थान स्व स्थानमें उद्वेलना सहित नरक द्वि., बैकि.द्वि. उच्च गोत्र मनुष्य द्वय पंचेन्द्रिय - ४. योग मार्गणा-(गो, क./भाषा/३५२-३५३/५०६-५०८) १४८ ४ १४८ चार मन, चार बचन व औदारिक काय योग आहारक व आ. मिश्र वैक्रियक ३ १(६ठा) १४८ वै क्रियक मिश्र नरकायु, तियंचायु १४८ x तीर्थकर प्रकृतिबाला तीसरे नरक तक वा देवगतिमें जाता है। तिर्यच, मनुष्यायु *२) १४८ १४६ x आ. द्वि., तीर्थ., नरकायु १४६ औदारिक मिश्र देवायु, नरकायु १४४ १.२४४ व १३ बा ६ कार्माण १४८ -बै क्रियक मिश्र व सयोगीवत् - ५. वेद मार्गणा-(गो. क./जी. प्र./३५४/५०८/१) १४८ १४८ १४८ १४८ १४८ पुरुष वेद स्त्री वेद सा. ..क्षपक श्रेणी ३। नपुंसक वेद १४ तीर्थकर -स्त्रीवेदव कषाय मार्गणा क्रोधादिमें गुणस्थान लोभमें गुणस्थान १० ४ | १४८ या १० ७. शान मार्गणा-(गो. के. जी. प्र/३१४/०८/4) १४० कुमति, कुश्रुत, विभंग मति, श्रुत, अवधि मनःपर्यय केवल १४८ ४-१२ नरक तियं चायु ओघवत् व्युच्छित्ति १४८ -६३, १४८ १३-१४ नरक, तिथंचायु ८. संयम मार्गणा-(गो. क./जी./प्र./३५४/०८/8) सामान्य सामायिक छेदोपस्था, परिहार विशुद्धि सूक्ष्म साम्पराय (उप.) " " (क्षपक) यथारख्यात उप. उपशम. ओघवत ४६ व्युच्छि. भरक, तियंचायु १(१०) १० वा| १(११वा - १४८ जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016011
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages551
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy