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संक्रमण
सूचीपत्र
अध:प्रवृत्त गुण व सर्व इन तीनके योग्य । विध्यातगुण व सर्व इन तीनके योग्य । उद्वेलनके बिना चारके योग्य । विध्यातके बिना चारके योग्य । पाँचोंके योग्य । प्रकृतियोंमें संक्रमण सम्बन्धी कुछ नियम व
शंका | बध्यमान व अवध्यमान प्रकृतियों सम्बन्धी। दर्शन मोहमें अबध्यमानका भी संक्रमण होता है।
-दे. संक्रमण/३/१।। २ | मूल प्रकृतियोंमें परस्पर संक्रमण नहीं होता। स्वजाति उत्तर प्रकृतियों में संक्रमण होता है।
-दे. संक्रमण/३/२॥ उत्तर प्रकृतियोंमें संक्रमण सम्बन्धी कुछ अपवाद । चारों आयुओंमें परस्पर संक्रमण सम्भव नहीं।
-दे, संक्रमण/३/३ । * दर्शन चारित्र मोहमें परस्पर संक्रमण सम्भव नहीं।
-दे, संक्रमण/३/३। * कषाय नोकषायमें परस्पर संक्रमण सम्भव है।
-दे, संक्रमण/३/३। ४ | दर्शन मोह त्रिकका व उदयकालमें ही संक्रमण नहीं
होता। प्रकृति व प्रदेश संक्रमणमें गुणस्थान निर्देश ।
संक्रमण द्वारा अनुदय प्रकृतियोंका भी उदय । | अचलावलि पर्यन्त संक्रमण सम्भव नहीं।
संक्रमण पश्चात् आवली पर्यन्त प्रकृत्तियोंकी अचलता। संक्रमण विषयक सत् संख्यादि आठ प्ररूपणाऐं।
-दे. वह वह नाम। * प्रकृतियोंके संक्रमण व संक्रामको सम्बन्धी काल अन्तर
आदि प्ररूपणाएँ। -दे. वह बह नाम । उद्वेलना संक्रमण निर्देश उद्वेलना संक्रमणका लक्षण! उदेलना संक्रमण द्विचरम काण्डक पर्यन्त होता है।
-दे. संक्रमण/१/४1 २ मार्गणा स्थानोमें उद्वेलना योग्य प्रकृतियों। ३ मिथ्यात्व व मिश्र प्रकृतिकी उद्वेलना योग्य काल ।
यह मिथ्यात्व अवस्थामें होता है। * सम्यक् व मिश्र प्रकृतिको उद्वेलनामें चार संक्रमणोंका क्रम।
- दे. संक्रमण/९/४। यह काण्टक घात रूपसे होता है।-दे. संक्रमण 1 सम्यक् व मिश्र प्रकृतिको उद्वेलना का क्रम । विध्यात संक्रमण निर्देश
विध्यात संक्रमणका लक्षण । * | बन्ध व्युच्छित्ति होनेके पश्चात् उन प्रकृतियोंका ४-७ गुणस्थानों में विध्यात संक्रमण होता है।
-दे. संक्रमण/१।
अधःप्रवृत्त संक्रमण निर्देश अधःप्रवृत्त संक्रमणका लक्षण । काण्डकपात व अपवर्तनाघातमें अन्तर ।
-दे. अकर्षण/४/६ यह नियमसे वातिरूप होता है। मिथ्यात्व प्रकृतिका नहीं होता। शेष प्रकृतियोंका व्युच्छित्ति पर्यन्त होता है।
-दे. संक्रमण/१/३ । | सम्यक् व मिश्र प्रकृतिके अध:प्रवृत्त संक्रमण योग्य
काल। गुण संकमण निर्देश गुण संक्रमणका लक्षण। गुण संक्रमणका स्वामित्व। -दे. संक्रमण/१/३ । बन्धवालो प्रकृतियोंका नहीं होता। मिथ्यात्वके विधाकरणमें गुण संक्रमण ।
-दे, उपशम/२1 | गुण संक्रमण योग्य स्थान । गुण संक्रमण कालका लक्षण । गुणश्रेणी निर्देश गुणश्रेणी विधानमें तीन पर्वोका निर्देश । गुणश्रेणि निर्जराके आवश्यक अधिकार । गुणश्रेणिका लक्षण । गुणश्रेणि निर्जराका लक्षण। गुणश्रेणि शीर्ष का लक्षण । गुणवेणि आयामका लक्षण । गलितावशेष गुणश्रेणि आयामका लक्षण । अवस्थिति गुणश्रेणि आयामका लक्षण । गुणश्रेणि आयामोंका यन्त्र। अन्तर स्थिति व द्वितीय स्थितिका लक्षण।
गुणश्रेणि निक्षेपण विधान। * गुण श्रेणि निर्जराका ११ स्थानीय अल्पबहुत्व ।
-दे. अल्पबहुत्व/३/१०॥ | गुणश्रेणि निर्जरा विधान।
गुणश्रेणि विधान विषयक यन्त्र । १४ नोकर्मकी गुणश्रेणि निर्जरा नहीं होती।
सर्व संक्रमण निर्देश सर्व संक्रमणका लक्षण । चरम फालिका सर्वसंक्रमण ही होता है।
-दे. संक्रमण/१/३/४ । १० आनुपूर्वी व स्तिवुक संक्रमण निर्देश
आनुपूर्वी संक्रमणका लक्षण । स्तिवुक संक्रमणका लक्षण । अनुदय प्रकृतियों स्तिवुक संक्रमण द्वारा उदयमें आती हैं।
-दे, संक्रमण/३/६।।
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जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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