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संख्या
३. संख्या विषयक प्ररूपणाएं
मार्गणास्थान
भागाभाग
मागणा
गुण | स्थान
भागाभाग
मनुष्य पर्याप्त
शेषका
सं. युगलवत्
५. चारों गतियोंकी अपेक्षा स्वपर स्थान भागाभाग (ध. ३/१.२,७३/२६५-२६७)
सर्व जीवों के अनं, बहु
एकेन्द्रिय + विकलेंद्रिय सिद्ध जीव पंचेन्द्रिय अपर्याप्त
असं..
सयोगकेवली चारों क्षपक चारों उपशामक अयोगकेवली
___ सं.
.
८-११
शेष एक भाग
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ज्योतिषी देव (व्यन्तर देव) भवनवासी प्रथम पृथिवी सौधर्म ऐशान द्वितीय पृथिवी सनत्कुमार माहेन्द्र तृतीय पृथिवी ब्रह्म ब्रह्मोत्तर चतुर्थ पृथिवी लांतब कापिष्ठ पंचम पृथिवी शुक्र महाशुक्र शतार सहस्रार षष्ठम पृथिवी सप्तम पृथिवी सौधर्म ऐशान
६. एक समयमें विवक्षित स्थानमें प्रवेश व निर्गमन करनेवाले जीवोंका प्रमाण (ध.६/४,१,६६/२७७-७८
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मार्गणा
| ध./प्र.
संख्या
| १,२ या अधिक
१. सचयको अपेक्षा मनुष्य अपर्याप्त बैंक्रियक मिश्र आहारक द्विक सूक्ष्मसाम्परायिक उपशम सम्यग्दृष्टि सासादन सम्यग्दृष्टि सम्यग्मिध्यादृष्टि
30M 2009
" " असं. उत्तरोत्तर सौधर्म युगलवर
:: :: : :
सत्तरकुमार युगलसे शतार युगल तक प्रत्येक युगल में
:
४,३,२
:
:
:
प्रमत्त संयत अप्रमत्त संयत चारों उपशामक चारों क्षपक सयोग केवली अयोग केवली
:
५६३६८२०६ प्रमत्तसे आवे २६६ या ३०० या ३०४ उपशामकों से दुगुने ८८५०२ क्षपको बत.
शेषके सं.बहु भाग
उत्तरोत्तर ,
शेषके
ज्योतिषी व्यन्तर भवनवासी तिर्यच सामान्य सातों पृथिवियोंमेसे प्रत्येक पृ. आनत-प्राणत आरण-अच्युत १-१ ग्रेवेयक नव अनुदिश विजय आदि चार अनुत्तर आनत-प्राणत आरण अच्युत १-१ वेयक आनत-प्राणत आरण-अच्युत १-८ वेयक नर्वा ग्रैवेयक सर्वार्थ सिद्धि मनुष्य पर्याप्त
"
"
असं.
१,२ या अधिक
"
.:: :: :: :: है १ दे. संरम्या/५२
"
२. प्रवेशकी अपेक्षा सर्व नारकी सर्व तिर्यच सर्व देव मनुष्य सा. मनुष्य पर्याप्त मनुष्यणी एकेन्द्रिय सम विकलेन्द्रिय सब पंचेन्द्रिय बा. पृथिवी कायिक बा, जलकायिक
शेषर .बहु उत्तरातर . कोषका
१.२ या अधिक
उत्तरोत्तर शेषका असं.
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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