________________
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
www.jainelibrary.org
अनुदिश-अपराजित
सर्वार्थ सिद्धि
२. इन्द्रिय मार्गणा :
एकेन्द्रिय सामान्य
एकेन्द्रिय पर्या
"
बा. एके. सामान्य
पर्याप्त
पर्या सामान्य
पर्याप्त
अपर्याप्त
द्वीन्द्रिय सामान्य
"
सूक्ष्म,
11
" 37
11
मागेणा
"
19
13
अपर्याप्त
त्रीन्द्रिय सामान्य
पर्याप्त
अपयष्ठि
19
11
पर्याप्त जयति
चतुरिन्द्रिय सामान्य
पर्याप्त
अपर्याप्त
गुणस्थान
४
४
X
ष खं.
टी./२०६
७२६
"
७२
"
द्रव्यकी अपेक्षा
गो.जी./टी./१०५-१००), (ति १/३/२००
:::::
प्रमाण
पाय असं
अनं.
सं.
मनुष्यणीसे तिगुने - [ १७८२६५६५७०६४७५६५८५४७३८८७५५६ ]
99
17
असं.
घ. नं.
11
11
इंट
"
:::
अनं.
क्षेत्रकी अपेक्षा
91
19
19
19
71
99
प्रमाण
99
ज. प्र. + ( सूच्यं गुल / असं ) 2
+
ज. प्र. + ( सूच्यं गुल / असं ) २
द्वीन्द्रिय सामान्यवत्
पर्याप्त
अत
सामान्य
पर्याप्त
अप
11
11
"1
+9
असं का प्रमाण
आ./असं.
आ./असं,
ष. रवं,
부분문자
93
11
19
14
:::::
कालकी अपेक्षा
प्रमाण
अंत
पत्य +
- पल्य / अंतर्मु -
अनं उत अबसे अनपहृत
13
31
आ.
असं
असं उत. अब से अपहृत
"
संख्या
३. संख्या विषयक प्ररूपणाएँ