________________
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
गुण
स्थान
ε/ili
ε/iv
६/v
E/vi
/vii
8/viin
/ix
गुण स्थान
१० १२/i
१२/ii
१३
१४ / i
१४/ii
मोह
सत्त्व
स्थान
(दे. सत्त्व/३/७ )
५
४
१३ नपुंसक वेद
१२
स्त्री वेद
११
हास्यादि ग्रह नोकषाय
पुरुष वेद
मं. क्रोध
३
२
पुरुष वेदोदय सहित
व्युच्छित्तिको प्रकृतियाँ
समान
सं. माया
सत्त्व योग्य
११४
११३
११२
१०६
व्युच्छि
१
१
६
शेष
सत्व
११३
११२
१०६
१०५
१०४
१०३
१ १०२
१
१०५ १
१०४
१
१०३
माह
सत्त्व
स्थान
( /२/७)
१३
१३
१२
११
४
३
२
व्युच्चिकी प्रकृतियाँ
संज्वलन लोभ
== ?.
(द्विचरम समय में ) निद्रा, प्रचला २
( अन्त समय में ) ५ ज्ञानावरणी, ४ दर्शनावरणी, ५ अन्तराय - १४
व्युच्छित्तिकी प्रकृतियाँ
यो वेदोदव सहित
X
स्त्रीवेद
नपुंसक वेद
पुरुष हास्यादि ६
सं. क्रोध
सं. मान
सं. माया
सत्त्व
योग्य
११४
११४
११३
११२
१०५
१०४.
१०३
X
(द्विचरम समय ) ५ शरीर, ५ बन्धन, ५ संघात, ६ संस्थान, ६ संहनन ३ अंगोपांग, ५ वर्ण,
२ गन्ध,
८
१ रस, स्पर्श - ५०+ स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ स्वर कि वियोगप्रिय दुग निर्माण, अयश, अनादेय, प्रत्येक, अपर्याप्त, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, अनुदयरूप अन्यतम बेश्नीय, नोचगोष
( चरम समय में ) शेष उदयवाली वेदनीय, मनुष्य त्रिक, पंचेन्द्रिय सुभग, त्रस, बादर, पर्याप्त, आदेय, यश, तीर्थकर, उच्चगोत्र = १३
व्युच्छित्ति
Xxx
१
७
१
१
१
मोह
सत्त्व
स्थान
(वे. ३७)
शेष
सत्त्व
११४
११३
११२
१०५
१०४
१०३
१०२
१३
१३
१३
११
४
असत्त्व
X X X X
२
x
नपुंसक वेदोदय सहित
व्युच्छित्तिकी प्रकृतियाँ
X
x
खीव नपुंसक वेद
पुरुष वेद, हास्यादि ६
सं, क्रोध
सं. मान
स माया
कुल
सत्त्व
योग्य
१०२
१०१
६६
सत्त्व
योग्य
X X X X X
११४
११४
११४
११२
१०५
१०४
१०३
असत्त्व सत्त्व
१०२
१०१
६६
छ
ov
व्युच्छित्ति
X Xoror
११४
११४
२ ११२
१
व्युच्छित्ति
~ 20 × 5
१
२
१४
शेष
सत्त्व
१३
१०५
१०४
१०३
१०२
ष
सत्त्व
योग्य
१०१
६६
छौ
X
सत्त्व
२७९
३. सत्व विषयक प्ररूपणाएँ